लफ्ज़ सर्द हो चले हैं
पिघले तो कुछ कहूं
रात अभी बाकी है
सवेरा हो तो कुछ कहूं
अपने से भी अकेला हूं
साया साथ हो चले तो कुछ कहूं
यादों के धुंधल के साथ नहीं
आखों का पानी पोछ लूं तो कुछ कहूं
हूजूम सी भीड़ बढ़ चली है
कोई एक साथ चले तो कुछ कहूं
आसमान में तारे तो बहुत हैं
चांद एक मुस्कुराए तो कुछ कहूं
रात की नींद में ख्वाब तो बहुत हैं
दिन में ख्वाब पूरे हों तो कुछ कहूं
अकेला हो आया था लेकिन
चार लोग उठा कर चलें तो
क्या कुछ कहूं
अब कहने-सुनने को कुछ बचा नहीं
फिर सुनो कुछ कहूं ।
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