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दिपावली का मूल उद्देश्य है आध्यात्मिक शक्ति का संचय करना और यह स्मरण रखना कि धर्म चाहे कितना ही सूक्ष्म क्यों न हो वह अधर्म पर विजय प्राप्त करता ही है। वस्तुत: दिपावली अंत:शुद्धि का महापर्व है। आज वातावरण में चारों तरफ विचारों का प्रदूषण है। ऐसी स्थिति में दिपावली का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। सर्दी और गर्मी की ऋतुओं के मिलन काल में यह त्योहार आता हैं। इन दिनों शरीर, मन और प्रकृति के विभिन्न घटकों में विशेष रूप से उल्लास भरा रहता है। वातावरण में विशिष्टता व्याप्त रहती है। शरीर दबे हुए रोगों को निकालने का प्रयास करता है।
इसीलिए इन दिनों रोग बढ़ जाते हैं। आयुर्वेद दिपावली को शरीर शोधन के लिए विशेष उपयोगी मानता है। प्रकृति की शोभा देखते ही बनती है। वनस्पतियां नवीन पल्लव धारण करती हैं। प्रकृति का उल्लास अपना प्रभाव समूचे वातावरण पर डालता है। जीवधारियों के मन विशेष प्रकार की मादकता से भर जाते हैं। दिपावली के साथ राम का अयोध्या आगमन एवं रामराज्य की स्थापना का इतिहास है। इस कारण इस दिपावली का महत्त्व सर्वाधिक है।
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दिपावली के समय प्रकृति में एक विशिष्ट ऊर्जा होती है,जिसको आत्मसात कर लेने पर व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है। व्रत में हम कई चीजों से परहेज करते हैं और कई वस्तुओं को अपनाते हैं। आयुर्वेद की धारणा है कि पाचन क्रिया की खराबी से ही शारीरिक रोग होते हैं। क्योंकि हमारे खाने के साथ जहरीले तत्व भी हमारे शरीर में जाते हैं। आयुर्वेद में माना गया है कि व्रत से पाचन प्रणाली ठीक होती है। व्रत उपवास का प्रयोजन भी यह है कि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपने मन-मस्तिष्क को केंद्रित कर सके। मनोविज्ञान यह भी कहता है कि कोई भी व्यक्ति व्रत-उपवास एक शुद्ध भावना के साथ रखता है। उस समय हमारी सोच सकारात्मक रहती है, जिसका प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है, जिससे हम अपने भीतर नई ऊर्जा महसूस करते हैं। आयुर्वेद में शारीरिक शुद्धि के लिए पंचकर्म का प्रावधान भी नवरात्र में करने के लिए होता है।
इस समय प्रकृति अपना स्वरूप बदलती है। वातावरण में एक अलग-सी आभा देखने को मिलती है। पतझड़ के बाद नवीन जीवन की शुरुआत, नई पत्तियों और हरियाली की शुरुआत होती है। संपूर्ण सृष्टि में एक नई ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करने के लिए हमें व्रतों का संयम-नियम बहुत लाभ पहुंचाता है। दिपावली में कृषि-संस्कृति को भी सम्मान दिया गया है। मान्यता है कि सृष्टि की शुरुआत में पहली फसल जौं ही थी।
हमारी संस्कृति में देवी-देवताओं को ऊर्जा का स्त्रोत माना गया है। अपने भीतर की ऊर्जा को जगाना ही देवों की उपासना का मुख्य प्रयोजन है। दिपावली और व्रत करना मानसिक-शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं। इन सबके मूल में है मनुष्य का प्रकृति से तालमेल, जो जीवन को नई सार्थकता प्रदान करता है।
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