उत्तर प्रदेश को गन्ना उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। प्रदेश में गन्ने का रिकार्ड उत्पादन किया जाता है। गन्नE वैसे प्रमुख नकदी फसलों में एक है। चाहें पूर्वी उत्तर प्रदेश हो या पश्चिमी उत्तर प्रदेश गन्ने की खेती का प्रचलन अधिक है। राज्य के जिले लखीमपुर खीरी में भी आधे से अधिक रकबे में गन्ना की खेती की जाती है। लेकिन कुछ सालों से गन्ना की फसल में उत्पादन कम होने से किसान परेशान रहते थे। इस बीच कृषि विज्ञान केंद्र खीरी ने किसानों के मध्य गन्ने की अपेक्षा केला की खेती करने के लिये प्रोत्साहित किया। जिसके लिए किसानों को चयनित कर टिश्यूकल्चर पद्धति द्वारा प्रदर्शन कर दिखाया गया।
इसके साथ फसल में कीट प्रबंधन खासकर केले में लगने वाले बीटल कीट व अन्त: फसल, व कटाई के उपरान्त किए जाने वाले प्रबंधन तकनीकों के विषय में किसानों को प्रशिक्षित किया गया। जिससे प्रभावित होकर किसानों ने केले की खेती करनी शुरु की। लगभग 10 साल पहले केले की खेती का प्रचलन शुरु हुआ। साथ ही किसानों ने केले की खेती में अन्त:फसली को भी अपनाया।
प्रारंभ में पाया गया कि बावक फसल से प्रति हैक्टेयर जो शुद्ध लाभ 88,300 व पेड़ी की फसल से 1,49,450 रुपए पाया गया। लेकिन यह आज के समय में प्रति हैक्टेयर बावक फसल में 2,57,000 रुपए व पेड़ी की फसल में यह 3,25,000 रुपए तक हो गई। किसानों ने अपने उत्पाद को लखीमपुर,शाहजहांपुर,बरेली की बाजार में बेचा।
इस दौरान फसल की अच्छी पैदावार व आय पाकर किसान केले की खेती में विशेष रुचि दिखाई। साथ ही जिले की अन्य तहसीलो में केले की खेती का प्रचलन शुरु हुआ। जिनमें करीब 90 गांवों में अधिकांश रकबे में केला उगाया जाने लगा। पसगवां,धौरहरा,मोहम्मदी,बांकेगंज,पलिया व गोला में इस फसल से किसानों ने अच्छी आमदनी प्राप्त की है। कृषि विज्ञान केंद्र के मुताबिक शुरुआत में कुल 248 हैक्टेयर पर खेती प्रारंभ की गई थी। लेकिन यह अब बढ़कर 1785 हैक्टेयर हो गई है। यानिकि खेती से लाभान्वित होकर किसानों ने और अधिक खेती करने का फैसला किया। जैसा कि आप पहले भी केले उगाने की तकनीकों व प्रबंधन के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहें हैं ऐसे में जरूरी है कि बागवानी खेती को अपनाकर और अधिक आमदनी प्राप्त करें। जैसा कि इस जिले में आंकलन किया गया है कि केला उत्पादकों की आर्थिक स्थिति अन्य फसल उत्पादकों की अपेक्षा काफी अच्छी है।
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