जिला कांगड़ा के सुगड़वाला में स्थित छोटी नागनी माता का प्रसिद्ध मंदिर है. यह मंदिर भडवार (नूरपुर) नामक गांव में स्थित है. यह स्थान पठानकोट से 13 किलोमीटर कांगड़ा रोड पर स्थित है. बस के द्वारा बड़ी आसानी से 10-15 मिनट में यहां पहुंचा जा सकता है. कांगड़ा घाटी में रेल के द्वारा भी 'कंडवाल बैरिअर हाल्ट' पर उतर कर मात्र कुछ कदम की दूरी तय करके मंदिर तक जाया जा सकता हैं.
इस स्थान की सबसे बड़ी महत्ता यह है कि सांप द्वारा काटे गए व्यक्ति भी यहां 5 से 7 दिन रहते हैं और खुशी-खुशी स्वस्थ होकर घर लौट जाते हैं.
स्थान का इतिहास
आज से लगभग 90 वर्ष पूर्व जब कांगड़ा घाटी रेल निकली थी तब एक नेपाल निवासी गोरखा बाबा रेल विभाग में मेट का काम करते थे. बाबा कंडवाल में झोपड़ी बना कर रहते थे. उन्हें कईं प्रकार की सिद्धियां प्राप्त थीं. उनके धार्मिक प्रभाव के कारण कंडवाल की बंजरभूमि उपजाऊ बन गई. गांव के कुछ लोगों ने उन्हें जाने को कहा लेकिन बाबा के न मानने पर उन्होंने बाबा की झोपड़ी जला दी. फिर भी बाबा वहां अड़े रहे. यह समाचार पाकर बरंडा निवासी जालम सिंह संब्याल ग्रामवासियों को लेकर बाबा के पास पहुंचे. उन्होंने बाबा जी को अपने गांव में निर्मित शिवालय में चलने की प्रार्थना की. बाबा जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उस स्थान से दो पत्थर उठा कर बरंडा गांव आ गए और सुगड़नाला वन में कुटिया बनाकर रहने लगे. यह स्थान 'बाबे की कुटिया' के नाम से प्रसिद्ध हो गया.
लोगों का मानना है कि एक दिन समाधि में बैठे बाबा जी की लंबी जटाओं से नागनी माता साक्षात निकल कर नज़दीक के पिंडी स्थान पर समा गई. तब से कुटिया का नाम 'नागनी माता का मंदिर' पड़ गया. कहते हैं कि बाबा जी को अन्नपूर्णा माता की सिद्धि प्राप्त थी. बाबा एक छोटे से बर्तन में खिचड़ी बनाते और उसका भोग माता को लगाकर बाहर श्रद्धालुओं को प्रसाद के रुप में बांटते. अपार समूह में बांटने के बाद भी खिचड़ी समाप्त नहीं होती थी. एक बार एक गोरखा व्यक्ति बाबा के पास आया और अपने साथ लाए छोटे से बालक को बाबा के चरणों में अर्पित कर दिया. बाबा जी ने बच्चे का पालन-पोषण किया. बालक बचपन से ही बाबा जी की सेवा में जुट गया. बालक की आयु जब बारह साल हुई तो बाबा जी ज्योति जोत में समा गए. अब वह बालक उदास रहने लगा. वह साधु मंडली में शामिल हो गया और उनके साथ ही कहीं दूर निकल गया और कभी लौटकर नहीं आया. इसके बाद मंदिर की देखरेख के लिए बरंडा गांव के निवासियों ने एक कमेटी बनाई जो मंदिर की देखरेख करने लगी. आज भी स्थानीय लोगों की कमेटी ही मंदीर की देखभाल कर रही है. इस पावन स्थल की मिट्टी को शक्कर कहते हैं. यह शक्कर सांप द्वारा काटे गए स्थान पर लगाई जाती है और प्रसाद में खाने को भी दी जाती है.
धन्य है हिमाचल की देवभूमि, जहां अनेक स्थानों पर देवी-देवता साक्षात निवास करते हैं. उनके साक्षात चमत्कार और प्रकृति की अनुपम लीलाएं विश्वभर से श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींच लाती है फिर चाहे वो ज्वालामुखी मां की साक्षात ज्वाला हो या माता चिंतपूर्णी का आकर्षण. ब्रजेश्वरी माता, नयनादेवी, मणिकरण आदि अनेकों स्थान श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण और रहस्य का केंद्र बने हुए हैं.
नंदकिशोर परिमल
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