1. Home
  2. लाइफ स्टाइल

हम जो भोजन खा रहे हैं, क्या उसमे पौष्टिक तत्व पूरे हैं?

आज कल लोग अपने स्वाथ्य के प्रति काफी सजग हो गए हैं, थोड़ा बीमार पड़ने पर भी डॉक्टर को दिखाना, खून की जाँच करवाना, सुबह सवेरे सैर को निकल जाना, व्यायाम, योगा करके तंदरुस्त रहने की कोशिश रहती है, संतुलित आहार और बाहर का खाना या फिर कोई कोल्ड ड्रिंक न लेना, सभी तैयारियाँ सेहतमंद रहने के लिए ही हैं! संतुलित आहार के बावजूद भी यदि खून की जाँच में यह पाया जाता है की जरूरी विटामिन जो शरीर के लिए आवश्यक हैं की भोजन में कमी है तो चौंकना स्वाभाविक है,

आज कल लोग अपने स्वाथ्य के प्रति काफी सजग हो गए हैं, थोड़ा बीमार पड़ने पर भी डॉक्टर को दिखाना, खून की जाँच करवाना, सुबह सवेरे सैर को निकल जाना, व्यायाम, योगा करके तंदरुस्त रहने की कोशिश रहती है, संतुलित आहार और बाहर का खाना या फिर कोई कोल्ड ड्रिंक न लेना, सभी तैयारियाँ सेहतमंद रहने के लिए ही हैं! संतुलित आहार के बावजूद भी यदि खून की जाँच में यह पाया जाता है की जरूरी विटामिन जो शरीर के लिए आवश्यक हैं की भोजन में कमी है तो चौंकना स्वाभाविक है!

राष्ट्रीय पोषण संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन दशकों में खाद्य पदार्थों से पौष्टिक तत्व तेजी से कम हुए हैं। वही देश, वही देश की धरती और वही किसान तो फिर खाद्य पदार्थों में पौष्टिक तत्व कैसे कम हो गए, जिस आहार का  सेवन कर रहे हैं, वह पहले जितना स्वास्थ्यवर्द्धक नहीं रहा। और इसी वजह से शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल रहा है।

राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एनआईएन) की ओर से जारी किये गए आँकड़ों के अनुसार, इस समय  हम जो भोजन खा रहे हैं, वह पिछले तीन दशकों के मुकाबले कम पौष्टिक है। इण्डियन फूड कम्पोजिशन टेबल 2017 रिपोर्ट के शोधकर्ताओं ने 6 अलग-अलग स्थानों से लिये गए 528 भोज्य पदार्थों में 151 पोषक तत्वों को मापा है। मोटा अनाज लघु पोषक तत्वों से भरपूर होता है। "डाउन टू अर्थ" का विश्लेषण बताता है कि बाजरा, जौ, ज्वार और मक्के में थाइमीन, आयरन और राइवोफ्लेविन का स्तर कम हुआ है। `डाउन टू अर्थ` ने एनआईएन द्वारा इससे पहले 1989 में खाने में मापे गए पोषक तत्वों से इसकी तुलना की है। डाउन टू अर्थ का विश्लेषण बताता है कि पोषक तत्वों की मात्रा में चिन्ताजनक गिरावट दर्ज की गई है

एनआईएन ने 2017 की अपनी रिपोर्ट में 1989 के आँकड़ों की तुलना 1937 यानी ब्रिटिश काल में खाद्य पदार्थों में मौजूद पोषक तत्वों से की है। इस तुलना से भी पता चलता है कि पिछले 50 साल में बहुत से खाद्य पदार्थों में पोषक तत्व कम हुआ है। एनआईएन के इस साल के आँकड़े की तुलना 1937 के आँकड़ों से करने पर पता चलता है कि अब हमारे खाने की थाली में कितने कम तत्व मौजूद हैं। बाजरा पूरे ग्रामीण भारत में कार्बोहाइड्रेट की पूर्ति के लिए खाया जाता है ताकि ऊर्जा मिलती रहे। विश्लेषण के अनुसार, बाजरे में कार्बोहाइड्रेट पिछले तीन दशकों में 8.5 प्रतिशत कम हुआ है। गेहूँ में 9 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट घटा है।

इसी तरह दालों में भी प्रोटीन की मात्रा कम हुई है। दलहन में मौजूद प्रोटीन ऊतकों के निर्माण और मरम्मत में सहायक होता है। साबुत मसूर में 10.4 प्रतिशत प्रोटीन में गिरावट हुई है जबकि साबुत मूँग में 6.12 प्रतिशत प्रोटीन कम हुआ है।

दूसरी तरफ कुछ खाद्य पदार्थों में प्रोटीन बढ़ा भी है। मसलन चिचिंडा और चावल में क्रमशः 78 प्रतिशत और 16.76 प्रतिशत इजाफा हुआ है।शरीर के विकास के लिये जरूरी लघु पोषक तत्व मसूर, मूँग और पालक जैसे कुछ भोज्य पदार्थों में बढ़े हैं। लेकिन अधिकांश खाद्य पदार्थों में लघु पोषक तत्व कम हुए हैं, खासकर फलों और सब्जियों में। आलू में आयरन बढ़ा है जबकि थाइमीन (विटामिन बी 1), मैग्नीशियम और जिंक में गिरावट दर्ज की गई है। बन्द गोभी में इन चार पोषक तत्वों में 41-56 प्रतिशत तक कमी आई है। पके टमाटरों में थाइमीन, आयरन और जिंक 66-73 प्रतिशत कम हुआ है। हरे टमाटरों में आयरन 76.6 प्रतिशत जबकि सेब में 60 प्रतिशत पहले से कम पाया गया है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने पोष्टिक तत्वों के कम होने का कारण अत्यधिक खेती है जिसमें  जमीन में मौजूद लघु पोषक तत्व कम कर दिये हैं। भारत में इस समस्या का यह बड़ा कारण हो सकता है।

भोपाल स्थित इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ सॉइल साइंस का आकलन बताता है कि देश की मिट्टी में जिंक की कमी है। साथ ही मिट्टी में 18.3 प्रतिशत बोरॉन, 12.1 प्रतिशत आयरन, 5.6 प्रतिशत मैग्नीशियम और 5.4 प्रतिशत कॉपर कम है। इस बदलाव का एक कारण यह भी हो सकता है कि पहले और अब उगाई जाने वाली फसलों की किस्में अलग हैं। व्यावसायिक खेती के अब के दौर में सारा जोर अत्यधिक उत्पादन पर है न कि आहार के पोषण के स्तर पर।

वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर भी पौधों में पौष्टिक तत्वों पर असर डाल रहा है।  नेचर में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वर्तमान परिस्थितियों और 2050 में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड की सम्भावना की स्थिति में उगाए जाने वाले गेहूँ के पौष्टिक तत्वों का तुलनात्मक आकलन किया है। उन्होंने पाया है कि बढ़े कार्बन डाइऑक्साइड में उगने वाले गेहूँ 9.3 प्रतिशत जिंक, 5.1 प्रतिशत आयरन, 6.3 प्रतिशत प्रोटीन कम होगा। इन परिस्थितियों में उगने वाले चावल में 5.2 प्रतिशत आयरन, 3.3 प्रतिशत जिंक और 7.8 प्रतिशत प्रोटीन में कमी होगी।

वैश्विक स्तर पर इस समस्या का समाधान जैविक खेती में देखा जा रहा है। 2007 में जर्नल ऑफ एग्रीकल्चर एंड फूड केमिस्ट्री में इस सम्बन्ध में अध्ययन प्रकाशित किया गया। शोधकर्ताओं ने कैलिफोर्निया-डेविस विश्वविद्यालय में रखे गए सूखे टमाटर के नमूनों का अध्ययन किया। नमूनों में 1994 व 2004 में परम्परागत और जैविक तरीके से उगाए गए टमाटर शामिल थे। अध्ययन में पता चला कि जैविक टमाटरों में क्वरसेटिन और कैंफेरोल जैसे फ्लेवोनॉइड्स अधिक थे।

चन्दर मोहन
कृषि जागरण, नई दिल्ली

 

English Summary: Are we eating the food, are nutritious elements in it? Published on: 31 December 2017, 01:20 AM IST

Like this article?

Hey! I am . Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News