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अश्वगंधा की खेती से किसानों की होगी मोटी कमाई, जानें उपयुक्त जलवायु, समय और खेती का तरीका!

Ashwagandha Farming: अश्वगंधा, जिसे आयुर्वेद में 'भारतीय जिनसेंग' कहा जाता है, एक प्रमुख औषधीय पौधा है. इसकी जड़ें और पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं, जो शरीर की ऊर्जा, एकाग्रता और थकान को कम करने में मदद करती हैं. अश्वगंधा की खेती किसानों के लिए अधिक मुनाफा देने वाला साबित हो रही है.

मोहित नागर
मोहित नागर
Ashwagandha Cultivation
अश्वगंधा की खेती से किसानों की होगी मोटी कमाई (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Tips For Ashwagandha Farming: अश्वगंधा, जिसे आयुर्वेद में 'भारतीय जिनसेंग' कहा जाता है. यह एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जिसकी जड़ें और पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं. इसकी मांग दवा उद्योग, आयुर्वेदिक उत्पादों और स्वास्थ्य सप्लीमेंट्स के क्षेत्र में तेजी से बढ़ रही है. अश्वगंधा में विथेनोलाइड्स जैसे एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो शरीर की ऊर्जा बढ़ाने, एकाग्रता में सुधार और थकान को कम करने में मदद करते हैं. इसके अलावा, यह मांसपेशियों की ताकत बढ़ाने, हार्मोनल संतुलन बनाए रखने और प्रजनन स्वास्थ्य में भी योगदान देता है. ऐसे में अश्वगंधा की खेती भारत के किसानों के लिए कम लागत में अधिक मुनाफा देने के साथ-साथ आय बढ़ाने में भी मदद करती है.

महत्वपूर्ण औषधीय विशेषताएं

अश्वगंधा भारत के उत्तर-पश्चिमी और मध्य भागों में उगाया जाने वाला एक देशी औषधीय पौधा है. इसकी जड़ों का उपयोग भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति जैसे आयुर्वेद और यूनानी में किया गया है. अश्वगंधा की जड़ों में पाए जाने वाले विथेनोलाइड्स, स्ट्रेस, एंग्जायटी और इम्यूनिटी को बढ़ाने में मदद करते हैं. अश्वगंधा जड़ी बूटी "सोलानेसी" और 'विथानिया' के जीनस के परिवार से संबंधित है और इसका वैज्ञानिक नाम "विथानिया सोम्निफेरा" है. यह एक बहुवर्षीय झाड़ीदार पौधा है, जो मुख्य रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु में उगाया जाता है. इसकी खेती राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सबसे अधिक की जाती है.

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खेती के लिए आदर्श परिस्थितियां

मिट्टी और जलवायु: अश्वगंधा की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. यह फसल 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से उगाई जाती है.

बुवाई का समय: अश्वगंधा की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय मानसून की समाप्ति के बाद जुलाई-अगस्त माना जाता है.

बीज दर और दूरी: एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए लगभग 5 से 7 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं. पौधों के बीच 30 से 40 सेमी की दूरी रखनी चाहिए.

सिंचाई और पोषण प्रबंधन

अश्वगंधा की फसल को बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है. केवल बुवाई के समय और जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करनी चाहिए. रोपाई के समय हल्की सिंचाई करने से मिट्टी में पौध की बेहतर स्थापना सुनिश्चित होती है. बेहतर जड़ उपज के लिए 8 से 10 दिनों के अंतराल में एक बार फसल की सिंचाई करें. जैविक खाद और वर्मी-कंपोस्ट का उपयोग फसल की गुणवत्ता को बेहतर कर सकता है.

फसल कटाई और उपज

अश्वगंधा की बुवाई करने के 5 से 6 महीनों के बाद इसकी फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है. पौधों की कटाई दिसंबर-जनवरी में की जाती है, जब पत्ते पीले पड़ने लगते हैं. सूखे पत्ते और लाल-नारंगी जामुन परिपक्वता और फसल के समय का संकेत देते हैं. अश्वगंधा की फसल बुवाई के 160-180 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है. जड़ों के लिए पूरे पौधे को उखाड़ देना चाहिए और 8 से 10 सेमी के छोटे टुकड़ों में काट कर सुखाने के लिए रख देना चाहिए. किसान एक हेक्टेयर क्षेत्र में अश्वगंधा की खेती की से 4-5 क्विंटल जड़ें और 50-75 किलोग्राम बीज प्राप्त कर सकते हैं.

English Summary: ashwagandha farming climate time and suitable method of cultivation Published on: 11 December 2024, 03:40 IST

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