कोरोना महामारी के बाद से दुनियाभर में हर्बल प्रॉडक्ट्स और आयुर्वेदिक दवाओं की मांग बढ़ गई है. यही कारण है कि अब किसान अनाजी और सब्जी फसलों के साथ हर्बल फसलों की खेती पर भी जोर दे रहे हैं. हर्बल यानी औषधीय फसलों की खेती में लागत से 3 गुना ज्यादा तक आमदनी हो जाती है. मिट्टी की सेहत भी बेहतर बनी रहती है. ऐसी ही मोटी कमाई वाली औषधीय फसलों में शामिल है मेंथा की खेती, मेंथा को मिंट, पिपरमेंट या पुदीना के नाम से भी जाना जाता है. वैसे तो इसकी खेती भारत के कई इलाकों में की जाती है, लेकिन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और पंजाब के किसान मेंथा की खेती करते हैं.
अनुकूल जलवायु
यह एक टैम्प्रेट क्लामेटिक का पौधा है. आम भाषा में कहे तो मेंथा की बढ़वार के समय बारिश का होना बहुत बेहतर माना जाता है, ध्यान रखें कि कटाई के समय वायु मंडल साफ हो और सूर्य का प्रकाश पूरी तरह से बना रहे.
उपयुक्त मिट्टी
खेती के लिए गहरी भूमि, बलुई दोमट से दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है. भारी मिट्टी मेंथा लिए अच्छी नहीं है, साथ ही जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए और साथ ही भूमि में वायु संचार अच्छा होना चाहिए.
भूमि की तैयारी
मेंथा की खेती के लिए जमीन का भुरभुरा होना बहुत जरूरी होता है. मेंथा की खेती के लिए गहरी जुताई की जरूरत होती है. इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से कम से कम एक बार जुताई करें. साथ ही 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या कंपोस्ट की खाद खेत में डालें. उसके बाद दो या तीन जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करें और पाटा लगाकर भूमि को समतल कर ले.
नर्सरी तैयार करने की विधि
मेंथा की रोपाई के लिए नर्सरी और जड़ों, दोनों को ही प्रयोग में लाते हैं, लेकिन जो पैदावार नर्सरी से मिलती है, वो जड़ों को बोने की अपेक्षा अधिक मात्रा में होती है. नर्सरी के लिए एक थोड़े से स्थान पर खेत को तैयार कर क्यारियां बना लेते हैं और उसमें जड़ों को काफी घनी मात्रा में लगाकर सिंचाई करते रहते हैं. इस प्रकार उन जड़ों से निकलने वाले कल्ले तैयार होते हैं, जो रोपाई के लिए काम आते हैं.
मेंथा को लगाने तरीका
मेंथा को कतार में लगाना चाहिए. लाइन से लाइन के बीच की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए. लेकिन अगर यही रोपाई गेहूं को काटने के बाद लगानी है तो लाइन से लाइन की बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच की दूरी लगभग 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए.
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सिंचाई
मेंथा की फसल को हल्की नमी की जरूरत होती है, जिसके चलते इसमें हर 8 दिन में सिंचाई की जाती है.
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