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गुरुग्राम में आयोजित किया गया मशरूम उत्पादन पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम, कृषि विशेषज्ञों ने साझा की जानकारी

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के गुरुग्राम स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने मशरूम उत्पादन पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया, जिसमें 12 किसानों ने भाग लिया. विशेषज्ञों ने कम लागत में मशरूम गृह निर्माण, फसल प्रबंधन, हार्वेस्टिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग की जानकारी दी. प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनामिका शर्मा ने किसानों को मशरूम यूनिट स्थापित कर आय बढ़ाने के लिए प्रेरित किया.

KJ Staff
Training Programme on Mushroom Production Technology
मशरूम उत्पादन तकनीक पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के गुरुग्राम के शिकोहपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा मशरूम उत्पादन तकनीकी पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें  12 पुरुष प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया. प्रशिक्षण के कोऑर्डिनेटर डॉ. भरत सिंह ने जानकारी दी कि इस कार्यक्रम में सांपका, फ़ाज़िपुर (बादली) राजपुरा, गढ़ी हरसरू, खंडेलवाल आदि गांवों के 12 सहभागियों ने मशरुम उत्पादन की तकनीकों पर प्रशिक्षण प्राप्त किया, जिससे कि वे कृषि कार्यों के साथ मशरूम की खेती कर अपनी फार्म आमदनी में वृद्धि कर सकें.

प्रशिक्षण के दौरान मिली ये जानकारी

प्रशिक्षण में भाग ले रहे व्यक्तियों को मशरूम ग्रह निर्माण, कंपोस्ट एवं केसिंग मिट्टी तैयार करने की विधि, इसके निर्जलीकरण, मशरूम ग्रह में नमी व तापक्रम प्रबंधन, स्पानिंग इत्यादि तकनीकों के साथ साथ, मशरूम हार्वेस्टिंग, पैकेजिंग, मार्केटिंग की विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई.

इस दौरान विशेषज्ञ डॉ. भरत सिंह ने कहा कि मशरूम की खेती के लिए कम लागत से मशरूम ग्रह तैयार कर प्राकृतिक रूप से मौसम आधारित वर्ष में 2-3 बार मशरूम की खेती की जा सकती है जबकि उच्च तकनीकी युक्त मशरूम गृह निर्माण कर वर्ष में 4-5 बार मशरूम फसलें जैसे श्वेत बटन मशरूम, ढींगरी मशरूम, दूधिया मशरूम की फसलें लगाकर आमदनी अर्जित की जा सकती है. कम लागत से मशरूम गृह बनाने के लिए समतल तथा ऊंची उठी हुई जगह, जहां पर पानी का भराव न होता हो वहां पर फसलों के अवशेषों जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का, धान सरकंडा/ मूंज के सूखे पूलों व फूंस से झोपड़ीनुमा ढांचा बना कर उसके अंदर अलग अलग ऊंचाइयों पर बांस, पॉलीथिन व सुतली का इस्तेमाल कर 3-5 सतहों के रैक तैयार किए जाते हैं. जिन पर गेहूं, जौ या धान के भूसे बनी मशरूम कंपोस्ट में मशरूम बीज जिसे स्पॉन कहते है उससे मिला दिया जाता है. अब इसे साफ कागज या पारदर्शी व पतली पॉलीथिन से 10-12 दिनों के लिए ढक दिया जाता है, जिसमें पूरी तरह मशरूम जाल/ माइसीलियम फैल जाने पर विशेष रूप से तैयार की गई केसिंग मिट्टी 1-1.5 इंच ऊपर से चढ़ा दी जाती है. इस प्रक्रिया के 12-15 दिन बाद  विशेष रूप से श्वेत बटन मशरूम  कटाई कर उपज एवं आमदनी प्राप्त होने लगती है.

श्वेत बटन मशरूम की खेती के लिए सितंबर से फरवरी तक का मौसम अनुकूल रहता है. अलग अलग मौसम में मार्केट में मशरूम के भाव में उतार चढाव जो कि 100 रुपए से लेकर 400 रुपए प्रति किलोग्राम या इससे भी अधिक देखा जा सकता है. जबकि वर्षभर मार्केट में ताजा मशरूम की हमेशा मांग बनी रहती है. ठीक उसी तरह ढिंगरी एवं दूधिया मशरूम की खेती से भी मांग व मार्केट की आवश्यकतानुसार उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.

केंद्र की अध्यक्षा एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनामिका शर्मा ने  प्रशिक्षण में भाग ले रहे व्यक्तियों से प्रशिक्षण के उपरांत एक छोटी या बड़ी मशरूम यूनिट की स्थापना कर इस व्यवसाय को अपनाने के लिए प्रेरित किया जिससे कि प्रशिक्षण में भाग ले रहे व्यक्तियों की आमदनी में वृद्धि हो सके. प्रशिक्षण के समापन के अवसर पर केंद्र के डॉ गौरव पपनै ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया.

English Summary: 5 day mushroom production training gurugram agricultural experts Published on: 23 December 2024, 05:27 PM IST

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