देश में प्राकृतिक खेती का प्रचलन लगातार बढ़ता जा रहा है. इस खेती में किसान किसी रसायन का इस्तेमाल नहीं करते हैं. यह खेती बड़े पैमाने पर ऑन-फार्म बायोमास रीसाइक्लिंग पर आधारित है, जिसमें बायोमास मल्चिंग, गाय के गोबर, मूत्र के इस्तेमाल पर प्रमुख जोर दिया जाता है. मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए नीम से बने जैविक उर्वरकों का छिड़काव किया जाता है.
प्राकृतिक खेती के फायदे
प्राकृतिक खेती का उद्देश्य मिट्टी की गुणवत्ता को खराब किए बिना फसल की पैदावार को बेहतर करना है. यह फसलों में विविधता को बनाए रखना, प्राकृतिक संसाधनों का सही इस्तेमाल करना. जैविक खाद और एक बेहतर खेती के वातावरण को बढ़ावा देता है. प्राकृतिक खेती एक जैव विविधता के साथ काम करती है यह मिट्टी की जैविक गतिविधि को बढ़ाने के साथ-साथ खाद्य उत्पादन को भी बढ़ावा देती है.
उपज में सुधार
प्राकृतिक खेती में पैदावार पारंपरिक खेती की तुलना में काफी अच्छी होती है. इससे किसानों का मुनाफा भी बढ़ता है और इससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होती है. पिछले कई सालों में परंपरागत कृषि करने वाले किसान इस प्राकृतिक खेती की तरफ ज्यादा आकर्षित हुए हैं. इसके अलावा प्राकृतिक खेती मृदा संरक्षण, बेहतर कृषि विविधता और वातावरण में होने वाले कार्बन और नाइट्रोजन पदचिह्नों की कमी में भी योगदान देती है.
उत्पादन में कम लागत
प्राकृतिक खेती का उद्देश्य किसानों को ऑन-फार्म, प्राकृतिक और घरेलू संसाधनों का उपयोग कर बेहतर उत्पादन करना है. इस विधि में किसानों की लागत कम होती है. प्राकृतिक खेती का सबसे तात्कालिक प्रभाव मिट्टी के स्तर पर पड़ता है. रोगाणुओं और केंचुओं पर प्राकृतिक कृषि पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं. केमिकल फ्री कृषि करने से मृदा के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता हैं और यह फसल के उत्पादन में बेहतर योगदान देती है.
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प्राकृतिक खेती के लिए पोर्टल
भारत सरकार ने देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक वेबसाइट http://naturalfarming.dac.gov.in/ की शुरुआत की है. इस वेबसाइट पर प्राकृतिक खेती से संबंधित हर प्रकार की जानकारियां मिल जाती हैं. इसके अलावा सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती के लिए उठाए जा रहे सभी कदम के बारे में जानकारी मिल जाएगी. यह पोर्टल को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा विकसित किया गया है.
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