पशुओं में गर्भपात के वक्त होने वाली समस्या काफी गंभीर मानी जाती है। संक्रमक गर्भपात (ब्रूसेलोसिस) नामक बीमारी से पशुओं के साथ-साथ पशुपालकों को भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पाशुपालकों को इसकी वजह से मुख्य तौर पर आर्थीक क्षति पहुंचती है। बहुत तरह के जीवाणु, विषाणु, फँफूदी इत्यादि गर्भपात के कारण होते हैं। जिनमें से कुछ मुख्य इस प्रकार हैं। ब्रूसेलोसिस, केम्पाईलोबैक्टीरियोसिस, लिस्टीरियोसिस, लेप्टोस्पाईरोसिस, सालमोनेसिस, माइकोप्लाजमोसिस, एस्परजिलोसिस, ट्राइकोमोनियोसिस, ब्लूटंग रोग वाईरस, आई0बी0आर0 वाईरस, व बी0वी0डी वाइरस, इत्यादी इन सभी कारणों में से ब्रूसेलोसिस सबसे प्रमुख है। यह मुख्य रूप से गोपशुओं तथा मनुश्यों में एक जीवाणु जनित रोग है। ब्रूसैला प्रजाति के जीवाणुओं से होता है। इस रोग का जन स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। केवल गाय तथा भैंसों में रोग से 35 करोड़ रूपये से भी अधिक हानि होती है। इससे लगभग 10 लाख बछड़ों की हानि होती है। प्रजनन क्षमता में 20 प्रतिशत की कमी हो जाती है। वहीं दुग्ध उत्पादन की बात करें तो इससे लगभग 25 प्रतिशत की कमी हो जाती है।
कारण
ब्रुसेल्ला एबार्टस एवं ब्रुसेल्ला मेलीटेंसिस मुख्य है। ग्राम निगेटिव गोलाकार जीवाणु ब्रुसेल्ला जीवाणुओं को 10-15 मिनट में पास्चुराइजेशन से समाप्त किया जा सकता है।
रोग व्यापकता
समस्त पालतू पशु ब्रूसैलोसिस रोग के प्रति संवेदनशील होते हैं। भ्रूण गर्भाशय में संक्रमित हो सकते हैं। प्रथम ब्यात में रोग का प्रकोप आधिक होता है। नये पशु भी इस रोग के प्रति संवेदनशील होते हैं। प्रजनन काल में इस रोग की सम्भावना बढ़ जाती है। दूषित भोजन, पानी एवं योनि के स्रावों द्वारा रोग का संचारण होता है।
लक्षण
यह बीमारी होने में लगभग 1 से 6 महीने का समय लगता है।
गर्भकाल के अन्तिम तृतीय भाग (6-9 माह) में गर्भपात
संवेदनशील झुणड में 90 प्रतिशत तक गर्भपात हो सकता है।
स्थायी व अस्थायी बांझपन
जेर ना गिराना
वृषण शोथ
थनैला, जोड़ों में सूजन, दुर्बल बछड़ों का जन्म।
विकृतियाँ
बैक्टीरिमिया के उपरान्त जीवाणु भिन्न गर्भाशय, भ्रूण व गर्भाशय की झिल्लियाँ, अयन लसिका ग्रन्थियों आस्थि मज्जा एवं प्लीहा में स्थित हो जाते हैं। सांड़ों के प्रजनन अंगों तथा पशुओं के जोड़ों में भी जिवाणु होते हैं। गर्भाशय की झल्लियँ भ्रूण की झिल्लियों से अलग हो जाती है, जिससे गर्भपात हो जाता है। इससे प्लेसेन्टा रोग हो जाता है। प्लेसेन्टा चमड़े जैसे हो जाती है।
निदान
रोग के इतिहास से, लक्षण एवं विकृतियो से सम्भावित निदान
प्रयोगशाला परीक्षण: खून के नमूनों पर एग्गलूटिनेशन, काम्पीमेन्ट फिक्सेशन, एसिसा व दूध के नमूनों पर ए0बी0आर0 परीक्षण।
जीवाणु का प्रथकीकरण: उत्तक एवं स्रावों से, चतुर्थ पेट के पदार्थ, जेर एवं वीर्य से।
गिनीपिग में प्रयोगशालीय संक्रमण से।
उपचार
पशुओं में इसका कोई उपचार नही होता है। मनुष्यों में लम्बे समय तक एन्टीबायोटिक दवाएं चिकित्सक के सलाह से ली जाती है।
रोकथाम
टीका: कॉटन स्ट्रेन- 19 नामक टीके का उपयोग किया जाता है।
4-8 माह के बछियों में टीका लगाया जाता है।
प्रजनन कार्य हेतु साँड़ों में यह टीका नहीं लगाया जाता है।
ब्रूसेल्ला प्रभावित गोशाला या पशु झुण्ड में सभी वयस्क गायों को टीका लगा देना चाहिए, जिससे गर्भपातों की संख्या कम की जा सकती है।
कृषि मंत्रालय में पशुपालन विभाग (DADF) द्वारा राष्ट्रीय ब्रूसेल्ला नियंत्रण परियोजना चलायी जा रही है, जिसके अन्तर्गत सभी बछियों में टीकाकरण किया जा रहा है।
स्वच्छता
गर्भपात के दौरान सारे स्राव, मृत, बछड़ा एवं जेर को इकट्ठा करके चूने के साथ गड्ढ़े में दबा देना चाहिए।
अपने देश में परीक्षण एवं रोग ग्रसित पशु के स्वस्थ पशु से अलगाँव की विधि अपनाकर ही रोग पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।
जनस्वास्थ्य पर प्रभाव
ब्रूसलोसिस मनुष्यों में एक महत्वपूर्ण बीमारी है।
अंडूलेन्ट ज्वर, गर्भपात, बांझपन, जोड़ों में दर्द, हल्का बुखारी, शरीर में टूटन, रात्रि में पसीना आना, बृषणो की सूजन, कमजोरी, पीठ तथा गर्दन में दर्द आदि लक्षण दिखायी देते हैं।
पशु सेवक, पशु चिकित्सक, पशुपालक, बूचर, माँस, एवं खाल उद्दोग में काम करने वाले, बिना उबला दूध पीने वाले उपर्युक्त व्यवसाय में सम्मलित इत्यादि लोग इस बीमारी से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। रोग की व्यापकता (सीरमीय परीक्षण से) 25 प्रतिशत तक हो सकती है।
(लेखक: डॉ0 संदीप कुमार सिंह, डॉ0 अश्विनी कुमार सिंह, संयुक्त निदेशक, डॉ0 मौ0 रियाज, सहायक निदेशक, डॉ0 बी0 एन0 त्रिपाठी, पूर्व निदेशक व डॉ0 प्रविण मलिक निदेशक चौधरी चरण सिंह राष्ट्रीय पशु स्वास्थ्य संस्थान बागपत, उत्तर प्रदेश)
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