अगर बिहार के लोग दक्षिण भारत के किसी भी हिस्से में रह रहे है और बिहार की लीची को याद कर रहे है तो उनको अब कोई भी चिंता करने की जरूरत नहीं है. वह दक्षिण भारत में भी रहकर शाही लीची का लुफ्त उठा सकते है. सबसे मजेदार बात तो यह है कि बिहार में लीची का स्वाद लोग आमतौर पर गर्मी के मौसम में चखते है जबकि दक्षिण भारत के लोग इसी लीची का स्वाद लोग नवंबर और दिसंबर महीने में ही उठाएंगे. दरअसल बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक ने बताया है कि इस बार सर्दियों में कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु में शाही लीची की बागवानी तैयार होगी. इसके लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र द्वारा पिछले सात साल से तैयारी चल रही थी जो कि अब जाकर सफल हुई है.
लीची उत्पादन का दिया गया प्रशिक्षण
केरल राज्य के वायनाड, इडुक्की, कल्पेटा, कर्नाटक के कोडबू, चिकमंगलूर, हसन और तमिलनाडु के पालानी हिल्स और ऊंटी जिलों में लीची की बागवानी शुरू हुई है. इन जिलों के किसानों को लीची बागवानी के लिए प्रशिक्षण दिया गया है. उन्होंने कहा कि वहां की जलवायु लीची उत्पादन के लिए बागवानी का प्रशिक्षण दिया गया है. वहां की जलवायु लीची उत्पादन के लिए ठंड के मौसम में ही अनुकूल है. दक्षिण भारत में नवंबर और दिसंबर माह में लीची के फल फल तैयार हो जाएंगे. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012-13 में राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने दक्षिण भारत के इन राज्यों में लीची बागवानी का प्रयोग शुरू किया था.
काफी लाभप्रद है लीची
दक्षिण भारत के राज्यों में एक पुष्ट लीची का वजन 40 ग्राम तक होने की संभावना है, उन्होंने संभावना जताई है कि दक्षिण भारत के किसानों के लिए लीची की खेती काफी लाभप्रद होगी, क्योंकि उस क्षेत्र में लीची काफी महंगी मिलेगी.
बिहार की लीची है ब्रांड
बता दें कि बिहार की देश की लीची उत्पादन में कुल 40 फीसदी उत्पादन है. वहीं आंकड़ों के हिसाब से बिहार में 32 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती की जाती है. बिहार की शाही लीची को डीआई टैग भी मिल चुका है, वैसे तो बिहार की लीची का अपना अलग ही स्वाद है जो कि काफी ज्यादा पसंद किया जाता है लेकिन जीआई टैग मिलने के बाद इस लीची का देश और विदेश में भी काफी ब्रांड बन गया है.
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