भगवान बुद्ध आम बातचीत की भाषा में भी जीवन का ज्ञान दे देते थे. यही कारण है कि उनके विचारों को समझना सभी के लिए सरल है. बुद्ध के सामान्य जवीन से हमे बहुत कुछ सिखने को मिलता है. चलिए आपको उनके जीवन का एक प्रसंग सुनाते हैं.
भिक्षा की तलाश में महात्मा बुद्ध एक किसान के यहां पहुंचे. जब उन्होंने भिक्षा की मांग की तो किसान ने कहा कि मैं भारी श्रम करता हूं, वर्ष भर मेहनत करने के बाद ही कुछ अपने परिवार को खिला पाता हूं, तुम भी मेहनत क्यों नहीं करते, तुम्हें भी मेरी तरह किसानी करनी चाहिए.
बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा महोदय मैं भी आपकी तरह एक कृषक ही हूं. यह सुनकर वो किसान ठहाका मारकर हंसने लगा, उसकी हंसी में कई तरह के प्रश्न थे, जैसे अगर आप कृषक हैं, तो आपके हल, बैल, फसल और खेत आदि कहां है? आखिरकार उसने पुछ ही लिया कि आपके पास ज्ञान का भंडार है, आप अपनी बुद्धि, तर्क ज्ञान और शांति के उपदेशों के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इन सभी कामों को कृषि कैसे कहा जा सकता है.
मैं अमृत की खेती करता हूं
इस प्रश्न का जवाब देते हुए बुद्ध ने कहा की महाराज मैं श्रद्धा के बीजों को तपस्या की भूमि में वर्षा रूपी प्रजा के माध्यम से बोता हूं. जिस प्रकार आपके पास हल है, उसी प्रकार मेरे पास भी जागरूकता रूपी हल है. मेरी खेती को काम, क्रोध, मोह और मद जैसे खरपतवारों से नुकसान है, इसलिए इन्हें हटाने के लिए मैं विचारों का मंथन करता हूं. इस तरह ज्ञान रूपी फसल की खेती कर मैं आनंद, शांति, संतोष की उपज प्राप्त करता हूं. अंत में जिस तरह लोगों की भूख को मिटाने के लिए आप उन्हें अन्न प्रदान करते हैं, उसी तरह उनके अज्ञान को मिटाने के लिए मैं उन्हें आनंद, शांति और संतोष का अमृत प्रदान करता हूं.
जीवन में हर कोई किसान है
भगवान बुद्ध ने आगे कहा कि वास्तव में अपने-अपने कर्म के अनुसार इस दुनिया में हर कोई किसान ही है. इसलिए अपने जीवन में मनुष्य जिस कर्म की खेती करता है, उसी के अनुसार फल प्राप्त करता है. इस ज्ञान को सुनकर वो किसान महात्मा की शरण में आ गया.
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