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आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि प्राकृतिक खेती में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले राज्य के किसानों को 100 करोड़ रुपए इनाम में दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि सरकार ने समूचे राज्य में 2024 तक 100 प्रतिशत शून्य बजट वाली प्राकृतिक खेती (जैडबीएनएफ) हासिल करने का लक्ष्य रखा है। मुख्यमंत्री ने जैडबीएनएफ पर किसानों के एक प्रशक्षिण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि इस साल राज्य में पांच लाख किसानों ने इस विधि के तहत खेती अपनाई है। उन्होंने कहा " हमारा उद्देश्य अगले पांच साल में राज्य में सभी किसानों और समूची खेती योग्य भूमि (80 लाख हेक्टेयर) को जैडबीएनएफ में लाने का है। पांच साल में प्रत्येक गांव जैव गांव बन जाएगा।" मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा उद्देश्य राज्य में सभी 60 लाख किसानों को जैडबीएनएफ में लाने का है। आंध्र प्रदेश के किसान प्राकृतिक खेती में दुनियाभर के लिए आदर्श बनने चाहिए। हमें इसमें नोबेल पुरस्कार जीतना चाहिए और जो भी जीतेगा, उसे 100 करोड़ रुपए दिए जाएंगे।
ऐसी खेती जिसमें सब कुछ प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। कानपुर और उसके आसपास के करीब 100 एकड़ क्षेत्र में इस तरह की खेती जोर पकड़ने लगी है। किसानों में इसे काफी पसंद किया जा रहा है।
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इस तरह की खेती में कीटनाशक, रासायनिक खाद और हाईब्रिड बीज किसी भी आधुनिक उपाय का इस्तेमाल नहीं होता है। यह खेती पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। इस तकनीक में किसान भरपूर फसल उगाकर लाभ कमा रहे हैं, इसीलिए इसे जीरो बजट खेती का नाम दिया गया है। कानपुर और उसके आसपास के करीब 100 एकड़ क्षेत्र में यह खेती की जा रही है। इस जीरो बजट खेती के जनक महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर है जिनसे कानपुर के कुछ किसानों ने इस खेती के गुण सीखें और अब इसे यहां अपना रहे है।
जिलाधिकारी मुकेश मेश्राम कानपुर के कुछ किसानों के इस जीरो बजट खेती के प्रयासों से इतने प्रसन्न हैं कि उन्होंने कानपुर मंडल के करीब 1500 किसानों को इस नई तकनीक के बारे में जानकारी देने के लिए आगामी 21 से 24 अक्टूबर तक एक शिविर का आयोजन किया है। सम्मेलन में इस खेती के जनक महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर को बुलाया गया है ताकि वह अपने अनुभव बाकी के किसानों के साथ बांट सकें। चार दिन के प्रशिक्षण शिविर में आने वाले सभी किसानों के खाने-पीने तथा रहने का पूरा प्रबंध प्रशासन करेगा।रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर नीम, गोबर और गौमूत्र से बना ‘नीमास्त्र’ इस्तेमाल करते हैं। इससे फसल को कीड़ा नहीं लगता है। संकर प्रजाति के बीजों के स्थान पर देशी बीज डालते हैं।
देशी बीज चूँकि हमारे खेतों की पुरानी फसल के ही होते हैं इसलिए हमें उसके लिए पैसे नहीं खर्च करने पड़ते हैं जबकि हाईब्रिड बीज हमें बाजार से खरीदने पड़ते हैं जो काफी महँगे होते हैं।जीरो बजट खेती में खेतों की सिंचाई, मड़ाई और जुताई का सारा काम बैलो की मदद से किया जाता है। इसमें किसी भी प्रकार के डीजल या ईधन से चलने वाले संसाधनों का प्रयोग नहीं होता है जिससे काफी बचत होती है।
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जिलाधिकारी मेश्राम ने बताया कि जब प्रशासन को इस 'जीरो बजट खेती' के बारे में पता चला तो कानपुर के कुछ किसानों को इसका प्रशिक्षण लेने के लिए महाराष्ट्र में सुभाष पालेकर के पास भेजा गया। परिणाम उत्साह जनक रहे।
किसानों ने करके दिखाया कि कैसे बहुत कम खर्च यानी जीरो बजट में अपने ही खेतों से अधिक फसल उगाई जा सकती है।
उन्होंने बताया कि जब से इस खेती के बारे में प्रचार-प्रसार हुआ है तब से दूसरे प्रदेशों के किसान भी इसमें शामिल होने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं और वह भी इस खेती के बारे में प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहते हैं जिसमें छत्तीसगढ़, बिहार, मध्यप्रदेश के किसान प्रमुख है।
चंद्र मोहन, कृषि जागरण
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