सरकार किसानों के लिए एक विशेष कृषि मेले का आयोजन करने जा रही है. यह मेला पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान परिसर (indian agricultural research institute) में लगाया जाएगा, जोकि 1 से 3 मार्च तक आयोजित होगा. इस मेले में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के साथ-साथ राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और गैर-सरकारी संगठनों के लोग भी शामिल होने वाले हैं. मेले में इन सभी संस्थाओं और संगठनों के स्टॉल लगाए जाएंगे, जिनमें इनके उत्पाद की प्रदर्शनी देखने को मिलेगी.
मेले की थीम ‘सतत विकास’
सरकार ने इस कृषि मेले की थीम सतत विकास रखी है. इस मेले में देशभर के हजारों प्रगतिशील किसानों के जुटने की पूरी उम्मीद जताई जा रही है. इस कृषि मेले में किसानों तक पूसा कृषि अनुसंधान संस्थान की तकनीकों की जानकारी पहुंचाने पर जोर दिया जाएगा. इस कृषि मेले का उद्देश्य ही है कि अधिकतर किसान उनकी तकनीकों को जानें, ताकि उनके उपयोग से किसानों की आमदनी दोगुनी हो सके.
किसानों के लिए कई सुविधाएं उपलब्ध
इस कृषि मेले में डिजिटल के माध्यम से मॉडल प्रदर्शित होंगे, जिससे किसानों और युवाओं तक कृषि की सूचना औऱ परामर्श पहुंच सके. इतना ही नहीं, किसानों के लिए फसल उत्पादन प्रौद्योगिकियों की जीवंत प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी. इसके अलावा किसानों के लिए मिट्टी और पानी की मुफ्त जांच का लाभ भी मिलेगा.
किसानों के लिए एक खास तकनीक
इस कृषि मेले में किसानों के सामने एक विशेष तकनीक को प्रदर्शित किया जाएगा. इस तकनीक में खराब पानी को कृषि उपयोग के योग्य बनाया जाएगा. इसके अलावा लगभग 300 स्टॉल भी लगाए जाएंगे, जिनमें कुछ स्टॉल प्रगतिशील किसानों को आवंटित होंगे. इन स्टॉलों में किसान अपने उत्पाद की बिक्री कर पाएंगे.
किसानों को लिए शटल सेवा उपलब्ध
कृषि मेला स्थल तक पहुंचने में किसानों को कोई दिक्कत न हो, इसके लिए परिसर के मुख्य द्वार पर मुफ्त शटल बस सेवा उपलब्ध कराई जाएगी. यह सेवा इंद्रपुरी और राजेंद्र नगर के मुख्य द्वारों दी जाएगी. यह कृषि मेला सुबह 9:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक लोगों के लिए खुला रहेगा.
साल 1972 से हर साल लगता है मेला
आपको बता दें कि देशभर के किसानों के लिए यह मेला हर साल लगाया जाता है, जिसकी शुरूआत 1972 से हो गई थी. इस मेले में किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों की जानकारी दी जाती है. एक तरफ किसान नई तकनीकों से वाकिफ होते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ संस्थान के वैज्ञानिकों को भी किसानों की प्रतिक्रिया के बारे में पता चलता है. इस तरह वैज्ञानिकों को भविष्य में कृषि की रणनीति बनाने में मदद मिलती है.
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