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'शांति किसी भी मोल मिले समझो सस्ती मिली' - श्रीकृष्ण

वक्त अपने-आप को दोहराता है, यह झूठ नहीं है सच है. इस सच को मैं अपनी आंखों के सामने सार्थक होते देख रहा हूं. किस्सा पुराना ज़रुर है पर है रोचक. महाभारत में द्रौपदी के अपमान के बाद भीम ने भरी राजसभा में दो प्रतिज्ञाएं ली. एक यह कि वह द्रौपदी के वस्त्र चीर हरण करने वाले

गिरीश पांडेय
गिरीश पांडेय
mahabharat
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वक्त अपने-आप को दोहराता है, यह झूठ नहीं है सच है. इस सच को मैं अपनी आंखों के सामने सार्थक होते देख रहा हूं. किस्सा पुराना ज़रुर है पर है रोचक. महाभारत में द्रौपदी के अपमान के बाद भीम ने भरी राजसभा में दो प्रतिज्ञाएं ली. एक यह कि वह द्रौपदी के वस्त्र चीर हरण करने वाले दुःशासन की छाती का लहु पीएगा और दूसरी यह कि वह दुर्योधन की जांघ तोड़ेगा. भीम यह भी कहता है कि यदि वह ऐसा नहीं कर पाया तो वह अपने पूर्वजों को कभी अपना मुंह नहीं दिखाएगा. अब बात को थोड़ा आगे लिए चलते हैं. महाभारत युद्ध की ठन गई है. कौरवों और पांडवों में युद्ध के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं है. रक्त से रक्त और शव से शव गिराने की तैयारी पूरी हो चुकी है, तभी कृष्ण अपने स्थान से उठते हैं और कहते हैं - एक बार और शांति पहल की जाए. यकीन मानिए ये बात किसी और ने कही होती तो शायद पांडव उसके प्राण ले लेते. परंतु जो बात श्रीकृष्ण के मुख से निकली है वह तो अर्थहीन हो ही नहीं सकती.

श्रीकृष्ण कहते हैं कि ऐसे समय में जब तीर से तीर और गदाओं से गदाएं टकराने को आतुर हैं, शांति का एक अंतिम प्रयास करके देख लिया जाए और शांतिदूत बनकर स्वंय मैं हस्तिनापुर जाऊंगा. यह सुनते ही भीम अपने स्थान से उठते हैं और क्रोधित होकर कृष्ण से कहते हैं - हे कृष्ण, क्या तुम लाक्षागृह भूल गए ? क्या तुम पांचाली का अपमान भूल गए ? और यदि भूल गए हो और यह सोचते हो कि मैं भी भूल जाऊं, तो तुम गलत सोचते हो. मैं तो उसी क्रोधित अग्नि को अपनी छाती से लगाए जी रहा हूं. मैं न तो अपना अपमान भूला हूं और न ही अपनी प्रतिज्ञा.

अब ज़रा यहां ध्यान दीजिए. महाभारत में या कहीं और भी आपने श्रीकृष्ण का ये रुप नहीं देखा होगा. भीम से ऐसा सुनकर श्रीकृष्ण भोहें चढ़ाते हैं और गर्जन ध्वनि में भीम से कहते हैं - हे कौंतेय ! क्या तुम्हारा अपमान और तुम्हारी प्रतिज्ञा शांति से बढ़कर है ? ये न भूलो कि युद्ध हुआ तो तुम्हारी ओर से जो सेना युद्ध करेगी या जो रक्त इस धरा पर गिरेगा उस पर तुम्हारा अधिकार है. नहीं, उन शवों पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं. ज़रा ये तो सोचो कि तुम तो युद्ध कर रहे हो सिंहासन प्राप्त के लिए अर्थात अपने निहित स्वार्थ के लिए. 

परंतु जिन सैनिकों के शव रणभूमि में गिरेगें वो सिर्फ इसलिए युद्ध करेंगे, क्योंकि यह उनका धर्म है. इसलिए हे महारथी ! कृपा करके अपने अपमान और प्रतिज्ञा के अश्व पर लगाम लगाना सीखो. तुम्हारा अपमान और तुम्हारी प्रतिज्ञा चाहे कितनी भी बड़ी हो पर वह शांति से बड़ी नहीं हो सकती. ये बात गांठ बांध लो कि - शांति कोई विकल्प नहीं है, यह एक आवश्यकता है.

English Summary: mahabharata epic and relevent story Published on: 02 May 2019, 05:39 IST

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