सब्जियों में कुछ फसलें ऐसी हैं जिनके बीज को सीधे खेत में बोया जाता है क्योंकि इन फसलों का रोपा तैयार करके रोपाई के समय जो आघात लगता है उसको सहने की क्षमता नहीं होती। जैसे – भिण्डी, बरबटी, सेम, मटर, फ्रेंचबीन आदि। दूसरी तरफ कुछ फसलें ऐसी हैं जिनके पौध तैयार कर खेत में रोपाई की जा सकती है। जैसे- टमाटर, बैंगन, मिर्च, प्याज, पत्तागोभी, फूलगोभी, गांठगोभी आदि। इन सब्जियों के पौधों में रोपाई के समय लगने वाले आघात को सहने की क्षमता पायी गई है। अतः इन पौधों के बीजों को शुरू में पौधशाला (नर्सरी) में बोया जाता है लेकिन नर्सरी में पौधों को तैयार करना एक कला है।
नर्सरी एक ऐसी स्थल है जिसके लिये आदर्श जलवायु, भूमि तथा सिंचाई व्यवस्था आवश्यक है। नर्सरी का उद्देश्य आदर्श पौधे तैयार करना है। अतः नर्सरी प्रबंध उचित ढंग से करना आवश्यक है। नर्सरी का उचित प्रबंध तथा पौध प्रतिरोपण सब्जी उत्पादन के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं। नर्सरी तैयार करने के लिये निम्न कारकों पर समुचित ध्यान देना आवश्यक है।
सब्जियों की नर्सरी के प्रकार
1- ऊपर उठी हुई क्यारियां (रेज्ड बेड):- वर्षा एवं ठंड के मौसम में पौधे तैयार करने हेतु समतल क्यारियां बनाते हैं।
2- समतल क्यारियां (फ्लैट बेड):- गर्मी के मौसम में पौधे तैयार करने हेतु समतल क्यारियां बनाते हैं।
मृदाः
सब्जियों की पौध नर्सरी में लगभग एक मीटर चैड़ी क्यारियों में उगाई जाती है। इस हेतु मृदा का अच्छी भौतिक दशा वाला होना आवश्यक है। मिट्टी हल्की भुरभुरी व पानी को सोखने वाली होनी चाहिये। सतह पर जल्दी सूखने वाली होनी चाहियें, पर वैसे एकदम सूख जाने वाली भी होनी चाहिये। उसमें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व होने चाहिये।
नर्सरी के लिये मृदा तैयार करना
एक समान और अच्छे अंकुरण के लिये मिट्टी का महीन नम और भली-भांति बैठा हुआ होना आवश्यक है। मिट्टी में अच्छी कार्बनिक खाद जैसे-पकी हुई कम्पोस्ट या गोबर की खाद मिलाई जानी चाहिये। गमलों, बक्सों आदि में भरने के लिये उपयुक्त एक अच्छे मिश्रण में 2 भाग मिट्टी, 1 भाग बालू तथा 1 भाग पत्तियों की खाद होनी चाहिये। नर्सरी क्यारियों की मिट्टी को किनारे से दाब कर अच्छी तरह बैठा देना चाहिये अन्यथा वह सिंचाई या भारी वर्षा के कारण कटने लगती है। खुले में बनी क्यारियों की चौड़ाई इतनी होनी चाहिये कि नर्सरी से घुसे बगैर निंदाई करने तथा पानी देने में कठिनाई न हों।
नर्सरी निर्जमीकरण (स्टरलाइजेशन)
सर्वप्रथम उपरोक्तानुसार क्यारियां तैयार करने के बाद 10 मि.ली फॉर्मेलिन एक लीटर पानी में मिला कर घोल बना लें। इस घोल को नर्सरी की क्यारियों पर लगातार छिड़कते रहें ताकि क्यारियों की ऊपरी 15 सें.मी. तह की मिट्टी दवा के घोल से संतृप्त हो जाए। छिड़काव के तुरन्त बाद क्यारियों को पॉलिथीन शीट पर अनुपयोगी बोरों से ढंक दें ताकि फॉर्मेलिन व्यर्थ न जाकर मृदा में ही समा जाए। छिड़काव के सात दिन बाद ढंके हुए बोरों या पॉलिथीन शीट को हटा लें। क्यारियों को फावड़े से गुड़ाई कर सात दिनों तक खुला छोड़ दें, तदुपरान्त क्यारियों को समतल करने के बाद ही बीजों की बुवाई की जा सकती है। बुवाई के बाद हाथ से या लकड़ी की छोटी पटिया से क्यारी को समतल कर ताकि बोया हुआ बीज अच्छी तरह से ढक जाय। इसके पश्चात क्यारी पर सूखी घास फैला दे ताकि क्यारी को सींचते समय बीज और मिट्टी बह न जाए। बोने के तुरन्त बाद हजारे के फव्वारे के रूप में सींच दें।
ज्यादतर सब्जियों के पौध बुवाई के 25 से 30 दिन पश्चात् लगाने लायक हो जाते हैं। सिर्फ प्याज के पौध लगाने के लिये तैयार होने में 45 दिन का समय लगता है।
बीजोपचारः
नर्सरी के बीज बोने से पहले बीज का उपचार थाइरम नामक फफूंदनाशक दवा से किया जाये। बीजोपचार के लिये 25 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से करना अतिआवश्यक है।
बीज की बुवाई:
नर्सरी क्यारियों में बीज बिखेर कर नहीं बोना चाहिए। बीज को पंक्तियों में बोना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बीज बोते समय हवा न बह रही हो। पौधों को सूखने से बचाना चाहिए तथा बीज बोने के बाद बहुत हल्की सिंचाई करनी चाहिए। बुवाई के बाद नव अंकुरित पौधों को आर्द्र पतन रोग से भी काफी डर रहता है। अतः बीजों को पंक्तियों में क्यारी की चौड़ाई में बनी आकार नालियों में बोना चाहिए। बीज बोने के लिये बनाई गई पंक्ति में बीज के आकार और किस्म के अनुसार 5.7 सेंमी की दूरी पर बोनी चाहिए। ऐसा करने से खरपतवारों को उखाड़ रोगों की रोकथाम और प्रतिरोपण के लिए पौध निकालने में सुविधा रहती है। बीज कितनी गहराई में डाला जाए यह बीज के आकार और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर है।
कुछ छोटे बीजों को बोने से पूर्व थोड़ी सी बालू के साथ मिला लेना चाहिए और बोने के बाद यदि आवश्यक हुआ तो मिट्टी खाद मिश्रण की एक बहुत पतली परत से उसे बंक देना चाहिए। बुवाई के बाद क्यारियों या गमलों में महीन हजारे से इस प्रकार पानी छिड़कना चाहिए ताकि मिट्टी गीली हो जाए पर बहे नहीं।
बुवाई के बाद नर्सरी की देखरेख
नर्सरी क्यारियां आमतौर पर कुंए या पानी के स्त्रोत के पास ही बनाई जाती है जिससे पानी समय पर व आसनी से उपलब्ध हो सके। यदि आरंभिक अवस्था में धूप में बहुत तेजी हो तो दिन में पौधे को हल्की पत्तियों से ढंक कर दोपहर की धूप में पौधे को बचाना चाहिए। जब पौध थोड़ी बड़ी हो जायेगी तो उन्हें अधिक धूप तथा कम पानी देकर मोटा और बौना बनाना और साथ ही कीटों व रोगों से मुक्त रखना चाहिए। ऐसे रोगी पौधों को नर्सरी क्यारियों से तुरन्त निकाल फेंकना चाहिए और रोग को शेष पौध में फैलने से रोकने के लिए अधिक धूप और हवा देनी चाहिए और पानी कम से कम देना चाहिए।
पौधे को सहिष्णु बनाने के लिए प्रतिरोपण से एक सप्ताह पूर्व पौध में सिंचाई बहुत कम करके उन्हें धूप खूब दिखानी चाहिए। ऐसा करने पर वे प्रतिरोपण के फलस्वरूप लगने वाले धक्के को आसनी से सह लेते हैं।
नर्सरी में बीज बुवाई से लाभ:
- नर्सरी के एक छोटे किन्तु घने क्षेत्र में उगी नई कोपल पौध की देखरेख करना सुविधाजनक रहता है।
- रोगों और कीटों से उनकी रक्षा के लिए समय पर उचित उपचार किया जा सकता है।
- पौध को नर्सरी में उगने के लिए अनेक परिस्थितियां प्रदान की जा सकती हैं।
- नर्सरी में तैयार की गई पौध को खेतों में प्रतिरोपण करने से -
अ. उनको कुछ समय तक प्रतिकूल परिस्थितियों से सुरक्षा की जा सकती है।
ब. अगेती बुवाई करके अच्छे दाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
- इससे भूमि की बचत होती है तथा भूमि तैयार करने के लिए अधिक समय मिल जाता है।
- सब्जियों के बीज महंगे होते हैं। नर्सरी में उगाने से उनकी बर्बादी नहीं होती है।
- प्रतिरोपण के बाद नये तैयार खेत में कीटों एवं रोगों की रोकथाम करना सरल होता है।
पौध प्रतिरोपण:
पौध प्रतिरोपण जीवित पौधों को एक स्थान से निकालकर दूसरे स्थान पर स्थापित करना है। यह एक वेगवान कार्यवाही है जो उस समय की जानी है जब पौध या तो सुप्त अवस्था में हो अथवा अत्याधिक सक्रिय वृद्धि कर रही हो।
प्रतिरोपण कब करें:
प्रतिरोपण में देरी नहीं करनी चाहिए। जैसे ही पौध 10.15 सें.मी. ऊंची हो जाए और उसमें तीन-चार वास्तविक पत्तियां आ जाएं उन्हें प्रतिरोपित कर देना चाहिए। निर्भर करता है।
प्रतिरोपण हमेशा सायंकाल को करना चाहिए ताकि रात्रि के ठंडे वातावरण में पौध भली-भांति स्थापित हो जायें और धूप लगने से पहले ही प्रतिरोपण के धक्के को सहन कर लें। यदि बादल छाये हों और बूंदाबांदी हो रही हो तो प्रतिरोपण किसी भी समय किया जा सकता है। प्रतिरोपण के लिए पौध निकालने से 24 घंटे पूर्व क्यारियों को अवश्यक सींच लेना चाहिए ताकि पौध के उत्तकों का शुष्कीकरण न हो।
प्रतिरोपण कैसे करें
प्रतिरोपण से पूर्व खेत को अच्छी तरह तैयार कर लें। पौधे के चारों ओर की मिट्टी अच्छी तरह बैठी हुई होनी चाहिए जिससे नई लगाई पौध नम मिट्टी के सम्पर्क में रहे और नीचे की नमी पौधों को उपलब्ध हो सके। जड़ों को हिलाए बगैर थोड़ी-सी पौध सावधानीपूर्वक खुरपी की सहायता से निकालनी चाहिए। पौध अलग-अलग कर के खेत में बनाए प्रत्येक गड्ढ़ों में रखकर जड़ के पास की मिट्टी हल्के हाथ से दबा देनी चाहिए ताकि वह ठोस हो जाए। पौध निकालने के बाद प्रतिरोपण का काम यथासंभव शीघ्र समाप्त करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पौध मुरझाए नहीं। इसके लिए पौध के ऊपर थोड़ी-थोड़ी देर बाद पानी की बूंदें छिड़क देनी चाहिए तथा पौधे की जड़ों को गीली मिट्टी से ढंक कर रखना चाहिए। पौध की पत्तियां तोड़नी नहीं चाहिए। प्रतिरोपण पूरा हो जाने पर खेत को तुरन्त सींचना चाहिए।
प्रतिरोपण के समय बरती जाने वाली सावधानियां
पौध को नर्सरी से इस प्रकार निकालनी चाहिए कि क्षति कम हो। पौध निकालने से पहले क्यारी को भली-भांति सींच लें। आवश्यकता से अधिक पौध न निकालें। पौध निकालने के बाद इसे गीले कपड़े से ढंक कर छाया में रखें ताकि उसमें से पानी का वाष्पीकरण कम से कम हो।
पौध की जड़ के चारों ओर की मिट्टी अच्छी तरह दबा कर ठोस कर लें ताकि पौधे मृदा के निकट सम्पर्क में हो जाएं। दबाव पौधों पर नहीं नीचे की मिट्टी पर डालना चाहिए जिससे मिट्टी मूलतंत्र के चारों ओर भली-भांति दब जाए और जड़ के चारों ओर हवा कर रिक्त स्थान न रह जाए। यह क्रिया विशेषकर बरसात के दिनों में बहुत आवश्यक है।
पौधरोपण के समय कभी-कभी वाष्पीकरण रोकने के लिए पौध की पंक्तियां कम कर दी जाती हैं ताकि जड़ों से सोखे जाने वाले और पत्तियों की कटाई-छंटाई या प्याज में पौध के ऊपरी भाग को वाष्पोत्सर्जन कम करने की दृष्टि से नीचे फेंकना उचित नहीं है। हल्की छंटाई तो लाभदायक हो सकती है परन्तु भारी छंटाई के फलस्वरूप उपज में कमी आ जाती है। कटी हुई सतह से पानी का हास सभी पत्तियों से होने वाले कुल वाष्पोत्सर्जन से होने वाले हास की अपेक्षा अधिक हो सकता है।
प्रतिरोपण का कार्य जितनी जल्दी हो सके पूरा कर लेना चाहिए। निकाली हुई पौध को मुरझाने नहीं देना चाहिए और उसे खेत तक निम्न प्रकार से ले जाना चाहिएः-
अ. पौध को टोकरी में गीले कपड़े या बोरे से ढंक कर ले जाना चाहिए।
ब. पौध की जड़ों को किसी बर्तन में जल में डुबो कर रखना चाहिए।
प्रतिरोपण से लाभ:
1- इससे महंगे बीजों की बचत होती है तथा हल्की गति से आने वाले पौधों की उचित देखरेख हो जाती है।
2- प्रतिरोपण के समय जड़ों की काट-छांट हो जाने के कारण पौधों में कई छोटी शाखा वाली जड़ें विकसित हो जाती हैं जिससे पौधे खेत में रोपे जाने पर अच्छी तरह स्थापित हो जाते हैं क्योंकि प्रतिरोपित किए जाने वाले पौधे की जड़ें मिट्टी के पिंड में बंधी रहती हैं।
3- प्रतिरोपण के फलस्वरूप खेत में फसल लगाए जाने से उसके कटने तक का समय भी घट जाता है जिसके कारण फसल जल्दी तैयार हो जाती है तथा बाजार में अधिक मूल्य पर बिक जाती है। साथ ही इससे फसल उत्पादन अवधि भी आसानी से बढ़ाई जा सकती है।
4- प्रतिरोपण द्वारा फसलें प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों में भी उगाई जा सकती हैं।
5- प्रतिरोपण द्वारा बोई गई किस्म के अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं क्योंकि इसमें पौधों के बीच समुचित दूरी रखी जा सकती है तथा रोगों और कीटों से उनकी सुरक्षा भी की जा सकती है।
6- इसके फलस्वरूप फसल समान रूप से पकती है, उपज अच्छी होती है।
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