औषधीय गुणों से भरपूर बच यानी स्वीट फ्लैग (Sweet Flag) एरेसी कुल का पौधा माना जाता है जिसका वैज्ञानिक नाम एकोरस केलमस है. वैसे तो भारत में बच का पौधा देश के अधिकांश हिस्सों में पाया जाता है लेकिन यह बहुतायत में मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और बिहार राज्य में उगता है.
मध्य प्रदेश के सतपुड़ा मेकल, विंध्य पठारी, सोन घाटी, नर्मदा किनारों पर विशेष रूप से बच पाया जाता है. इसका पौधा गीली, दलदली और नदी-नालों के किनारे आसानी से उगता है. बच की खेती किसानों को अच्छी आमदानी दिला सकती है. तो आइए जानते हैं बच की वैज्ञानिक खेती की पूरी जानकारी-
बच का उपयोग
बच औषधीय गुणों से भरपूर होता है और इसका उपयोग बदहजमी, श्वास रोगों, मूत्र, दस्त, गर्भ, हीस्टीरिया और खांसी में लाभदायक माना जाता है.
बच की खेती के लिए जलवायु एवं मिट्टी
जहां सालाना 70 से 250 सेंटीमीटर बारिश होती और न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस तथा अधिकतम तापमान 38 डिग्री सेल्सियस रहता हो वहां बच की खेती आसानी से की जा सकती है. वहीं इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उत्तम मानी जाती है. इसकी खेती के लिए पर्याप्त सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए. गीली तथा दलदली मिट्टी इसके लिए उत्तम है.
बच की खेती के लिए भूमि की तैयारी
बच की खेती के लिए बारिश पूर्व एक दो गहरी जुताई कर लेना चाहिए. इसके बाद रोपाई से पहले भूमि को दलदली बनाकार तैयार कर लेना चाहिए. धान की तरह ही इसके लिए भूमि की तैयारी की जाती है.
बच की खेती के लिए संवर्धन व रोपाई
प्लांटिंग मटेरियल तैयार करने के लिए पुराने राइजोम को गीली में मिट्टी में दबाकर रखा जाता है. अकुंरण होने के बाद राइजोम को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर तैयार भूमि में रोपाई की जाती है. इन अंकुरित राइजोम की रोपाई जून महीने में बारिश शुरू होते ही की जाती है. इसके टुकडे़ 30X30 सेंटीमीटर की दूरी और 4 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपा जाता है. रोपाई के बाद यदि भूमि गीली या दलदली नहीं है तो सिंचाई कर देना चाहिए.
बच की खेती के लिए खाद
बच की खेती के लिए सड़ी हुई गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद का उपयोग करना चाहिए. प्रति हेक्टेयर लगभग 15 ट्राली गोबर खाद पर्याप्त होती है.
बच की खेती के लिए सिंचाई, निराई व गुड़ाई
गौरतलब है कि बच की खेती गीली तथा दलदली मिट्टी में की जाती है. ऐसे में बारिश के दिनों में इसकी फसल में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है. लेकिन अन्य दिनों में 2 से 3 दिनों में पानी देना चाहिए. दरअसल, इसके अच्छे उत्पादन के लिए पर्याप्त नमी का होना बेहद जरूरी है. जहां दलदली और पानी भरी भूमि जहां अन्य फसलें नहीं हो सकती वहां इसकी खेती आसानी से ली जा सकती है.
बच की खेती से मुनाफा
मार्च-अप्रैल महीने में इसकी पैदावार परिपक्व हो जाती है और इसकी पत्तियां पीली पड़ने लगती है. उस समय इसके पौधे को जड़ समेत खोद लिया जाता है. वहीं बाद में बच की पत्तियों को राइजोम से अलग कर लेना चाहिए. अब राइजोम को अच्छी तरह धोकर छांव वाली जगह में अच्छी तरह से सुखा लेना चाहिए. इसके बाद इसे बोरों या थैलों में भरकर मंडी ले जाया जाता है. प्रति हेक्टेयर लगभग 40 से 41 क्विंटल राइजोम का उत्पादन होता है. एक हेक्टेयर से लगभग 1 लाख रूपये का मुनाफा होता है. वहीं प्रति एकड़ लगभग 26 हजार का खर्च होता है और 40 हजार का शुध्द मुनाफा होता है. इसका सुगंधित तेल 2000 से 3000 हजार रूपये प्रति किलोग्राम बिकता है. अंर्तराष्ट्रीय बाजार में बच का तेल 6600 रूपये प्रति किलोग्राम है.
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