शतावरी एक कंदिल जड़ सहित बहुवर्षीय पौधा है. इसकी जड़े ताजी चिकनी होती है, लेकिन सूखने पर अधोमुखी झुर्रियां विकसित हो जाती है. यह एक बहुवर्षीय बढ़ने वाला पौधा है जिसके फूल जुलाई से अगस्त तक प्राय: खिलते है. इसकी खेती हेतु 600 - 1000 मिमी या इससे कम वार्षिक औसत वर्षा जरूरी होती है.
बुवाई हेतु मिट्टी और जलवायु
बुलाई - दोमट से चिकनी - दोमट, 6 -8 पीएच सहित.
अधिक उत्पादन के कारण बीज बेहतर होते है जो खेती में कम अंकुरण की क्षति पूर्ति करते है.
बीज मार्च से जुलाई तक एकत्र किये जा सकते है.
नर्सरी तकनीकी
पौध उगाना :
बीजों को खाद की अच्छी मात्रा से युक्त भलीभांति तैयार और उभरी नर्सरी क्यारियों में जून के पहले सप्ताह में बोया जाता है. क्यारियां आदर्शरूप से 10 मी. से 1 मी. के आकर में होनी चाहिए. बीज पंक्ति में 5 -5 सेमी की दूरी में बोये जाते है और बालू की एक पतली परत से ढके जाते है. अंकुरों को उगाने के लिए एक हेक्टेयर फसल के लिए लगभग 7 किग्रा बीजों की जरूरत होती है. शीघ्र और अधिक अंकुरण प्रतिशत को प्राप्त करने के लिए बीजावरण को मुलायम बनाने हेतु पानी या गोमूत्र में पहले से भिगोने की आवश्यकता होती है. बीज बोने के 20 दिन के बाद अंकुरण प्रारम्भ होता है और 30 दिनों में पूरा हो जाता है.
खेत में रोपाई
भूमि की तैयारी और उर्वरक प्रयोग :
भूमि को गहरे हल से जोतना चाहिए और फिर उसे समतल करना चाहिए.
भूमि में मेड़ और कुंड़ लगभग 45 सेमी की दूरी पर बनाये जाते है.
लगभग 10 टन खाद को रोपण से एक माह पहले मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाते है.
एक तिहाई नाइट्रोजन और फॉस्फेट तथा पोटाश की पूर्ण खुराक रोपाई से पहले पंक्तियों में 10 -12 सेमी तक की गहराई में डालनी चाहिए.
रोपाई :
पौध बीज बोने के 45 दिनों बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाती है तथा जुलाई में मानसून के प्रारम्भ में खेत में रोपे जा सकते है.
अंतर फसल प्रणाली :
शतावरी सामान्यता : एकफसल के रूप में उगायी जाती है लेकिन इसको कम प्रकाश वाले बागों में फलों के पेड़ों के साथ भी उगाया जा सकता है. पौधों को सहारे की आवश्यकता होती है. अत : खम्भे या झाड़ियां सहारे का काम करती है.
निराई-गुड़ाई:
बची हुई दो तिहाई नाइट्रोजन को दो बराबर मात्राओं में सितम्बर और फरवरी के अंत में मेड़ों पर प्रयोग किया जाता है. उर्वरक पंक्तियों के बीच में छितराया जाता है और मिट्टी में मिलाया जाता है तथा उसके बाद सिंचाई की जाती है. खेत को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए निराई व गुड़ाई क्रियायें जरूरी है.
सिंचाई :
पौध को खेत में जमाने के लिए रोपाई के तुरंत बाद एक बार सिंचाई अवश्य करनी चाहिए.
दूसरी सिंचाई 7 दिनों बाद की जाती है. यदि 15 से अधिक दिनों तक कोई वर्षा या सूखे का दौर रहता है तो एक और बार सिंचाई करनी चाहिए.
रोग व कीट नियंत्रण :
कोई गंभीर कीट परजीवी या रोग इस फसल में नहीं देखा गया है.
इस पर सब्सिडी :
इसकी खेती करने वाले किसानों को राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की ओर से 30 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है.
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