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एक समय था जब वैद, रोगी की नाड़ी देखकर रोग की पहचान कर लिया करते थे और रोग का इलाज करते थे. इलाज के लिए प्राकृतिक पौधों से बनी औषधी का बहुत प्रयोग होता था, यह चिकित्सा हर स्तर की बीमारी के लिए उत्तम थी क्योंकि इसके साइड इफेक्ट नहीं हुआ करते थे और यह रोग को जड़ से ख़त्म कर देती थी परंतु समय बदला और समय के साथ-साथ चिकित्सा क्षेत्र में बदलाव आया और चिकित्सा क्षेत्र में कईं बड़े परिवर्तन हुए.
होम्योपैथी
होम्योपैथी एक ऐसी चिकित्सा थी जो आयुर्वेद के बाद प्रचलन में आई और इस चिकित्सा ने रोगी को बहुत सहुलियत दी जैसे - रोगी को अब काढ़ा बनाने के लिए, लेप बनाने के लिए, गोली बनाने के लिए श्रम नहीं करना पड़ता था, उसे वह सब गुण कुछ गोलियों से मिल जाया करते थे और उन्हें सिर्फ मुंह में रखना होता था, कम श्रम में अधिक लाभ हर कोई चाहता है बस जनता ने होम्योपैथी दवाइयों को तरजीह देना आरंभ कर दिया और होम्योपैथी दवाइयां प्रचलन में आ गंई. शर्त सिर्फ इतनी थी कि कुछ परहेज करने पड़ते थे जो बेहद जरुरी थे .
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ऐलोपैथी
अंग्रेजी दवाइयां या ऐलोपैथी की बात करें तो आज इसका बाज़ार सबसे अधिक फैला हुआ है, आज एलोपैथी दवाइयां प्रचलन मे हैं और हर जगह अपना वर्चस्व स्थापित कर चुकी हैं. पैर के नाखून से सर के बाल तक एलोपैथी दवाइयों का बोलबाला है यह जानते हुए कि इसके साइड इफेक्ट जानलेवा तक होते हैं फिर भी इसकी उपयोगिता और खपत सबसे अधिक है. कईं ऐसे मामले हर महीने देखे जाते हैं कि एलोपैथी के सेवन या अधिक सेवन से रोगी की हालत बिगड़ जाती है और तो और मृत्यु तक हो जाती है फिर भी आज ऐलोपैथी हिट है और इसका वय्वसाय ज़ोरों पर है.
आवश्यक हो गया आयुर्वेद
पिछले कई वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए जब ऐलोपैथी दवाइयों से होने वाले साइड इफेक्ट से रोगी की मुत्यु तक हो चुकी है अब कुछ लोगों के अथक प्रयास से आम जनमानस के मन में पर्यावरण, जैवकिता और आयुर्वेद को लेकर जागरुकता बढ़ाई गई है जिसका लाभ भी हो रहा है .
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अचानक से लोग आयुर्वेद चिकित्सा की तरफ अपना रुझान प्रकट कर रहे हैं और प्राकृतिक औषधियों के बारे में लिख-पढ़ रहे हैं. पिछले कईं वर्षों से लोग प्रकृति से जुड़े हैं और इस वजह से आयुर्वेद की मांग और खपत दोनों बढ़ गए हैं , जगह-जगह आयुर्वेदिक चिकित्सा संस्थान बन गए हैं और वहां रोगियों की अच्छी-खासी तादाद भी रहती है, लोगों को समझ आ गया है कि प्रकृति से विमुखता मनुष्य को भारी पड़ी है और हमारी जड़ें हमारा आयुर्वेद है जिसके प्रति सजग और रुचि रखने की आवश्यकता है.
गिरीश पांडे, कृषि जागरण
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