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फल एवं सब्जियों के रख रखाव की सम्पूर्ण जानकारी...

विश्व में फलों और सब्जियों के उचित रख-रखाव के न होने के कारण सकल उत्पादन का 30-40 प्रतिशत भाग नष्ट हो जाता है, विकास देशों में इससे भी अधिक क्षति हो जाती है, जिसके कारण करोड़ों रु० की क्षति हो जाती है। दूसरी ओर देश की अधिकांश जनसंख्या को संतुलित आहार की प्राप्ति न होने के कारण कुपोषण का शिकार हो जाता है। साथ फल एवं सब्जी उत्पादकों के श्रम, लागत व समय आदि बेकार चले जाते हैं।

विश्व में फलों और सब्जियों के उचित रख-रखाव के न होने के कारण सकल उत्पादन का 30-40 प्रतिशत भाग नष्ट हो जाता है, विकास देशों में इससे भी अधिक क्षति हो जाती है, जिसके कारण करोड़ों रु० की क्षति हो जाती है। दूसरी ओर देश की अधिकांश जनसंख्या को संतुलित आहार की प्राप्ति न होने के कारण कुपोषण का शिकार हो जाता है। साथ फल एवं सब्जी उत्पादकों के श्रम, लागत व समय आदि बेकार चले जाते हैं। अतः फल एवं सब्जियों को तोड़ने, भण्डारण एवं परिवहन का उचित रखरखाव करके उनके उपयोग कल (shelf-life) को बढ़ाया जा सकता है, जिसके विस्तृत जानकारी नीचे दी गई है-

तोड़ाई की तकनीक: फल एवं सब्जियों को सदैव परिपक्व अवस्था में हाथ या जहां तक सम्भव हो तोड़क (हारवेस्टर) से प्रातःकाल तोड़ाई करनी चाहिए, जबकि पत्तेदार सब्जियों प्रातःकाल या सायंकाल में तोड़ाई करने चाहिए। निकट के बाजार में भेजने के सुबह या शाम सुविधानुसार तोड़ाई करनी चाहिए। फलों को तोड़ते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वे भूमि पर न गिरे और न किसी प्रकार खरौचे न आए, क्योंकि ऐसे फल व सब्जियों की परिपक्वता जल्दी हो जाती है और उन पर फफूंदियों का प्रकोप अधिक होता है जिसके कारण वे पेटियों में रखने में सड़ जाते हैं और समीप के फलों के भी जल्दी से सड़ा देते हैं। फलों एवं सब्जियों को तोड़ने के बाद छायादार स्थान में जमीन पर बिछे टाट या प्लास्टिक सीट पर रखना चाहिए, ताकि वे धूल मिट्टी, फफूंदी व कीटों के सम्पर्क में न आए। अतः फल एवं सब्जियों तोड़ते समय निम्न सावधानियाँ रखनी चाहिए-

1) फल एवं सब्जियों को हाथ या तोड़क (हारवेस्टर) से ही तोड़ना चाहिए, ताकि वे क्षतिग्रस्त न हो।

2) फल एवं सब्जियों को सुबह को ही तोड़ना चाहिए।

3) फल वृक्षों से फलों को हिलाकर नहीं तोड़ना चाहिए।

4) तोड़े गए फल एवं सब्जियों को छायादार स्थान में टाट या प्लास्टिक सीट पर ही रखना चाहिए।

5) पूर्ण विकसित परिपक्व फलों को ही तोड़ना चाहिए।

6) ऊँची मेज/स्टूल या हल्की सीढ़ियों का फल तोड़ने के लिए उपयोग करना चाहिए।

7) केले की धार को लगभग 30 सेमी० डंठल के साथ काटना चाहिए, ताकि उसके सम्भालने में सुविधा रहे।

8) माल्टा व नींबू की कैंची द्वारा कटाई करनी चाहिए।

9) अंगूर को गुच्छों को तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखें कि अंगूर के दाने खराब न हों। पके गुच्छे को डंठलसहित कैंची से काटना चाहिए।

10) पपीता को हाथ से पकड़ कर या फिर उसे मोड़ कर तोड़ते हैं।

11) अनन्नास के फलों की तोड़ाई हेतु हाथ में दस्ताने पहनकर फल को क्राॅउन को पकड़कर फल को झुकाते हैं, जिससे फल का डंठल टूट जाता है जबकि तेज हंसिया या चाकू इस कार्य हेतु उत्तम होता है।

12) लीची के फल गुच्छों को थोड़ी टहनी के साथ तोड़ना चाहिए या कैंची से काट लेना चाहिए।

13) बेर के फलों की तोड़ाई हाथ में दस्ताने पहनकर करनी चाहिए। ऊँची शाखाओं के लिए सीढ़ियों को उपभोग करना चाहिए।

14) लोकाट के फलों की तोड़ाई डंठल के साथ करनी चाहिए।

15) सेब व नाशपाती के छोटे वृक्षों से फलों जमीन पर खड़े होकर तोड़ लिया जाता है, जबकि बड़े वृक्षों से फल तोड़ने की सीढ़ियों का उपयोग किया जाता है।

16) आडू, आलूचा, खुबानी के फलों की तोड़ाई हाथ द्वारा की जाती है। 

विकसित देशों में फलों व सब्जियों की तोड़ाई के विभिन्न प्रकार की मशीनों का प्रयोग किया जाता है। जिससे समय की बचत हो जाती है साथ ही फलों व सब्जियों को किसी प्रकार क्षति नहीं होती है। जिसके फलस्वरूप उनका उपयोग/भण्डारण काल में वृद्धि हो जाती है। 

फलों व सब्जियों की पकने की प्रक्रिया का नियंत्रण: फलों व सब्जियों की पकने की प्रक्रिया का अन्तराल रखरखाव के प्रयोग पर निर्भर करता है, जिससे उनके उपयोग काल को बढ़ाया जा सकता है, जैसे कम तापमान, इथिलीन सोखने वाले पदार्थ, त्वचा पर वैक्सोल का लेप, विकार वाले पदार्थ और फफूंदीनाशकों के प्रयोग से उन्हें सड़ने से बचाया जा सकता है। फूटोक्स (फफूंदीनाशक 3%) और ताल प्रलोंग (1.0-1.5%) के प्रयोग से अलफेन्सों आमों के पकने के अंतराल को कम किया जा सकता है, हालांकि फल पकने पर कोमल हो जाते हैं इसलिए वैक्सोल पकने को रोकने के लिए ताल प्रलोम से अधिक प्रभावशाली है। वैक्सोल और गर्म जल का संयुक्त प्रयोग करने वालों की समान पकाई एवं रख-रखाव का अच्छा नतीजा मिलता है।

इसके अलावा अन्य रासायनों के प्रयोग करने से अच्छा परिणाम मिलते हैं। जैसे-साइकोसिल (500 मिग्रा/लि० जल), जी०ए० (250 मिग्रा०/लि० जल), मीनाडाइन बाइ सल्फाइट (500 मिग्रा/लिटर जल), इसी प्रकार केले की पकाई  का अंतराल भी जी०ए० के प्रयोग से बढ़ाया जा सकता है। वेपरगार्ड (5%) का प्रयोग करने दशहरी आम का भण्डारण काल 25-30 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। संतरे में जी०ए० (500 पी०पी०एम०) व 2,4डी (500 पी०पी०एम०) पकाने के अंतराल में वृद्धि करते हैं। फूटोक्स (6%) आम का हरापन सुरक्षित रखता है। वैक्सोल (3%) फलों की ताजगी बनाए रखने में ताल प्रलोंग से अधिक प्रभावशाली पाया गया। केले में प्यूराफील (एल्केलाइन पोटैशियम परमैगनेट के ऊपर) के प्रयोग से भारी ईथिलीन सोख ली जाती है।

अनिष्ट क्रियाओं का नियंत्रण: फलों की तुलना में सब्जियों में अनिष्ट क्रियायें कम होती हैं। कुछ फलों जैसे-पपीता, नींबू के भण्डारण के समय बीजों का अंनुकरण होने लगता है। भण्डारण काल की अवधि अधिक होने के कारण कुछ फलों के गूदे का कटान भी हो जाता है। भण्डारण में उचित दवाइयों को रखकर अनिष्ट क्रियाओं का नियंत्रण किया जा सकता है।

वाष्पोत्सर्जन का नियंत्रण: वाष्पोत्सर्जन से फलों एवं सब्जियों में सिकुड़न उत्पन्न हो जाती है, जिससे उनका भार, आकार व रंग में कमी हो जाती है। फलों में 5 प्रतिशत भार की कमी इतनी सिकुड़न दे जाती है कि वे बिक्री हेतु अयोग्य हो जाते हैं। वातावरण कारकों में तापमान, सापेक्ष आद्रता व वाष्प-दबाव अन्तर कर वाष्पोत्सर्जन में बहुत महत्व है। कम तापमान, अधिक सापेक्ष आद्रता व थोड़े वाष्प-दाब अन्तर से वाष्पोत्सर्जन कम हो जाता है, जिससे फल सिकुड़ने की क्रिया बहुत कम हो जाती है। इसके अलावा उचित संवेष्ठन और संरक्षित आवरण से फल के भार की कमी को नियंत्रित किया जा सकता है।

श्वसन का नियंत्रण: श्वसन एक विघटन क्रिया है, जो फलों व सब्जियों में होती है अतः इनके उपयोग/भण्डारण काल में वृद्धि हेतु इसकी गति को कम रखना नितान्त आवश्यक एवं महत्वपूर्ण कार्य है, जिसकी ओर उत्पादक पर्याप्त ध्यान नहीं देते हैं। शीत-भण्डारण का प्रमुख सिद्धान्त एक कम तापमान से श्वसन की गति को कम करना। नियंत्रित वायु मण्डल भण्डारण, प्रशीतन की शेष पूर्ति में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है। संवातन से भी श्वसन दर काफी प्रभावित होती है। श्वसन के समय उत्पादित ऊष्मा संग्रह कक्ष में एकत्रित होती रहती है। यदि संवातन का उचित प्रबंधन हो, तो इस ऊष्मा के कारण भण्डारित फलों व सब्जियों की श्वसन गति में वृद्धि हो जाती है। अतः संवातन नितान्त आवश्यक है।

भण्डारण:

प्राकृतिक भण्डारण: कुछ फलों की गुणवत्ता वृक्ष पर ही कई महीने तक बनी रहती है। अतः ऐसे फलों को कुछ दिनों के लिए रखा जा सकता है।

उदाहरणार्थ- एवोकेडो के फलों की परिपक्वता के बाद 6 महीने तक वृक्ष पर ही रखा जा सकता है। इसी प्रकार केला व ग्रेम फ्रूट के फलों को वृक्ष पर ही कुछ समय के लिए रखा जा सकता है।

सामान्य भण्डारण: यद्यपि सामान्य भण्डारण अत्यन्त सस्ता, सरल होता है, परन्तु तापमान व सापेक्ष आद्रता पर उचित नियंत्रण न होने के कारण यह अनेक फलों के भण्डार के लिए अनुपयुक्त है। ऐसे भण्डारण में फलों को थोड़े समय के लिए भण्डारण किया जाता है। इसमें वातावरण के तापमान का उपयोग किया जाता है। जिसके लिए उस स्थान को उपयुक्त समझा जाता है। जहां प्राकृतिक तापमान बहुत कम हो। उच्च आद्रता रखने हेतु कच्चा फर्श उपयुक्त रखा जाता है। इस विधि के कई रूप हैं।

संवातनयुक्त कमरा: भारतीय परिस्थितियों में फलों व सब्जियों के भण्डारण की यह एक प्रमुख विधि है। ऐसे कमरों में ऊष्मा रोधक एवं संवातन की सुविधाएं उपलब्ध होती है। फलों व सब्जियों को कमरों में ढेर लगाकर या पेटियों में भरकर रखा जाता है।

जमीन की सतह पर फल एवं सब्जियों की तह हो ढकर शीतोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में फलों व सब्जियों को वृक्ष के नीचे ढेर लगाकर रखते हैं। इनको हिमीकरण से बचाने हेतु भूसे की मोटी तह लगभग 30 सेमी से ढक दिया जाता है। सेब भण्डारण हेतु यह विधि प्रचलित है।

गड्ढा या खाई खोदकर: इस विधि में ठण्डी जगह पर गड्ढा या खाई खोदकर फलों व सब्जियों को पेटियों में भरकर रखा जाता है। इन गड्ढों की गहराई लगभग 30 सेमी और चैड़ाई 1-2 मीटर होती है। इन गड्ढों में फलों या सब्जियों की पेटियों को रखने के बाद भूसे को तह से ढककर मिट्टी की एक पतली परत से ढक देते हैं, जिससे वायु द्वारा भूसे का उड़ाव नहीं हो पाता है।

शीत भण्डारण: शीत भण्डारण फलों व सब्जियों को संग्रह करने की आधुनिक विधि है। इस विधि का सबसे उत्तम लाभ यह है कि इस विधि में तापमान व सापेक्ष आद्रता को इच्छानुसार नियंत्रित किया जा सकता है और बाहर के तापमान का फलों व सब्जियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है शीत भण्डारण का सिद्धान्त न्यून तापमान द्वारा फल एवं सब्जियों की स्वाभाविक जैविक क्रियाओं की गति को रोकता है, जिसके कारण उनके उपयोग काल में वृद्धि हो जाती है।

नियंत्रित वायुमंडल भण्डारण: भण्डार के इस विधि में मुख्य रूप से आक्सीजन एवं कार्बन डाइ-आक्साइड गैसों की सान्द्रता नियंत्रित किया जाता है। साधारण वायुमण्डल संगठन की आपेक्षाकृत नियंत्रित पायुमण्डल में आक्सीजन का स्तर व कार्बन डाइ-आक्साइड का स्तर अधिक होता है।

रूपांतरित वातावरित भण्डारण: इस विधि में समस्त भण्डारण वस्तु के चारों ओर संचित गैसों को कम दर पर नियंत्रित किया जाता है। एतिहासिक तौर पर उत्पाद खुले चबूतरे बनाकर भण्डारित करते थे, जिसका नियंत्रण प्राकृतिक वातावरित भण्डारण द्वारा हो जाता था। जहां तक गैस नियंत्रण के स्तर की बात है, यह निरन्तर देख-रेख के द्वारा सुविधाजनक विधि से अधिकतम संचित की जाती है। रूपांतरित एवं नियंत्रित भण्डारण अन्तर नियंत्रण दर का है, जिसमें नियंत्रित वातावरण भण्डारण अधिक उपयोगी पाया गया है।

आजकल उत्पादकों द्वारा पोलीमार की पतली परत का उपयोग करते हैं, जो गैसों बाह्य गमन में प्रतिरोध में भी सहायक होती है और रूपांतरित वातावरित भण्डारण को लचीले परत द्वारा संभाले रखता है। साथ ही आवश्यकतानुसार वातावरित भण्डारण में आॅक्सीजन, कार्बन डाइ-आॅक्साइड, इथीलिन और वाष्प को संचित किया जाता है।

परिवहन: फलों व सब्जियों की तोड़ाई के उपरान्त उनके रख-रखाव, भण्डारण व वितरण की ओर पर्याप्त ध्याद देना चाहिए, जबकि उत्पादक इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देते हैं, जिसके कारण वे गलसड़ जाते हैं और उत्पादक को काफी क्षति हो जाती है। साथ ही परस्पर में उन के मूल्य में काफी वृद्धि हो जाती है जिसके कारण उपभोक्ताओं को काफी कठिनाई का सामान्य करना पड़ता है। अतः इनका परिवहन बड़ी सूझ-समझ के साथ करना चाहिए, ताकि वे खराब न हों और उनकी उपयोग अवधि में वृद्धि हो जाए।

परिवहन के समय फल एवं सब्जियों की क्षति के प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक

1) फल एवं सब्जी के प्रकार व गुणवत्ता।

2) उनकी परिपक्वता की अवस्था।

3) तोड़ाई एवं वितरण के मध्य का समय।

4) बाजार की दूरी।

5) पैकेजिंग के पूर्व सम्भलाव की संख्या।

6) पैकेजिंग पात्र के प्रकार व उनकी गुणवत्ता।

7) पैकेजिंग की विधि।

8) रोग एवं कीटग्रस्त व चोटिल फल एवं सब्जियां।

9) परिवहन के पूर्व उपचार।

10) परिवहन के साधन।

11) तापमान एवं आद्रता पर नियंत्रण।

12) परिवहन के दौरान रख-रखाव की संख्या। 

विपणन: फलों एवं सब्जियों के क्रय-विक्रय का उतना ही महत्व है, जितना उनके उत्पादन का। तोड़ाई के उपरान्त फलों एवं सब्जियों को उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुंचाने की अवधि के दौरान किए जाने वाले समस्त कार्य क्रय-विक्रय की व्यवस्था के अन्तर्गत हो जाते है।

फल एवं सब्जियों का विक्रय विभिन्न प्रणालियों द्वारा किया जाता है, जिनमें प्रमुख प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं-

1) उपभोक्ता

2) फुटकर व्यापारी

3) थोक व्यापारी

4) संसाधन समितियाँ

5) बिचैलिए 

फलों व सब्जियों की तोड़ाई व्यवस्था का उनके रंग-रूप, स्वाद, परिवहन एवं भण्डारण की अवधि पर गहरा प्रभाव पड़ता है। फलों व सब्जियों को तोड़ाई बाजार की दूरी पर निर्भर करती है और साथ ही उनकी परिपक्वता पर भी निर्भर करती है। यदि फलों व सब्जियों को दूर भेजना हो, तो पकने से पूर्व की तोड़ना चाहिए और यदि समीप भेजना हो तो पकने पर ही तोड़ना चाहिए। अतः फल एवं सब्जियों को तोड़ने की अवस्था का सिद्धान्त यह है कि उन्हे तोड़ने एवं उपभोक्ता तक पहुंचने के समय के बीच कोई खराबी न आए और उनका स्वाद एवं सुरक्षा का पूर्ण विकास हो। 

डालियों/टोकरियों में फल एवं सब्जियों को रखना न हो तो उनके स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है और न हीपरिवहन की दृष्टि से, क्योंकि इन्हें एक के ऊपर एक रखना सुगम नहीं है। लकड़ी के डिब्बे अधिक समय तक पर्यावरण की दृष्टि से उचित नहीं है। साधन जो आज की आवश्यकता भी है और वैज्ञानिक तरीके पर खरा उतरता है वह है प्लास्टिक क्रेट, सी॰बी॰एफ॰ बाक्स, मोल्डेड टे मूल्यवान फलों हेतु संवेष्टन प्रौद्योगिकी विकसित की जा चुकी है और प्रयोग की जा रही है। इससे न केवल कटाई के उपरान्त होने वाली क्षति को रोकने में सहायता मिलेगी बल्कि उच्च गुणवत्ता वाला कच्चा माल ताजा या प्रसंस्करण हेतु उपलब्ध रहेगा। प्लास्टिक क्रेट एवं सी॰बी॰एफ॰ बाक्स में परिवहन सुगम हो जाता है।

English Summary: The complete information about the maintenance of fruits and vegetables ... Published on: 30 November 2017, 03:37 IST

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