Banana Farming Tips: बरसात के समय जब इस हरी सब्जियां कम आ रही होती है या बहुत महंगी होने की वदह से सामान्य लोगों के लिए पहुंच में नहीं होती है, तो उस समय सब्जी वाले केले सर्वोत्तम विकल्प माने जाते हैं. खासकर शाकाहरी लोगों के लिए, क्योकि उनके सामने विकल्प बहुत सीमित होते हैं, ऐसी स्थिति में कच्चा केला बहुत अच्छा विकल्प होता है. कच्चे केले की सब्जी या कोई अन्य व्यंजन का उपयोग करने से आयरन की कमी को दूर किया जा सकता है, जिसकी सस्तुति डॉक्टर भी करते हैं. कच्चा केला का प्रयोग करने से पेट की विभिन्न बीमारियों में भी लाभ मिलता है. केला सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर होता है, इसलिए इसका उपयोग करने से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी भी दूर होती है.
मीठे, स्वादिष्ट वाले पके हुए केले के चक्कर में कच्चे केलों से होने वाले फायदे से हम वंचित रह जाते हैं या अनदेखा करते हैं. कच्चे केले, स्वास्थ्य लाभ और पोषण संबंधी कई फायदे प्रदान करते हैं. कच्चे केलों के अनूठे गुण उन्हें संतुलित आहार के लिए एक मूल्यवान बनाते हैं. यहां, हम कच्चे केले के विभिन्न लाभों, उनकी पोषण सामग्री, स्वास्थ्य लाभ और अन्य संभावित उपयोगों की चर्चा करेंगे....
कच्चे केले की पोषण सामग्री
कच्चे केले में विटामिन, खनिज और आहार फाइबर सहित आवश्यक पोषक तत्वों भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इनमें पोटेशियम, विटामिन सी, विटामिन बी 6 और आहार फाइबर की महत्वपूर्ण मात्रा होती है. इसके अतिरिक्त, कच्चे केले प्रतिरोधी स्टार्च का एक अच्छा स्रोत है, जो एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट है और स्टार्च की तुलना में फाइबर की तरह अधिक कार्य करता है.
प्रतिरोधी स्टार्च - कच्चे केले के सबसे उल्लेखनीय घटकों में से एक प्रतिरोधी स्टार्च है. नियमित स्टार्च के विपरीत, प्रतिरोधी स्टार्च छोटी आंत में पाचन का प्रतिरोध करता है और बड़ी आंत में चला जाता है जहाँ यह प्रीबायोटिक के रूप में कार्य करता है. प्रीबायोटिक्स भोजन में ऐसे यौगिक होते हैं जो बैक्टीरिया और कवक जैसे लाभकारी सूक्ष्मजीवों की वृद्धि या गतिविधि को प्रेरित करते हैं. प्रतिरोधी स्टार्च के कई स्वास्थ्य लाभ हैं, जिनमें बेहतर आंत स्वास्थ्य, बेहतर रक्त शर्करा नियंत्रण और बढ़ी हुई तृप्ति शामिल है.
कच्चे केले के स्वास्थ्य लाभ
पाचन स्वास्थ्य में सुधार - कच्चे केले अपने उच्च फाइबर और प्रतिरोधी स्टार्च सामग्री के कारण पाचन स्वास्थ्य के लिए उत्कृष्ट हैं. कच्चे केले में प्रतिरोधी स्टार्च एक प्रीबायोटिक के रूप में कार्य करता है, जो आंत में लाभकारी बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा देता है. यह एक स्वस्थ आंत माइक्रोबायोम को बनाए रखने में मदद कर सकता है, जो समग्र पाचन स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है. इसके अतिरिक्त, कच्चे केले में फाइबर नियमित मल त्याग में सहायता करता है और कब्ज को रोकता है.
रक्त शर्करा विनियमन - कच्चे केले में पके केले की तुलना में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, जो उन्हें अपने रक्त शर्करा के स्तर को प्रबंधित करने वाले व्यक्तियों के लिए एक बेहतर विकल्प बनाता है. कच्चे केले में प्रतिरोधी स्टार्च रक्तप्रवाह में शर्करा के अवशोषण को धीमा कर देता है, जिससे रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि को रोकने में मदद मिलती है. यह मधुमेह वाले लोगों या इस स्थिति के विकसित होने के जोखिम वाले लोगों के लिए कच्चे केले को एक उपयुक्त नाश्ता बनाता है.
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वजन प्रबंधन - कच्चे केले में उच्च फाइबर और प्रतिरोधी स्टार्च सामग्री वजन प्रबंधन में मदद करती है. ये घटक परिपूर्णता और तृप्ति की भावना को बढ़ावा देते हैं, जो समग्र कैलोरी सेवन को कम करते हैं. कच्चे केले भूख को नियंत्रित करने और अधिक खाने की संभावना को कम करने में मदद करते हैं.
बढ़ाया पोषक तत्व अवशोषण - कच्चे केले में शॉर्ट-चेन फैटी एसिड (SCFA) होते हैं, जो तब बनते हैं जब प्रतिरोधी स्टार्च बड़ी आंत में किण्वित होता है. SCFA पोषक तत्वों, विशेष रूप से कैल्शियम और मैग्नीशियम के अवशोषण को बेहतर बनाने में मदद करते हैं. यह हड्डियों के स्वास्थ्य और समग्र पोषक तत्व अवशोषण के लिए फायदेमंद होता है.
एंटीऑक्सीडेंट गुण - कच्चे केले एंटीऑक्सीडेंट, विशेष रूप से विटामिन सी और डोपामाइन का एक अच्छा स्रोत हैं. एंटीऑक्सीडेंट शरीर को ऑक्सीडेटिव तनाव और मुक्त कणों से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करते हैं. यह हृदय रोग और कुछ कैंसर जैसी पुरानी बीमारियों के जोखिम को कम करता है.
इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार की संभावना - कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि कच्चे केले में प्रतिरोधी स्टार्च इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार करता है. बेहतर इंसुलिन संवेदनशीलता का मतलब है कि शरीर की कोशिकाएँ रक्तप्रवाह से ग्लूकोज का बेहतर उपयोग करने में सक्षम हैं, जो रक्त शर्करा के स्तर को कम करने और टाइप 2 मधुमेह के जोखिम को कम करने में मदद करता है.
कच्चे केले के उपयोग
कच्चे केले का उपयोग विभिन्न पाक अनुप्रयोगों में किया जाता है. कच्चे केलों का कम मीठा स्वाद उन्हें नमकीन और मीठे दोनों व्यंजनों में बहुमुखी सामग्री बनाता है.
खाना बनाना और पकाना - कच्चे केले को उबाला, तला या बेक किया जा सकता है. उन्हें अक्सर नमकीन व्यंजनों में इस्तेमाल किया जाता है. उनकी स्टार्ची बनावट उन्हें व्यंजनों में आलू का एक उत्कृष्ट विकल्प बनाती है.
स्मूदी और स्नैक्स - स्मूदी में कच्चे केले डालने से बहुत अधिक मिठास डाले बिना उनकी पोषण सामग्री बढ़ सकती है. उन्हें काटकर नाश्ते के रूप में भी खाया जा सकता है, जो एक स्वस्थ और पेट भरने वाला विकल्प प्रदान करता है.
आटे का उत्पादन - कच्चे केले को सुखाकर केले का आटा बनाया जा सकता है. इस ग्लूटेन-मुक्त आटे का उपयोग बेकिंग और खाना पकाने में किया जा सकता है, जो पारंपरिक गेहूं के आटे का पौष्टिक विकल्प प्रदान करता है.
किसे कहते है सब्जियों वाले केले ?
भारत में लगभग 500 से अधिक केले की किस्में उगायी जाती हैं लेकिन एक ही किस्म का विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नाम है. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के पास केला की 79 से ज्यादा प्रजातियाँ केला अनुसंधान केन्द्र पूसा में संग्रहित हैं. केला की सभी प्रजातीयाँ न तो पका कर खाने के योग्य होती है, नही उनकी सब्जी अच्छी बनती है. इसलिए यह जानना आवश्यक है कौन सी केले की प्रजाति सब्जी के लिए उपयुक्त है. सामान्यतः केला का जीनोमिक संरचना जिसमे B (Musa balbisiana) जीनोम ज्यादा होता हो वे केले सब्जियों के लिए बेहतर होते है एवं जिन केलों में A जीनोम (Musa acuminata) ज्यादा होते है वे पका कर खाने के योग्य होते है.
केला का पौधा बिना शाखाओं वाला कोमल तना से निर्मित होता है, जिसकी ऊचाई 1.8 मी0 से लेकर 6 मी0 तक होता है. इसके तना को झूठा तना या आभासी तना कहते हैं, क्योंकि यह पत्तियों के नीचले हिस्से के संग्रहण से बनता है. असली तना जमीन के नीचे होता है जिसे प्रकन्द कहते हैं. इसके मध्यवर्ती भाग से पुष्पक्रम निकलता है.
भारत में केला विभिन्न परिस्थितियों एवं उत्पादन पद्धति में उगाया जाता है, इसलिए बड़ी संख्या में केला की प्रजातियां, विभिन्न आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों की पूर्ति कर रही हैं क्षेत्र विशेष के अनुसार लगभग 20 प्रजातियां वाणिज्यिक उदेश्य से उगाई जा रही है. बिहार में उगाई जाने वाली प्रमुख किस्में है डवार्फ कावेन्डिश , चिनिया, चीनी चम्पा, अल्पान (मैसूर), मालभोग (सिल्क), मुठिया (ब्लूगो), कोठिया (ब्लूगो), गौरिया (ब्लूगो), कान्थाली (पिसांग अवाक) इत्यादि.
सब्जीवाले केलों की प्रमुख प्रजातियां
नेद्रन (रजेजी) (एएबी) - दक्षिण भारत विशेष रूप से केरल की यह एक प्रमुख किस्म है. इस केला के बने उत्पाद जैसे, चिप्स, पाउडर आदि खाड़ी के देशों में निर्यात किया जाता है. इसे मुख्यतः सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसका पौधा 2.7-3.6 मीटर लम्बा होता है. फलों का घौद छोटा होता है. इसके घौद का वजन 8-15 किलोग्राम तथा घौद में 30-50 फल की छिमियां होती है. फल लम्बे 22.5-25 से.मी. आकार वाले, छाल मोटी, गूद्दा कड़ा तथा स्टार्ची लेकिन मीठा होता है. फलों को उबाल कर नमक एवं काली मिर्च के साथ खाया जाता है.
मोन्थन - इसके अन्य नाम है, कचकेल, बनकेल, बौंथा, कारीबेल, बथीरा, कोठिया, मुठिया, गौरिया कनबौंथ, मान्नन मोन्थन आदि. यह सब्जी वाली किस्म है जो बिहार, केरल (मालाबार) तामिलनाडु (मदुराई, तंजावर, कोयम्बटूर तथा टिल चिरापल्ली) तथा बम्बई (थाने जिले) में मुख्यतया पाई जाती है. इसका पौधा लम्बा तथा मजबूत होता है. केलों का गुच्छा तथा फल बड़े सीधे तथा एन्गुलर होते है. छाल बहुत मोटी तथा पीली होती है. गुदा नम, मुलायम, कुछ मीठापन लिए होता है. इसका मध्य भाग कड़ा होता है. कच्चा फल सब्जी तथा पके फल को खाने के रूप में प्रयोग करते है. बिहार मे कोठिया प्रजाति के केलों की खेती मुख्यतः सड़क के किनारों पर बिना किसी विशेष देखभाल, बिना उर्वरकों के प्रयोग तथा फसल संरक्षण उपायों के होती हैं. कुछ वर्ष पूर्व तक इस प्रजाति में कोई भी रेाग एवं कीट न हीं लगता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है इसमें पानामा विल्ट, बंचीटाप (शीर्ष गुच्छ) रोग भयानक रूप से आक्रान्त कर रहा है. फलों के गुच्छे का वजन 18-22.5 किलोग्राम होता है. जिसमें आमतौर पर 100-112 फल होते हैं.
कारपुरावल्ली (एबीबी) - यह तमिलनाडु की एक लोकप्रिय प्रजाति है. जो पिसांग अवाक ग्रुप से सम्बन्धित है. इसका पौधा बहुत ही सख्त होता है जो हवा, सूखा, पानी, ऊँची, नीची जमीन, पी.एच.मान निरपेक्ष प्रजाति है. इसकी सबसे बड़ी विषेषता है विषम परिस्थितियों के प्रति सहिष्णुता. अन्य केला की प्रजाति की तुलना में यह कुछ ज्यादा समय लेती हैं. गहर का औसत वजन 20-25 किलोग्राम होता है. यह मुख्यता सब्जी हेतु प्रयोग में लाई जाती है. इसका फल पकने के पष्चात भी गहर से अलग नहीं होता है. इसमें कीड़े एवं बीमारियों का प्रकोप कम होता है.
उन्नत संकर किस्में
साबा (एबीबीबी) - साबा केला एक टेट्रापलोइड हाइब्रिड (एबीबीबी) केले की प्रजाति है जिसकी खेती पहले फिलीपींस में होती थी लेकिन अब इसकी खेती सभी प्रमुख केला उत्पादक देशों में हो रही है. यह मुख्य रूप से सब्जी वाला केला है, हालांकि इसे कच्चा भी खाया जा सकता है. यह फिलीपीन व्यंजनों में केले की सबसे महत्वपूर्ण किस्मों में से एक है. सबा केले में बहुत बड़े, मजबूत छद्म तने होते हैं जो 20 से 30 फीट (6.1 से 9.1 मीटर) की ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं. ट्रंक 3 फीट (0.91 मीटर) के व्यास तक पहुंच सकता है. तना और पत्तियाँ गहरे नीले-हरे रंग की होती हैं. सभी केलों की तरह, प्रत्येक छद्म तना मरने से पहले केवल एक बार फल देता है. केले की अन्य किस्मों की तुलना में फल फूल आने के 150 से 180 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. प्रत्येक पौधे से लगभग 26 से 38 किलोग्राम का गुच्छा प्राप्त होता है. आमतौर पर, एक गुच्छा में 16 हथ्था होते हैं, प्रत्येक हथ्थे में 12 से 20 उंगलियां(केला का फल ) होता हैं.
फिया-03 - यह फिया ग्रुप की दुसरी संकर प्रजाति है. यह प्रजाति ब्लूगो समूह से सम्बन्धित है. इसके फल को सब्जी के रूप मे तथा पका कर खाने हेतु प्रयोग में लाते हैं. फिया-01 के समान यह प्रजाति भी चतुर्थगुणी है, जिसकी आनुवांषिक संरचना एएबीबी है. इस प्रजाति के पौधे सीधे, पुष्ट एवं मजबूत होते हैं. पौधे की ऊँचाई 2.5-3.5 मीटर होता है. फसल की अवधि 13-14 महीने की होती है. इस प्रजाति से 40 किलोग्राम की घौद को प्राप्त किया गया है. प्रति घौद छिमियाँ (फल) 200-230 होती हैं. प्रत्येक फल का वजन 150-180 ग्राम का होता है. यह प्रजाति भी पानामा विल्ट, काला सिगाटोका तथा सूत्रकृमि के प्रतिरोग अवरोधी है.
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