‘आयुर्वेद’ एक ऐसी पद्धति जिसमें पेड़-पौधे, पत्ते, छाल ही औषधि का काम करते हैं. जलवायु परिवर्तन और बढ़ते शहरीकरण की वजह से पौधों की बहुत सी प्रजातियों पर ख़तरा मंडरा रहा है. इनको बचाने के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की ओर से पहल की जा रही है.
पुंत्रजीवा, पृश्निपर्णी और सालपर्णी ये वो पौधे हैं जिन्हें टिश्यू कल्चर तक़नीक से बचाया जा रहा है. इन पौधों के छोटे हिस्सों को लेकर हूबहू गुण वाले कई क्लोन तैयार किए गए हैं.
भ्रूण विकास में सहायता करता है पुंत्रजीवा -
आयुर्वेद में पुंत्रजीवा पौधे को भ्रूण के विकास में मददकारी और अबॉर्शन को रोकने में सहायक माना गया है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR), बीएचयू का वनस्पति विज्ञान विभाग, दिल्ली के सीनियर रिसर्च फ़ेलो राजेश सैन पुंत्रजीवा, दशमूलारिष्ट में इस्तेमाल होने वाले पृश्निपर्णी और सालपर्णी पौधों को नया जीवन देने के लिए काम कर रहे हैं.
पिछले 5 वर्षों से रिसर्च जारी-
BHU वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो. कविंद्र नाथ तिवारी कहते हैं कि आयुर्वेद जगत में पौधों की बहुत अहमियत होती है इसलिए इन्हें बचाना बेहद ज़रूरी है. पुंत्रजीवा (राक्सबर्घी) की ग्रोथ बहुत कम होती है और ये विलुप्त होने की कगार पर है. कड़े प्रयासों से टिश्यू कल्चर विधि के ज़रिये इसे उगाया गया है. पांच सालों की कड़ी मेहनत के बाद कामयाबी हाथ लगी है.
क्लोन से तैयार पौधों में हैं सारे गुण-
वनस्पति विज्ञान विभाग के हर्बल गार्डेन में टिश्यू कल्चर तक़नीक से तैयार 3 औषधीय पौधों के क्लोन को रोपा गया था. पौधे बड़े हो गए हैं और सभी औषधीय गुणों से भरपूर हैं. इनमें वही गुण मौजूद हैं जो इनके पैरेंट पौधे में थे.
यह पौधे महिलाओं के हार्मोन्स (Female Hormones) के विकास में मदद करते हैं. गर्भाशय में अंडा विकसित करने में सहायता करते हैं.
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महिलाओं के लिए बेहद उपयोगी है पुंत्रजीवा-
पुंत्रजीवा में जो तत्व पाए जाते हैं वो भ्रूण (Embryo) के विकास और गर्भपात (Abortion) को रोकने में काफ़ी सहायता करते हैं. गर्भधारण से लेकर डिलीवरी तक में इसके फल-फूल और पत्ते काम आते हैं.
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