
देश के प्रगतिशील राज्यों में स्मार्ट हार्टिकल्चर अथवा डिजिटल हार्टिकल्चर की चर्चा जोर पकड़ रही है, जो बागवानी क्षेत्र में तकनीक आधारित खेती की एक नवीन और उन्नत दिशा की ओर संकेत करता है. यद्यपि बिहार के अधिकांश किसान सीमित संसाधनों के कारण इस तकनीक से अभी पूर्ण रूप से जुड़ नहीं पाए हैं, फिर भी राज्य में कुछ प्रगतिशील किसान तकनीक को अपनाकर स्मार्ट बागवानी की मिसाल कायम कर रहे हैं.
क्या है स्मार्ट हार्टिकल्चर?
स्मार्ट हार्टिकल्चर, जिसे डिजिटल हार्टिकल्चर या स्मार्ट बागवानी भी कहा जाता है, बागवानी में उन्नत तकनीकों, सेंसर, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), डेटा विश्लेषण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), और मशीन लर्निंग (ML) जैसे साधनों के उपयोग से फसल प्रबंधन को सटीक, प्रभावी और टिकाऊ बनाने की एक आधुनिक विधा है. इसका प्रमुख उद्देश्य खेती को डेटा-संचालित बनाकर उच्च उत्पादकता, कम लागत, संसाधनों की कुशलता और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना है.
स्मार्ट हार्टिकल्चर के प्रमुख घटक
सेंसर आधारित खेती – मिट्टी की नमी, तापमान, आर्द्रता, प्रकाश तीव्रता, और पोषण स्तरों की निगरानी के लिए अत्याधुनिक सेंसर का उपयोग कर पौधों की आवश्यकताओं के अनुरूप खेती संभव होती है.
IoT और कनेक्टेड डिवाइस – सभी स्मार्ट उपकरण एक-दूसरे से जुड़कर डेटा शेयर करते हैं और दूरस्थ रूप से निगरानी व नियंत्रण की सुविधा प्रदान करते हैं.
ऑटोमेटेड सिंचाई प्रणाली – मौसम और मिट्टी की जानकारी के आधार पर पौधों को आवश्यकतानुसार ही जल आपूर्ति होती है, जिससे जल की बचत होती है.
AI और ML का प्रयोग – विभिन्न डेटा का विश्लेषण कर रोग, कीट या पोषण की समस्याओं की पूर्व जानकारी प्राप्त होती है जिससे समय रहते समाधान संभव होता है.
वर्टिकल फार्मिंग – सीमित स्थानों में उन्नत तकनीकों जैसे हाइड्रोपोनिक्स और एलईडी लाइटिंग से अधिक उत्पादन संभव है.
रिमोट मॉनिटरिंग और मोबाइल एप्स – मोबाइल या कंप्यूटर से बागवानी संचालन की निगरानी, अलर्ट और कंट्रोल संभव होता है.
डेटा एनालिटिक्स – एकत्रित आंकड़ों का विश्लेषण कर किसान अपनी रणनीति में सुधार कर सकते हैं और फसल उपज बढ़ा सकते हैं.
रोबोटिक सिस्टम – पौधारोपण, कटाई और छंटाई जैसे कार्यों में रोबोटिक मशीनों का प्रयोग कर श्रम की बचत और कार्य की गुणवत्ता सुनिश्चित की जाती है.
ऊर्जा प्रबंधन – नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ स्मार्ट लाइटिंग और बिजली प्रबंधन प्रणाली का उपयोग कर लागत में कमी आती है.
स्मार्ट हार्टिकल्चर के बहुपरिणामी लाभ
उत्पादकता में वृद्धि
अनुकूल वातावरण और सटीक संसाधन प्रबंधन से फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में वृद्धि होती है.
संसाधनों की बचत
जल, उर्वरक और कीटनाशक आदि की सटीक आपूर्ति से अपव्यय की रोकथाम होती है और पर्यावरणीय प्रभाव भी घटता है.
रोग एवं कीटों की समय पर पहचान
सेंसर और डेटा एनालिटिक्स से फसलों में किसी भी जैविक समस्या की समय रहते पहचान कर उस पर प्रभावी नियंत्रण संभव होता है.
तत्काल निर्णय की सुविधा
वास्तविक समय डेटा के आधार पर सिंचाई, कीटनाशन, पोषण प्रबंधन जैसे कार्यों में त्वरित निर्णय लेकर हानि से बचा जा सकता है.
कम श्रम की आवश्यकता
रोबोटिक और ऑटोमेशन तकनीकों के कारण मैनुअल श्रम की आवश्यकता कम होती है, जिससे लागत घटती है.
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से सुरक्षा
स्मार्ट प्रौद्योगिकियों से मौसम और जलवायु की अनिश्चितता के प्रभाव को कम किया जा सकता है, जिससे कृषि जोखिम घटते हैं.
टिकाऊ और पर्यावरण हितैषी खेती
न्यूनतम रासायनिक उपयोग, जल और ऊर्जा की बचत से यह खेती प्रकृति के अनुरूप होती है और लंबे समय तक लाभ देती है.
बिहार के किसान भी हों तैयार
यह आवश्यक है कि बिहार के किसान और कृषि उद्यमी भी स्मार्ट हार्टिकल्चर की दिशा में आगे बढ़ें. इसके लिए विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र, और राज्य सरकार मिलकर प्रशिक्षण, प्रदर्शन परियोजनाएं और वित्तीय सहायता के माध्यम से किसानों को जागरूक करें. स्थानीय स्तर पर स्वदेशी तकनीकों का समावेश कर स्मार्ट बागवानी को अधिक सुलभ और किफायती बनाया जा सकता है.
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