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Giloy Farming: गिलोय की खेती, औषधीय उपयोग, उपज एवं उपयोगिता

गिलोय का वनस्पतिक नाम टिनोस्पोरा कोडोफोलिया (Tinsopora Corditolia) है. यह मेनीस्पमेसी कुल का पौधा है. इसे विभिन्न भाषाओं जैसे हिंदी में गिलोय, गुर्च, गुडबेल, अमृता, गुजराती में ग्लो, कन्नड़ में अमरदावली, तेलगू में तिप्पतिदा, गोधुचि, तामिल में सिंडिलकोडि इत्यादि नामों से जाना जाता है.

KJ Staff
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गिलोय के औषधीय फायदे
गिलोय के औषधीय फायदे

गिलोय का वनस्पतिक नाम टिनोस्पोरा कोडोफोलिया (Tinsopora Corditolia) है. यह मेनीस्पमेसी कुल का पौधा है. इसे विभिन्न भाषाओं जैसे हिंदी में गिलोय, गुर्च, गुडबेल, अमृता, गुजराती में ग्लो, कन्नड़ में अमरदावली, तेलगू में तिप्पतिदा, गोधुचि, तामिल में सिंडिलकोडि इत्यादि नामों से जाना जाता है. गिलोय सम्पूर्ण भारतवर्ष में 1000 मीटर की ऊंचाई तक पायी जाने वाली एक बहुपयोगी लता है.

भारतवर्ष के साथ साथ श्रीलंका तथा म्यानमार के जंगलों में प्राकृतिक रूप से पायी जाने  वाली इस बहुवर्षीय लता का काण्ड मांसल होता हैं. जिसकी शाखाओं से अनेक पतले पतले मूल निकल कर नीचे की ओर लटकते रहते हैं. लताओं के तना पर पतला छिलका होता है जिसे हटाने पर नीचे हरा मांसल भाग दिखता है. इसके पत्ते ह्याकार पान के पत्ते की तरह तथा चिकने होते हैं. इसकी लताओं पर मटर के दाने के समान फल लगते हैं जो पहले तो हरे होते हैं परन्तु पक़ने पर लाल रंग के हो जाते है.

यद्यपि वर्षा ऋतु में इस पर भरपूर पत्ते आते हैं, परन्तु सदियों में इसके अधिकांश पत्ते पीले पड़कर झड़ जाते हैं. औषधीय निर्माण में मुख्यत: इसकी काण्ड अथवा तने का उपयोग किया जाता है. हालांकि इसके पत्ते भी अत्याधिक औषधीय होते हैं, परन्तु अधिकांशत: इसकी बेल का ही सुखे रूप में प्रयोग किया जाता है. इसको हरी अवस्था में प्रयुक्त करना ज्यादा लाभकारी माना गया है. वैसे तो किसी भी पेड़ पर की गिलोय औषधीय उपयोग में लायी जाती है, परन्तु नीम के पेड़ पर चढ़ी हुई गिलोय की बेल को अन्य पौधों पर चढ़ी हुई गिलोय से उत्तम माना जाता है.

गिलोय के औषधीय उपयोग (Medicinal uses of giloy)

जहाँ तक गिलोय के औषधीय उपयोग का प्रश्न है, तो गिलोय उन कुछ गिने-चुने औषधीय पौधों में से हैं जिन्हें त्रिदोषनाशक होने का गौरव प्राप्त है. ऐसा माना जाता है कि गिलोय मधु अथवा धृत के साथ कल को गुड़ के साथ मलद्रुता को खाण्ड के साथ पित्त को, अरण्डी के तेल के साथ वायु को तथा सोंठ के साथ आमवात को दूर करती है.

यह ह्दय के लिए हितकारी होने के साथ साथ यह मलरोधक, रखायन, बलकारक तथा मधुर एवं अग्नि प्रदीपक है. यह मधुमेह, रक्तदोष, कामला, खांसी, कोढ, खूनी बवासीर, वातरक्त, कण्डरोग, क्षयरोग, श्वेतप्रदर, गठिया, रक्तविकार, नेत्ररोग आदि के दूर करती है. परम्परागत औषधीय उपयोगों में गिलोय तथा शतावरी का क्वाटा श्वेतप्रदर में, गिलोय तथा ब्राम्ही का उपयोग दिल की धड़कन नियंत्रित करने में, गिलोय, ब्राम्ही तथा शंखपुष्पी का चूर्ण आँवला के साथ रक्तचाप नियंत्रण हेतु प्रयोग किया जाता है. गिलोय एवं अश्वगंधा की जड़ को दूध में पकाकार वंधत्व दूर करने हेतु प्रयुक्त की जाती है. गिलोय में पाये जाने वाले प्रमुख तत्व ग्लूकोसाइन, गिलोइन, गिरोरनीन, गिलोस्टेरॉल, बरबेरीन, टिनोस्पोरोसाइड एवं टिनोस्पोरिन आदि है. इस प्रकार गिलोय की औषधीय उपयोगिता सर्वविदित है. यद्यपि अभी तक अधिकांशत: इसकी प्राप्ति जंगलों से ही होती है परन्तु इसकी औषधीय एवं व्यावसायिक उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए इसके कृषिकरण एवं संरक्षण को बढ़ावा दिया जाता समय की आवश्यकता है.

गिलोय की खेती के लिए कृषि तकनीक (Agricultural techniques for the cultivation of Giloy)

गिलोय एक बहुवर्षीय लता है, जिसका प्रत्येक भाग जड़, पत्ते, फल तथा तना औषधीय उपयोग का है. परन्तु व्यावसायिक रूप से इसके तने (बेल) की मांग है जो कि, बाजार में (सुखे रूप में) उपलब्ध है. एक बार लगा देने पर यह प्रतिवर्ष (यदि इसका प्रबंधन ठीक प्रकार इसे किया जाय) फसल देती रहती है. इसकी ख़ेती विशेष रूप से बंजर जमिनों, सूखे क्षेत्रों तथा कृषिवानिकी के साथ सफलतापूर्वक की जा सकती है. यहाँ पर इसकी बेलों के आरोहण के लिए पहले से व्यवस्था मौजूद हो तथा आरोहण व्यवस्था पर अतिरिक्त खर्चे न करना पड़े उन क्षेत्रों में इसकी ख़ेती निम्नानुसार की जा सकती है.

गिलोय की खेती हेतु जलवायु (Climate for Giloy cultivation)

गिलोय एक ऐसा पौधा (लता) है, जो भारतवर्ष में सर्वत्र पाया जाता है. इस दृष्टि से सम्पूर्ण देश की जलवायु इसके लिए उपयुक्त है. हालांकि, इसे विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता है, परन्तु इसकी अच्छी वृद्धि के लिए गरम तथा आर्द्र जलवायु ज्यादा उपयुक्त रहती है.

गिलोय की खेती के लिए भूमि (Land for giloy cultivation)

गिलोय एक अत्यन्त कठोर प्रवृत्ति की लता है, जिसे लगभग सभी प्रकार की मिट्टियाँ रेतीली से लेकर काली कपासिया तक में उगाया जा सकता है. परन्तु हल्की कपासिया तथा लाल मिट्टियाँ में यह ज्यादा अच्छी तरह पनपती है. भूमि में जीवांश की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध होनी चाहिए तथा जल निकास की भी पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए.

गिलोय की खेती के लिए बीजाई की विधि (Method of sowing for the cultivation of Giloy)

गिलोय की बीजाई इसके बीजों एवं कलम द्वारा की जा सकती है. व्यावसायिक खेती की दृष्टि से कलम का उपयोग किया जाना ज्यादा अच्छा रहता है, क्योंकि इससे पौधा तेजी से बढ़ता है, उत्पादन भी ज्यादा होता है.

इस कार्य हेतु पुरानी लताओं से कलम प्राप्त कर जाती है. बीजाई हेतु प्रयुक्त की जाने वाली कलम की लंबाई 28 से 30 सें.मी. तक होनी चाहिए तथा इसकी मोटाई हाथ के अंगूठे से पतली तथा तर्जनी उंगली से मोटी होनी चाहिए. प्रत्येक कलम में कम से कम दो आँख नोड होना आवश्यक होता है. ये कलमें वन क्षेत्रों से वृक्षों पर चढ़ी लताओं से प्राप्त की जा सकती है.

गिलोय की खेती करने से पूर्व खेत में अप्रैल-मई माह में 30 x 30 x 30 सें.मी. के गढ्ढे खोद लिए जाने चाहिए. गर्मी में ये गड्ढे इसलिए खोदे जाते हैं, ताकि यदि भूमि में कोई भूमिगत हानिकारक जीवाणु हो तो वे समाप्त हो सके, तदोपरान्त प्रत्येक गड्ढे में 2.3 किलो गोबर की पकी हुई खाद्य अथवा कंपोष्ट खाद्य तथा 500 ग्राम नीम खली डाल दी जाती है. जुलाई माह में जब 2.3 अच्छी बारिश पड़ जायें तथा गड्ढे अच्छे से पानी से संतृप्त हो जाएं, तो नर्सरी में तैयार किये गये गिलोय के पौधों को इन गड्ढों में स्थानांतरित कर दिया जाता है.

औषधि संग्रहण काल (Drug storage period)

गिलोय के तने का संग्रहण जऩवरी से लेकर मार्च तक करना उपयुक्त है. इस समय काण्ड पत्र विहीन हो जाता है तथा औषधीय तत्व अधिक मात्रा में उपलब्ध होते हैं. इसे जमीन से एक फूट ऊपर किसी तेज़ धारदार हथियार अथवा हँसिये से काट कर पूरी बेलों को इकठ्ठा कर लिया जाता है. तने को 1-2 इंच के छोटे-छोटे टुकडों में काट कर छाया में सुखा लिया जाता है.

कटे हुए पौंधे के नीचे के भाग से अगले मान्सून में पुन: लतायें प्रस्फुटित होती हैं, जिससे अगले वर्ष की फसल तैयार हो जाती है. यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है तथा एक बार रोपित कर दिये जाने के उपरान्त कई वर्षों तक लगातार गिलोय की फसल प्राप्त की जा सकती है. इस बीच यदि कुछ पौधे सूख जाय तो उनके स्थान पर नये पौधे रोपित किये जा सकते हैं. बेलों को चढ़ाने हेतु बनाया गया ढाँचा 30 से 40 बार निरन्तर प्रयोग में लिया जा सकता है.

गिलोय की फसल की उपज़ एवं उपयोगिता (Yield and utility of Giloy crop)

विधिवत खेती करते तथा अच्छी फसल आने पर एक हेक्टेयर भूमि से गिलोय के लगभग 8 से 10 क्विंटल सूखे तने प्राप्त होते हैं, जिन्हें 40 से 50 रू प्रती किलोग्राम के बाजार भाव से विक्रय की प्राप्ति होती है. स्थानीय आयुर्वेदिक दवाई निर्माताओं के साथ-साथ इसे धोक में दिल्ली, लखनऊ, तथा बड़े शहरों में बेचा जा सकता है. एक बार रोपण करने के पश्चात्त कई वर्षों तक गिलोय की खेती से आय प्राप्त की जा सकती है.

लेखक:

डॉ. योगेश सुमठाणे,
सहायक प्राध्यापक एवं वैज्ञानिक,
वन उत्पादन एवं उपयोगिता,
बाँदा कृषि एवं प्राद्योगिकी विश्वविद्यालय, बाँदा- 210001
संपर्क - 7588692447, 8806217979

English Summary: Giloy cultivation, medicinal uses, yield and utility Published on: 23 August 2021, 01:26 IST

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