दुधारू पशुओं में कई बीमारियां होने का डर बना रहता है. इसके कई कारण होते हैं. पशुओं में कुछ बीमारियां बहुत जानलेवा मानी जाती हैं. जिसका प्रभाव पशु और उत्पादन पर पड़ता है. पशुओं की कुछ बीमारियां दूसरे पशु को भी लग सकती हैं, जिसे छूत रोग कहा जाता है जैसे मुंह, खुर की बीमारी, गल घोंटू, आदि.
इसके अलावा कुछ बीमारियां पशुओं से मनुष्यों को भी हो सकती हैं जैसे, रेबीज़ (हल्क जाना), क्षय रोग आदि, जिन्हें जुनोटिक रोग से जाना जाता है, इसलिए पशुओं में होने वाली प्रमुख बीमारियों की जानकारी पशुपालक को ज़रूर होनी चाहिए जिससे वह वक्त रहते उनका इलाज करा सके. आज हम अपने इस लेख में आपको बताएंगे कि पशु के गोबर, मूत्र औऱ रक्त की जांच कब करानी चाहिए.
गोबर की जांच
जब पशुओं में अफ़ारा, दस्त, कब्ज़, खुजली, दूध में कमी, कमजोरी, कम खाना, मिट्टी खाना, मल में खून आना, जबड़े के नीचे पानी भरना, ज्यादा चिकनाईयुक्त मल के लक्षण दिखाई दें, तो ऐसे में पशु के गोबर की जांच करवानी चाहिए. इससे कृमि रोगों का पता लगाया जाता है. गोबर में परजीवी के अंडे, लार्वा, उसीस्ट से परजीवी के प्रकार की जानकारी मिलती है जिसके द्वारा पशु के रोग की जानकारी मिलती है.
नमूना लेते वक्त ध्यान रखें
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गोबर का नमूना सीधे पशु के रेक्ट्म से लें.
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नमूने में बाहरी तत्व नहीं होने चाहिए.
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नमूने को पॉलीथीन बैग्स में लें.
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जब तक नमूना जांच के लिए नहीं ले जाते, तब तक उसे फ़्रिज में रख दें.
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अगर कोक्सिडियोसिस रोग की जांच करानी है, तो गोबर के नमूने में 2.5 पोटेशियम डाइक्रोमेट मिला सकते हैं.
मूत्र की जांच
जब पशु के मल-मूत्र के रंग, बनावट, मात्रा आदि में परिवर्तन या फिर गुर्दे, मूत्राषय और जिगर से संबन्धित रोग के लक्षण दिखाई दें, तो ऐसे में पशुओं में एसिडोसिस, एल्केलोसिस, डायबिटीज, किटोसिस आदि रोग होने की संभावना रहती है, इसलिए पशुओं के मूत्र की जांच कराएं.
नमूना लेते वक्त ध्यान रखें
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नमूना पशु के मूत्र करते समय लें.
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नमूनों को साफ़ ग्लास में लें.
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अगर गुर्दे से संबन्धित रोग की जांच करानी है, तो नमूना सुबह के वक्त लें.
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डाईबीटीज़ की जांच करानी है, तो नमूना पशु के खाने से पहले या फिर खाने के दो घंटे बाद लें.
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मूत्र नमूने की जांच जल्दी करा लेनी चाहिए, क्योंकि मूत्र की एलकेलिनिटी (छारता) और उसमें गठन तत्व बढ़ने लगते हैं.
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मूत्र को रखने के लिए टोल्युईन या फॉर्मलीन का इस्तेमाल करें.
रक्त की जांच
जब पशुओं को कोई बीमारी लगती है, तो उनमें परिवर्तन आना स्वाभाविक है. जब भी पशु को बुखार, रक्त की कमी, जिगर, गुर्दे, हृदय से संबन्धित रोग के लक्षण दिखाई दें, तो रक्त की जांच करवा लेनी चाहिए.
नमूना लेते वक्त ध्यान रखें
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सामान्य जांच के लिए 2 से 3 मि.ली. रक्त पर्याप्त होता है.
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रक्त लेने से पहले पशु की नस को हाथ या अंगूठे से दबाएं और टोर्नीकेट की मदद से उभार लें. इसके बाद स्प्रिट या एल्कोहल से साफ़ करें और फिर रक्त लें.
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ध्यान दें कि रक्त का नमूना साफ़,, सूखे ग्लास या प्लास्टिक वायल में ही लें.
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रक्त लेने के बाद वायल पर ढक्कन लगा दें. इसके बाद हथेलियों के बीच गोल घूमकर रक्त को ई.डी.टी.ए में सही तरह मिला लें.
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अब ढक्कन पर एड्हीसिव टेप लगाकर चिन्हित कर दें.
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नमूने के साथ पशु और उसकी बीमारी की जानकारी भी भेजे.
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अगर नमूना भेजने में समय लगता है, तो उसे फ़्रिज में या बर्फ़ पर रख दें.
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रक्त लेने से पहले वायल में एंटीकोएगुलेंट (जमारोधी) डाल दें.
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सामान्य एंटीकोएगुलेंट के रूप में ई.डी.टी.ए का उपयोग कर सकते हैं. इसे 1 से 2 ग्राम प्रति मि.ली. रक्त के हिसाब से मिलाया जाता है.
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अगर रक्त सिरीजं से लिया है, तो इसे वायल में डालने से पहले सिरींज से निडिल (सुई) हटा लें.
जानकारी के लिए बता दें कि पशुओं की बीमारी को सही वक्त पर ठीक करने के लिए पशुपालकों को समय पर जांच और उपचार करा लेना चाहिए, साथ ही पशुपालक को गोबर, मूत्र या रक्त के नमूने लेते वक्त ऊपर दी गई सभी बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए, ताकि पशु की बीमारी समय रहते ठीक हो सके.
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