गुड़मार एक औषधीय लता है। यह बहुमूल्य औषधीय पौधों में शुमार है। गुड़मार कि शाखाओं पर सूक्ष्म रुंए पाए जाते है। पत्ते अभिमुखी मृदुरोमेंश आगे कि तरफ नोकिले होते है। अगस्त-सितंबर के महीने में इस पर पीले रंग के गुच्छेनुमा फूल लगते हैं। इस पर उगने वाले फल लगभग 2 इंच लंबे और कठोर होते है। इसके अंदर बीजों के साथ रुई लगी होती है तथा बीज छोटे काले-भूरे रंग के होते हैं।
औषधीय लाभ:
गुड़मार कि पत्तियों का उपयोग मुख्य रुप से मधुमेह नियंत्रण,औषधियों के निर्माण में किया जाता है। इसके सेवन से रक्तगत शर्करा कि मात्रा कम हो जाती है साथ ही पेशाब में शर्करा का आना स्वंय ही बंद हो जाता है। गुड़मार कि जड़ को पीसकर या काढ़ा पिलाने से सर्परोग से लाभ मिलता है। पत्ती या छाल का रस पेट के कीड़े मारने में काम आता है। गुड़मार यकृत को उत्तेजित करता है और प्रत्यक्ष रुप से अग्नाशय कि इनसूलिन स्त्राव करने वाली ग्रंथियो कि सहायता करता है। जड़ो का इस्तेमाल हृद्य रोग,पुराने ज्वर,वात रोग तथा सफेद दाग के उपचार हेतु किया जाता है।
आरोहण व्यवस्था:
गुड़मार कि खेती हर प्रकार कि मिट्टी में देशभर में कहीं भी कि जा सकती है। लेकिन हल्की दोमत मिट्टी इसकी खेती के लिए ज्यादा लाभकारी है। इसकी खेती में जल निकास का अच्छा प्रबंधन होना जरुरी है। अभी तक इसकी खेती जंगलो में से एकत्रित किए गए पौधों से ही कि जाती थी। इसे बीज व कलम दोनो तरीके से लगाया जा सकता है। इसके ताज़ा बीज जनवरी में एकत्रित किए जाते है इसके बाद इन्हे 10 बाई 10 संटीमीटर कि दूरी पर लगाया जाता है। इसमें लगभग एक सप्ताह के भीतर ही अंकुरण शुरु हो जाता है। जब नर्सरी में पौधों कि ऊंचाई 15 सेंटीमीटर हो जाए तो उन्हें पॉलिथीन में लगा देना चाहिए। इसकी कलम लगाने के लिए फरवरी,मार्च तथा सितंबर-अक्टूबर का महीना उचित होता है। बेलनुमा पौधा होने के कारण इसे बांस या किसी सहारे कि आवश्यकता होती है।
सिंचाई:
इसे ज्यादा पानी कि आवश्यकता नहीं होती इसी कारण गर्मीयों के समय 10-15 दिन तक सर्दियों में 20-25 दिन के अंतराल में एक बार सिंचाई व्यवस्था कि जाए तो इसकी बढ़वार के लिए काफी अच्छा होता है।
लाभ:
गुड़मार कि खेती से किसान 25-30 हज़ार रुपए प्रति हेक्टेयर आय अर्जित कर सकता है।
भानु प्रताप
कृषि जागरण
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