आहारीय रेशा, आहार में मौजूद रेशे तत्त्व को कहते हैं. ये पौधों से प्राप्त होने वाले ऐसे तत्व हैं जो स्वयं तो अपाच्य होते हैं, किन्तु मूल रूप से पाचन क्रिया को सुचारू बनाने में अपना योगदान देते हैं. रेशे शरीर की कोशिकाओं की दीवार का निर्माण करते हैं. इनको एन्ज़ाइम भंग नहीं कर पाते हैं. अतः ये अपाच्य होते हैं. कुछ समय पूर्व तक इन्हें आहार के संबंध में बेकार समझा जाता था, किन्तु बाद की शोधों से ज्ञात हुआ कि इनमें अनेक यांत्रिक एवं अन्य विशेषताएं होती हैं, जैसे ये शरीर में जल को रोक कर रखते हैं, जिससे अवशिष्ट (मल) में पानी की कमी नहीं हो पाती है और कब्ज की स्थिति से बचे रहते हैं. रेशे वाले भोजन स्रोतों को प्रायः उनके घुलनशीलता के आधार पर भी बांटा जाता है. ये रेशे घुलनशील और अघुलनशील होते हैं.
घुलनशील रेशे:- घुलनशील रेशे पानी में आसानी से घुल जाते है तथा गर्म करने पर जेल भी बनाते है.घुलनशील रेशे शरीर में लाभकारी वैक्टीरिया को भी बढाते है.
अघुलनशील रेशे:- अघुलनशील रेशे पानी में घुल नहीं पाते है.ये आतों की मासपेशियों की क्रमानुकुंचन गति को बनाये रखने में मदद करते है.
रेशे के सेवन से लाभ:-
कब्ज के उपचार में:- पानी के अधिक अवशोषण करने के कारण व क्रमानुकुचन गति पर नियन्त्रण के कारण मल को निष्काशित करने में रेशे सहायक है.
कालेस्ट्राल कम करने में:- रेशे पित्त को अवशोषित कर उसे मल के साथ बाहर निकाल देते है जो कि कालेस्ट्राल में परिवर्तित होता है.अतः रेशे कालेस्ट्राल को कम करने में मददगार होते है.
वजन कम करन में:- रेशे पाचन क्रिया को धीमा कर एवं अधिक जल को अवशोषित कर अधिक समय तक पेट में रहता है और तृप्ति प्रदान करता है जिससे भूख कम लगती है एवं वजन नियन्त्रित होता है.
मधुमेह के नियन्त्रण में:- रेशे शर्करा को रक्त में धीमी गति से स्त्रावित होने देता है इससे रक्त में शर्करा का स्तर बनाये रखने में मदद मिलती है.
रेशे के मुख्य स्त्रोत
फल:- सत्तरा, अमरूद, अनार, पपीता इत्यादि.
सब्जिया:- हरी पत्तेदार सब्जिया, फूलगोभी, पता गोभी, गाजर, मटर इत्यादि.
मोटा अनाज:- दलिया, गेहूं का आटा (चोकर सहित), बाजरा मक्का इत्यादि.
साबुत दालें:- मूंग, मोठ, सोयाबीन, राजमा, साबुत चने इत्यादि.
Share your comments