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दुनिया भर के लोग चावल और गेहूं से बने पदार्थ जैसे की रोटी, दलिया, पास्ता वगैरह को पसंद किया जाता है. नयी पीड़ी भी तुरंत बनने वाले पदार्थो को ही तरजीह देती है. आजकल की भागदौड़ की जिंदगी में यह "सो कॉल्ड" फ़ास्ट फ़ूड जैसे की पास्ता का चलन कुछ ज्यादा ही है.
गेहूं उगाने और चावल उगाने में समय और पानी भी जाएदा लगता है.
जो पहले मोटे अन्नाज के तौर पर देखा जाता था और यह ग्रामीण गरीब लोगों का ही भोजन था जो की खेत में हर राज्य में एक मॉडरेट तापमान पर उगाया जा सकता था इसे "बाजरा" जाना जाता है से भी अब पास्ता इत्यादि बना कर देखा गया और पाया गया की यह अन्नाज से बनाये पास्ते से अधिक पौष्टिक है.
वैज्ञानिकों का भी यही मानना है की बाजरे का पास्ता कम मेहनत और कम पानी और कैसे भी मौसम में उगाया जा सकता है.
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट-हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (केन्द्रीय कटाई उपरान्त अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान) वैज्ञानिक कीर्ति जलगांवकर व मनोज कुमार महावर और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक एस के झा ने ये अध्ययन किया है.
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केन्द्रीय कटाई उपरान्त अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. कीर्ति जलगांवकर बताती हैं, "कई महीनों के शोध के बाद हमने देखा कि गेहूं के मुकाबले बाजरे से बना पास्ता ज्यादा पौष्टिक होता है अभी और शोध बाकी हैं, जिसके बाद बाजरा से बना पास्ता मार्केट में आ सकता है."
वैज्ञानिकों ने बाजरा को हाइड्रोक्लोरिक एसिड में भिगोकर भूरे रंग को हटा दिया गया, हाइड्रोक्लोरिक एसिड का प्रयोग आमतौर पर खाद्य उद्योग में होता है, तो इससे कोई नुकसान नुकसान भी नहीं होता है. ये भूरा रंग पॉलीफेनॉल की वजह से होता है, जो कम पीएच के प्रति संवेदनशील होते हैं.
अभी तक आपने गेहूं से बने पास्ता को खाया होगा, लेकिन जल्द ही आपको बाजरे से बना पास्ता खाने को मिलेगा, जो दूसरे पास्ता के मुकाबले ज्यादा पौष्टिक भी रहेगा. वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि गेहूं के पास्ता के मुकाबले बाजरे से बना पास्ता ज्यादा पौष्टिक होता है. क्योंकि भूरे रंग का बाजरे का रंग ज्यादा आकर्षक नहीं होता है, ऐसे में वैज्ञानिकों इस रंग को हटाकर देखा तो पाया कि इससे इसकी पौष्टिकता में कोई कमी नहीं आयी है, यह पाया गया कि रंग को हटाने से पास्ता का रंग सुधार हुआ और यह लगभग गेहूं पास्ता की तरह दिखता था। इसमें ये भी देखा गया कि बाजरा और गेहूं-बाजरा से बना पास्ता गेहूं से बने पास्ता से अधिक पौष्टिक होता है.
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इस अध्ययन में बाजरे के मूल रूप और रंग हटाने के बाद पौष्टिकता को देखा गया, दोनों में कोई अंतर नहीं था. इसके बाद चार तरह के गेहूं, बाजरा, रंगहीन बाजरा और गेहूं-बाजरा से पास्ता बनाए गए. इसमें कई तरह अनाज को शामिल किया गया था। इसके बाद उनकी पौष्टिकता, पकने के बाद की गुणवत्ता और रंग की तुलना की गई. इसके बाद इसमें पाया गया कि बाजरा से बने पास्ता में प्रोटीन, वसा जैसे तत्वों की मात्रा गेहूं से बने पास्ता के तुलना में अधिक थी। लेकिन दूसरों की तुलना में गेहूं पास्ता में खाना पकाने के गुण और बनावट बेहतर थीं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गेहूं में ग्लूटेन होता है जो पास्ता को एक बांधे रखता है, जिसके परिणामस्वरूप बेहतर स्थिरता और खाना पकाने के दौरान नुकसान कम हो जाता है.
बाजरे की खेती भारत में मुख्य रूप से अधिक तापमान और शुष्क वातावरण वाले लगभग सभी राज्यों में की जाती है. बाजरे (Millet) की फसल को बोते समय अधिक तापमान और आर्द्रता की आवश्यकता होती है, जबकि पकते समय शुष्क वतावरण की आवश्यकता होती है. बाजरे (Millet) की फसल भारत में सबसे ज्यादा राजस्थान में भारत के कुल क्षेत्रफल का 50 प्रतिशत उगाया जाता है, जिसका उत्पादन 1/3 भाग है. कम वर्षा वाले स्थानों के लिए यह बहुत ही अच्छी फसल है, जिसकी खेती 38 से 50 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती सफलतापुर्वक की जा सकती है. किसान भाई आधुनिक और सघन पद्धतियां अपनाकर इसके उत्पादन में बढ़ोतरी ला सकते है.
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बाजरे (Millet) की खेती शुष्क जलवायु अर्थात कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी सफलतापुर्वक की जा सकती है. इस फसल के लिए हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है.
यह फसल बरसात की फसल है, लेकिन इस फसल को ज्यादा पानी की आवश्यकता नही है| बाजरे (Millet) की फसल में पानी नही खड़ा होना चाहिए उसकी निकासी अच्छी तरह करें, नही तो फसल खराब हो सकती है.
बाजरे की परंपरागत किस्में इस प्रकार है, आईसीएम्बी. 155, डब्लूसीसी. 75, आईसीटीबी. 8203, एचएचबी. 67, पूसा कम्पोजिट 612, 443 और 383 इत्यादि किस्में बरानी क्षेत्रों के लिए है.
बाजरे की संकर किस्मे इस प्रकार है, पूसा संकर 415, 605, 322 और 23, आईसीएमएच. 441 इत्यादि सरकार द्वारा प्रमाणित किस्में है जो सिंचित और बरानी दोनों क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है|
बाजरे की फसल के लिए खेत की तैयारी पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए और उसके बाद 2 से 3 जुताई हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए और पाटा लगा दे. ताकि मिट्टी भुरभुरी व हवा प्रभावी हो जाए. अच्छी पैदावार के लिए आखिरी जुताई मे 100 से 120 क्विंटल गोबर की गली खाद प्रति हेक्टेयर डालनी चाहिए और मिट्टी में अच्छी तरह मिलाना चाहिए.
चंद्र मोहन, कृषि जागरण
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