आम अपने देश एवं प्रदेश में सर्वाधिक पसंद किए जाने वाला फल है। राज्य की समस्त भाग की जलवायु इसकी खेती हेतु उपयुक्त है। छत्तीसगढ़ में जलवायु की दृष्टि से अतिरिक्त लाभ यह है कि अधिकांश उत्तर भारतीय व्यावसायिक किस्मों में उत्तर भारत की अपेक्षा 20 से 25 दिन पहले फल आता है फलतः फसल भी बाजार में पहले आती है इसलिए इस फल की खेती की राज्य में अपार संभावना है।
क्यों करना है ?
- राज्य में उच्चाइन एवं पड़त भूमि की अधिकता है जहां सिंचाई साधन विकसित कर सफल खेती की जा सकती है।
- उत्तर भारत की अपेक्षा फसल 20 से 25 दिन पहले बाजार में आती है।
- आम के समस्त भाग जैसे पत्ती फल लकड़ी उपयोगी होते हैं।
- आम के बगीचे के साथ-साथ अतिरिक्त आमदनी हेतु प्रारम्भिक 8-10 वर्षों तक अंतरासस्य की भी फसल की जा सकती है।
क्या करना है ?
- उप्युक्त किस्मों का चयन।
- उचित गुणवत्ता के चाहे अनुरूप किस्मों के स्वस्थ पौधों का चयन।
- उपयुक्त भूमि का चयन कर सिंचाई स्रोत विकसित करना।
- चयनित भूमि को जानवरों से सुरक्षित रखने हेतु स्थानीय संसाधनों के अनुरूप उचित घेराव का प्रबंध करना।
कहां करना चाहिए ?
- दोमट भूमि सर्वाधिक उपयुक्त किन्तु सभी प्रकार की भूमि जिसके नीचे कड़ी मिट्टी/चट्टान हो, आम का बगीचा उगाया जा सकता है।
- ऐसी भूमि जहां वर्षा के मौसम में पानी न इकट्ठा होता हो तथा उचित जल निकास की सुविधा हो।
- ऐसी भूमि जहां आंशिक रूप से सिंचाई साधन हो।
- ऐसा क्षेत्र जहां पुष्पन के समय वर्षा होने की संभावना न्यूनतम हो।
- ऐसा स्थान जहां का वायु मंडल प्रदूषित न हो जैसे कि ईंटभट्ठा की चिमनियां आप-पास न हों।
छत्तीसगढ़ के परिप्रेक्ष्य में:-
- राज्य देश के उत्तर एवं दक्षिण मध्य में स्थित होने से उत्तरी व्यावसायिक आम की किस्मों के साथ दक्षिणी लगातार फलन एवं प्रसंस्करण की किस्मों हेतु उपयुक्त है।
- राज्य की जलवायु की विशिष्टता के कारण उत्तर भारतीय किस्में पहले जबकि दक्षिण भारतीय किस्में देर से बाजार में आने से कृषकों को अतिरिक्त लाभ संभावित है।
- उच्चाइन एवं पड़त भूमि जो अधिकता में उपलब्ध है जहां वर्तमान में कम लाभदायक, तिल, कुल्थी मूंग, उड़द कोदो आदि की फसलें ली जाती हैं। वहीं पर आम के बगीचे के साथ-साथ फसलों की खेती की जा सकती है।
कब करना है ?
- असिंचित/अर्धसिंचित भूमि में माह जून में जब 4 से 6 इंच वर्षा हो चुकी हो पूर्व से तैयार गड्ढों में रोपड़ के लिए उपयुक्त रहता है।
- सिंचाई की उपलब्धता के अनुसार संपूर्ण वर्षा का मौसम 15 जुलाई से 15 अगस्त की अवधि को छोड़कर रोपण हेतु सर्वाधिक उपयुक्त रहता है।
- पर्याप्त एवं सुनिश्चित सिंचाई उपलब्ध होने पर फरवरी-मार्च का माह रोपण हेतु सर्वाधिक उपयुक्त रहता है।
रोपण पश्चात निम्नानुसार वर्षवार खाद उर्वरक पौधों में प्रति पौध की मात्रा दें:-
कैसे करना है ?
- बगीचा रोपण हेतु सम्पूर्ण क्षेत्र की सफाई कर उचित रेखांकित करना चाहिए।
- पारंपरिक आम फलोद्यान हेतु पौध से पौध एवं लाइन से लाइन की दूरी 10 से 12 मीटर रखकर 1X1X1 मीटर आकार के गड्ढे माह अप्रैल/मई में खोद लेना चाहिए।
- सघन तकनीकी से आम फलोद्यान हेतु पौध से पौध एवं लाइन से लाइन की दूरी 2.5 मीटर रखते हुए गड्ढे की खुदाई की जाती है।
- वर्षा प्रारम्भ के पूर्व माह जून में प्रति गड्ढा 50 कि. ग्राम गोबर, खाद 500 ग्राम सुपरफॉस्फेट एवं 750 ग्राम पोटाश एवं 50 ग्राम क्लोरोपाइरीफ़्रांस मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर भरना चाहिए।
- उपयुक्त समय आने पर प्रत्येक गड्ढे में एक आम की चयनित किस्म की स्वस्थ पौध का रोपण करना चाहिए।
- वर्षा समाप्ति पश्चात् प्रत्येक 7 से 15 दिनों के अन्तर में सिंचाई करना चाहिए।
- खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग वर्ष में दो बार दो भागों में बंाट कर माह जून एवं अक्टूबर माह में रिंग बनवाकर देना चाहिए।
किस्में:-
शीघ्रफलन:- बैंगनफली, बॉम्बे ग्रीन, दशहरी, लंगड़ा, गुलाबखस, तोतापरी।
मध्यमफलन:- अलफांजो, हिमसागर, केशर सुन्दरजा, आम्रपाली, मल्लिका।
देरवाली किस्में:- चैंसा, फजली
प्रसंस्करण वाली किस्में:- तोतापरी, बैंगनफली, आलफांजो
पौध संरक्षण:
चूर्णीफफूंदी - फूल-फल पत्तियों एवं छोटी टहनियों पर पहले सफेद भूरे रंग का चूर्ण बाद में प्रभावित भाग भूरा हो कर सूख जाता है। रोकने हेतु 0.2 प्रतिशत गंधक का 15 दिन के अंतर से छिड़काव अथवा 0.1 प्रतिशत कोशान का छिड़काव।
ऐन्थेक्नोज - वृक्ष की नवीन टहनियों, पत्तियों, फूलों तथा फलों पर गहरे रंग के चकते बनते हैं। बाद में नवीन शाख एवं पत्तियां सूख जाती हैं अथवा छिद्र बन जाता है। 3:3:50 का बोर्डो मिक्चर 15 दिन के अंतर से 3 बार छिड़काव।
बंधा रोग:- पत्तियां छोटी होकर गुच्छा एवं पुष्पक्रम भी गुच्छे में बदल जाता है। प्रभावित भाग छंटाई कर
एन.ए.ए. का 02 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
मैंगो हॉपर या तेला:- छोटे भूरे कीट जो फल, पुष्प एवं फलों के रस चूसते हैं, रोकने हेतु 0.03 प्रतिशत मोनोक्रोटोफ़्रांस का छिड़काव 2 या 3 बार 7 दिनों के अन्तर से ।
मीली बग:- सफेद कोमल कीट जो झुण्ड में फलों का रस चूसते हैं। रोकथाम हेतु 0.03 प्रतिशत पेराथियाँन का छिड़काव। वृ़क्ष के तने के चारों ओर गुड़ाई कर वर्षा समाप्ति पर 5 प्रतिशत एल्डिन मिलाएं।
फसल उत्पादन:- बगीचे में 6वें वर्ष से प्रति पेड़ 250 फल जो लगभग 50 कि. ग्रा. होता है, उत्पादन प्राप्त होता है तथा आगामी वर्षों में 15 से 20 वर्ष की अवधि तक औसतन 15 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि होती जाती है इस प्रकार औसतन बगीचे में 6 वें 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर का उत्पादन संभावित रहता है।
तुड़ाई उपरान्त रख-रखाव:-
- फलों की तुड़ाई उसके गूदे (पल्प) में उचित रंग आने पर इस प्रकार तोड़ाई करना चाहिए कि फलों के साथ थोडे़ डंठल भी हों तथा फल भूमि पर न गिरने पाए।
- फलों की तुड़ाई के बाद साफ कपड़े से अच्छे प्रकार से सफाई करना चाहिए।
- फलों को उसके आकार के अनुसार ग्रेडिंग करना चाहिए।
- फलों को बाहर भेजने हेतु लकड़ी के बॉक्स अथवा हवादार कार्टन में सूखे भूसे अथवा सूखी पत्तियां डाल कर बंद करना चाहिए।
ध्यान देने वाली विशेष बातें:-
- बगीचे का रोपण ईंट भट्ठे आदि प्रदूषित स्थल से दूर रहना चाहिए।
- बगीचे के लिए स्थल चयन करते समय ध्यान रहे हाइवोल्टेज विद्युत लाइन न गुजरती हो।
- नियमित बगीचे के वृक्षों की कटाई-छंटाई इस प्रकार करना चाहिए जिससे रोगग्रस्त शाखाएं विफल हो जाएं, तथा पूरा वृक्ष गोला आकार लें।
- मालफॉमेंशन की बीमारी के लिए विशेष सजग रहना चाहिए, तथा प्रभाव परिलक्षित होने पर तत्काल तकनीकी अनुशंसा अनुरूप कार्यवाही करें।
मुख्य फसल की विस्तृत जानकारी:-
आम की खेती मुख्य फसल के रूप में की जानी चाहिए तथा दो पौधों के मध्य रिक्त स्थान को प्रारंभिक अवस्था में ऐसे फसलों को उगाने में किया जा सकता है, जिनके बेल नहीं होती हैं। बाद की अवस्था में जब 50 प्रतिशत से अधिक छाया की स्थिति उत्पन्न हो गई हो तब आंशिक छाया चाहने वाली फसलों जैसे - अदरक, हल्दी आदि की खेती की जा सकती है।
उद्यानिकी विभाग की राज्य पोषित योजनाएं:-
- प्रदेश में फल पौधरोपण योजना के अंतर्गत आम के क्षेत्र में विस्तार एवं फल उत्पादन में वृद्धि करने की इस योजना के अंतर्गत भू-स्वामी कृषक को आम फलोद्यान रोपण पर प्रति हैक्टेयर लागत राशि 43,750.00 रू. पर 25 प्रतिशत अनुदान राशि 10,938.00 रू. पांच वर्षों में देने का प्रावधान है, जिसमें प्रति कृषक न्यूनतम 0.25 है। एवं अधिकतम 02 है. तक अनुदान देने का प्रावधान है।
- आम, बेर, आंवला के देशी वृक्षों को उन्नतशील किस्मों में परिवर्तन हेतु प्रशिक्षित बेरोजगार युवकों द्वारा किए गए टॉप वर्किंग कार्य पर (जब शाखा लगभग 02 फीट की हो जाए) राशि रू 10.00 प्रति सफल परिवर्तित वृक्ष पारिश्रमिक दिए जाने का प्रावधान है।
वार्षिक कार्यमाला:-
मई:- तकनीकी अनुशंसा अनुरूप ले-आउट गड्ढे की खुदाई फलित बगीचे की सिंचाई, शीघ्र पकने वाली किस्मों की फल तुड़ाई आदि।
जून:- 4 से 6 इंच वर्षा पश्चात् फलोद्यान रोपण, मध्यम एवं देर वाली किस्मों की फल तुड़ाई, वृक्षों के थाले में खाद एवं उर्वरक डालकर थाला भराई एवं कटाई एवं जुताई।
जुलाई:- अत्याधिक देर वाली किस्म जैसे - फसली, चैंसा आदि की तौड़ाई यदि विगत माह में खाद उर्वरक डालकर थाला भरने का कार्य शेष रह गया हो तो भराई उचित जल निकास।
अगस्त:- उचित जल निकास का प्रबंध एवं अन्य देखभाल।
सितम्बर:- बगीचे की सफाई निराई-गुड़ाई, सामान्य देखभाल एवं कटाई- छंटाई।
अक्टूबर:- वर्षा समाप्ति पश्चात् थाला बनाना, खाद उर्वरक डालना, टपक सिंचाई के संयंत्र का सफाई एवं फैलाना, बगीचे की जुताई, बोर्डा पेस्ट लगाना।
नवम्बर:- वर्षा देर तक होने की स्थिति में माह अक्टूबर में बताए कार्य जो किए जाने शेष रह गए हों, किए जाएं तथा अनुशंसा अनुरूप सिंचाई।
दिसम्बर:- थाले में निराई- गुड़ाई तथा अनुशंसा अनुरूप सिंचाई तथा किस्मों के अनुसार देना।
जनवरी:- बगीचे की सामान्य देखभाल, हॉपर रोकथाम हेतु उपाय, जल्द वाली किस्मों में पुष्पन आरम्भ होने पर सिंचाई प्रारम्भ।
फरवरी:- माल फार्म शाखाओं की छंटाई, हॉपर कीट की रोकथाम, पादप वृद्धि नियामक का फल स्थापन हेतु छिड़काव, थाले की गुड़ाई यदि खाद उर्वरक का द्वितीय उपयोग न हो पाया हो तो उपयोग करना, सिंचित क्षेत्र में नवीनरोपण।
मार्च:- सामान्य देखभाल अनुशंसा अनुरूप सिंचाई, आवश्यकतानुसार कीट बीमारियों की रोकथाम।
अप्रैल:- सामान्य देखभाल, सिंचाई कीट बीमारियों की रोकथाम।
अर्चना बंजारे, रितिका ठाकुर एवं डॉ. आर. एन. शर्मा
कृषि विज्ञान केन्द्र, कटघोरा, कोरबा, छत्तीसगढ़
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