केला की खेती सफलतापूर्वक आर्द्र उपोष्ण एवं उष्ण क्षेत्रों में समुद्र की सतह से 2000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है. भारत में 8 से लेकर 28 डिग्री उत्तरी अक्षांश तक 12-38 डिग्री सेल्सियस तापक्रम एवं 500-2000 मिलीलीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. उच्च अक्षांश में केला की खेती हेतु कुछ ही प्रजातियों को लगाया जा सकता है जैसे, भिरूपाक्षी केला की खेती के लिए आदर्श तापक्रम 20 से 30 डिग्री सेल्सियस है. इसके ऊपर या नीचे केला की वृद्धि रुक जाती है. 12 डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापक्रम पर पौधे की वृद्धि रुक जाती है. क्योंकि केले के पौधे के अन्दर का दूध जैसा स्राव होता है जो ठंड की वजह से जम जाता है.
यदि केला का घौद जाड़े के मौसम में निकलता है, तो वह जाड़ा की वजह से प्रभावित होता है. तना के भीतर फंसा हुआ प्रतीत होता है और कभी-कभी विलम्ब से तना को फाड़ते हुए बाहर निकलता है. अतः अत्यधिक जाड़ा एवं गर्मी दोनों ही केला के पौधों के लिए हानिकारक हैं. खेत में जलजमाव की स्थिति भी इसकी वृद्धि को प्रभावित करती है, जबकि केला पानी को अधिक पसंद करने वाली फसल है.
केले के पौधे की गर्म एवं तेज हवाओं से रक्षा करने के उदेश्य से वायुरोधक पौधे या वृक्ष खेत के किनारे या मेड़ पर लगाये जाने चाहिए. केला को 12-13 डिग्री सेल्सियस पर ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना चाहिए क्योंकि उक्त तापक्रम पर श्वसन सबसे कम होता है.
उच्च तापक्रम पर पौधों के झुलसने की सम्भावना रहती है. प्रकाश एवं केला की वृद्धि के मध्य कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं हो सकता है. लेकिन गर्मियों में 50 प्रतिशत छाया में भी केला की खेती की जा सकती है. वर्षा के जल पर आधारित खेती में भी 25 मीमी वर्षा प्रति सप्ताह पर्याप्त है अन्यथा सिचाई की व्यवस्था करनी पड़ती है.
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