हमारे लोकतंत्र में आज भी मीडिया को देश का चौथा सतम्भ माना जाता है. इसके पीछे की वजह कुछ और नहीं मीडिया का काम है, जो लोगों को हर वक़्त देश और दुनिया की ख़बरों से रूबरू करवाता रहता है. मीडिया का काम देश और दुनिया की परिस्थिति को जनता के समक्ष रखना होता है.
बीते कुछ दिनों से इस कार्य में अपना बेहतरीन प्रदर्शन दिखाते हुए कृषि जागरण अपने दर्शकों का पूरा ध्यान रख रहा है. उन्हें कब उनकी जरुरत है या हो सकती है, इस बात का भी कृषि जागरण और उसकी टीम पूरा ध्यान रख रही है. कुछ इसी प्रयास में कृषि जागरण और उसकी टीम एक बार फिर अपने ऑफिस से निकल उत्तर प्रदेश के सहारनपुर गांव में उनका हालचाल लेने पहुंची.
ऐसे में कृषि जागरण के हिंदी कंटेंट के सह-संपादक विवेक कुमार राय ने वहाँ के किसानों से बात की और यह जानने की कोशिश की कि आखिर उनके जिंदगी में क्या चल रहा है. जिंदगी यानि खेती-बाड़ी से जुडी बातें जानने की कोशिश की, और उन्होंने जो बताया वो जानकर आपको हैरानी के साथ ख़ुशी भी होगी की आखिर कैसे यह संभव हो सकता है. तो आइये बताते हैं आपको पूरी कहानी.
कृषि जागरण की टीम एक बार फिर किसानों को खुद से जोड़ने के लिए उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के बिवडी गांव में पहुंची. वहां उनकी मुलाकात सुधीर राठौर से हुई जो पेशे से प्रोग्रेसिव फार्मर हैं. उन्होंने बताया की कैसे 7 एकड़ ज़मीन में वो 12 अलग-अलग क़िस्मों के फल उगा रहे हैं. सुधीर ने बताया की वो अपने जमीनों में अमरुद और उसकी 5 अलग किस्में, नींबू, शाही लीची, बैंगन, आवला,आरु, बब्बूगोशा, रेड एप्पल और रेड एप्पल बेर जैसी चीज़ें उपजा कर मुनाफा कमा रहे हैं. राठौर ने बताया की कैसे वो आर्गेनिक खाद का इस्तेमाल कर अपने फसलों को जहर से बचा रहे हैं. सुधीर अपने बागवानी के लिए आर्गेनिक खाद का इस्तेमाल करते हैं.
उनका मानना है की केमिकल फसल के साथ-साथ लोगों के लिए भी अत्यधिक हानिकारक होता है, जो एक तरह से सच भी है. प्रोग्रेसिव फार्मिंग को अपनाते हुए सुधीर आज के दिनों में एक सम्फ किसान के रूप मजे जाने जाते हैं. उन्होंने कई ऐसे कदम उठाए हैं जो अधिकतर किसान किसी न किसी वजह से नहीं कर पाता.
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सुधीर राठौर B.SC के छात्र रह चुके हैं. हालाँकि उन्होंने ने दूसरे साल ही कॉलेज जाना छोड़ दिया था. तब से लेकर आज तक वो खेती कर इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और साथ ही दूसरे किसानों को भी इस ओर बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. कृषि जागरण के माध्यम से सुधीर राठौर ने देश के बाकि किसानों को बताया की कैसे वह पारम्परिक तरीकों से हट कर भी खेती कर सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
अब यूपी में भी संभव है सेब की खेती
सुधीर राठौर के बागों में विवेक राय को कुछ ऐसा दिखा जिसे देख वह भी अचंभित हो गए. जी हाँ सुधीर राठौर ने अपने 7 एकड़ के जमीन में अन्य फलों के साथ एप्पल भी लगा रखा है. जी हाँ ये वहीं, एप्पल हैं जो आपको कश्मीर के साथ हिमाचल के कुछ जिलों में देखने को मिलता है. लेकिन वैज्ञानिकों के अथक प्रयास और सुधीर जैसे किसानों की सफल परिश्रम के वजह से अब यह यूपी में भी संभव हो पाया है. रेड एप्पल का पौधा अब किसान 48 डिग्री तापमान तक के वातावरण में उपजा सकते हैं. उन्होंने यह भी बताया की महज 1 वर्ष का पौधा 50 किलो तक फल दे सकता है. इसके साथ ही इसकी उपज साल भर होती है जिससे किसानों को साल भर मुनाफा होता है. इसकी लगत भी ज्यादा नहीं है और फायदा भी अन्य फसलों के मुकाबले अधिक है.
पारम्परिक सेब की खेती
आमतौर पर सेब की खेती जम्मू एवं कश्मीर हिमाचल प्रदेश में की जाती है. इसके पीछे की वजह कुछ और नहीं वातावरण है. सेब अधिकतर ठंडे जगहों पर उगाया जाता है. इससे इसकी गुणवत्ता और उपज पर अच्छा असर पड़ता है. सेब की फसल सितम्बर-अक्टूबर से कटाई के लिए तैयार होते हैं, लेकिन नीलगिरि में ऐसा नहीं होता है जहां मौसम अप्रैल से जुलाई होता है. विकसित की गई किस्म पर निर्भर करते हुए पूर्ण तरीके से 130-135 दिनों के भीतर फल बाजारों में आने के लिए तैयार होते हैं.
फलों का परिपक्व रंग में परिवर्तन, बनावट, गुणवत्ता और विशेष स्वाद के विकास से जुड़ा होता है. फसल की कटाई के समय यह जरुरी है की फल एकसमान, ठोस और भुरमुरा होने चाहिए. परिपक्वन के समय छिलके का रंग किस्म पर निर्भर करता है की वह पीला-लाल के बीच होना चाहिए.
वहीं, फसल-कटाई का सर्वोत्तम समय फल की गुणवत्ता और भंडारण की अभीष्ट अवधि पर निर्भर करता है.
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