साल दर साल उर्वरकों के अत्यधिक इस्तेमाल से बंजर होती जमीन, प्रदूषित होते जमीनी पानी के स्त्रोत, मनुष्य और जानवर की बिगडती सेहत, प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता बोझ, घटती किसानों की आय, ये सभी संकेत हैं हमारे लिए कि हम अपनी खेती की पद्धति में बदलाव लायें, अन्यथा परिणाम और भी भयावह हो सकते हैं l वैज्ञानिकों द्वारा अप्राकृतिक उर्वरकों की जगह लेने के लिए केंचुआ खाद का विकल्प बहुत लम्बे वक़्त से मौजूद है l इस विकल्प की स्वीकार्यता2 वजहों से नहीं बढ़ पा रही है l एक, किसानों को अधूरी या जानकारी ही न होना, दूसरी इसका कुप्रचार जो की उन लोगों की वजह से होता है जो ऐसे प्रोजेक्ट अपना तो लेते हैं मगर अधूरी देखभाल एवं वैज्ञानिक तरीके से रखरखाव नहीं करते और यही उनकी असफलता का कारण बनता है l सरकारों का दायित्व है की वह ऐसी पद्धतियों को प्रोत्साहित करने के लिए विस्तार, ट्रेनिंग एवं शोध में तत्पर भाव से काम करे l
कोई भी व्यवसाय तभी अपनाया जायेगा जब वह किसान की आय को बढाए और केंचुआ खाद की बढती खपत इसका व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन करने वालों के लिए आय वर्धक का काम बखूबी कर रही हैl केंचुआ खाद बनाने की विधि के अलावा जरूरी है उसमें होने वाले खर्चे और इससे होनेवाले मुनाफे की सही जानकारीl 1 एकड़ में 200 टन प्रति वर्ष केंचुआ खाद बनाने के फार्म में होने वाली आय और व्यय का विवरण सारिणी 1 और 2 में दिया गया है l
सारिणी 1: 200 टन प्रति वर्ष केंचुआ खाद के फार्म का आर्थिक मूल्यांकन l
क्र.सं. |
विवरण |
मात्रा |
मूल्य (रु.) |
रकम (रु.) |
स्थायी खर्चे |
|
|||
1. |
अस्थायी शेड |
1 एकड़ |
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72,000 |
2. |
औजार एवं यन्त्र |
|
|
80,000 |
3. |
ऑफिस अथवा स्टोर |
1 |
|
60,000 |
4. |
पानी का स्त्रोत |
|
|
60,000 |
5. |
नाडेप टैंक |
2 |
|
5,000 |
6. |
जमीन का किराया |
1 एकड़ |
|
20,000 |
7. |
आवर्ती खर्चों पर ब्याज |
4% |
|
11,080 |
8. |
जमीन पर टैक्स |
|
|
1000 |
|
कुल |
|
|
3,01,080 |
आवर्ती खर्चे |
|
|||
1. |
कच्ची सामग्री (गोबर) |
330 टन |
500 प्रति टन |
1,65,000 |
2. |
लेबर |
2 |
5000 प्रति महीना |
1,20,000 |
3. |
ट्रांसपोर्ट(कच्चा माल एवं तैयार खाद) |
530 टन सामग्री |
|
50,000 |
4. |
पैकिंग लेबलिंग का सामान |
4,000 |
10 |
40,000 |
|
कुल |
|
|
3,75,000 |
सारिणी 2: केंचुआ खाद के फार्म से व्यय एवं आय l
क्र.सं. |
विवरण |
|||
1. |
कुल आय |
1. |
उत्पादन (200 टन) x मूल्य (4000 प्रति टन) |
8,00,000 |
2. |
केचुआ (250 रु. प्रति किलो x 1000 किलो) |
2,50,000 |
||
3. |
वर्मी वाश (पौध विकास वर्धक = 1 टन ) |
(स्थायी बाज़ार नहीं है) |
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2. |
कुल खर्चे |
आवर्ती (2,88,080) + स्थायी (3,75,000) |
6,76,080 |
|
3. |
शुद्ध आय |
कुल आय – कुल खर्चे |
3,86,920 |
नोट: यहाँ लिए गए मूल्य एवं खर्चे औसत हैं l दिए गए खर्चों एवं मूल्यों में जगह के हिसाब से बदलाव संभव हैl
आर्थिक विश्लेषण:
330 टन कच्ची सामग्री इस्तेमाल करने पर लघाग उसका 60 % ही तैयार खाद के रूप में मिलता है l साल में 5 बार केंचुआ खाद बनाने पर पहले वर्ष न्यूनतम 3,73,920 शुद्ध आय प्राप्त होती है l आने वाले वर्षों में यह आय लगभग 6 लाख तक हो जाती है l वर्मी वाश जिसे पौध विकास वर्धक के रूप में इस्तेमाल किआ जाता है किसान या उसका इस्तेमाल कर या आगे बेचकर अतिरिक्त आय ले सकता है l इसके साथ ही वह और किसानों को ट्रेनिंग दे कर भी अपनी आय में इजाफा कर सकता है l
मार्केटिंग:
इस व्यावसाय में आय बहुत हद निर्भर करती है की किसान अपना तैयार माल कहाँ बेचता है l उसे कोशिश यह करनी चाहिए की वह खाद सीधे पैकिंग कर आखरी उपभोक्ता तक पहुंचाए l इस खाद का इस्तेमाल फसली खेती में धीमी रफ़्तार से बढ़ रहा है लेकिन शेहरी इलाकों में घरों में बागवानी करने वालों एवं फलों के बागों में इस्तेमाल बहुत ज्यादा है तो सीधा इन उपभोक्ताओं को ही खाद बेचने में मुनाफा अधिक है l जहां तक हो सके किसान अपनी कंपनी बनाकर तैयार माल इन्टरनेट के माध्यम से अगर बेचता है तो यही केंचुआ खाद औसतन 100 से 300 रु. प्रति किलो तक बिकती है l
ऋण सुविधा:
अगर कृषि संकाय से पढ़े छात्र इस व्यवसाय को अपनाते हैं तो उन्हें कृषि क्लिनिक एवं कृषि बिसनेस सेंटर योजना के तहत 20 लाख तक के प्रोजेक्टपर सब्सिडी के साथ ऋण 11.5 % ब्याज और 5 से 7 साल के ऋण वापसी के समयके साथ मिलता है l
संजय, पीएचडी, कृषि अर्थशास्त्र विभाग, कृषि कॉलेज, संजय कुमार, जिला विस्तार विशेषज्ञ, करनाल, स्वामी एच्. एम., पीएचडी, कृषि अर्थशास्त्र विभाग, कृषि कॉलेज, चौधरी चरण सिंह हरयाणा कृषि विश्वविद्दालय
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