भारत में कई नस्ल की गाय पाई जाती हैं, जिनका पालन कर पशुपालक बहुत अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं. अगर स्पष्ट रूप से देखा जाए, तो अक्सर सुर्खियों में गाय की कुछ ही नस्लों का नाम रहता है, जबकि गाय की कई ऐसी नस्लें हैं, जिनका शायद ही किसी ने नाम सुना होगा. बता दें कि भारतीय पशु आंनुवशिक संस्थान ब्यूरो के मुताबिक, भारत में करीब 43 प्रकार की गाय की देसी नस्लें पाई जाती हैं. इनमें साहीवाल, गिर, थारपारकर और लाल सिंधी समेत कई अन्य देसी नस्लों को भारतीय पशु आंनुवशिक संस्थान ब्यूरो ने रजिस्टर्ड कर रखा है. मगर गाय की कई नस्लें ऐसी हैं, जिनकी जानकारी अधिकतर लोगों को नहीं है. आज हम गाय की कुछ ऐसी ही नस्लों पर प्रकाश डालने जा रहे हैं.
अमृतमहल (कर्नाटक)
गाय की यह नस्ल कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले में अधिक पाई जाती है. इसका रंग खाकी होता है और मस्तक व गला काले रंग का होता है. इसके अलावा सिर लम्बा होता है, तो वहीं मुंह व नथुने कम चौड़े पाए जाते हैं. बता दें कि इस नस्ल के बैल मध्यम कद के होते हैं, जो कि काफी फुर्तीले होते हैं, लेकिन इस नस्ल की गायदूध कम मात्रा में देती हैं.
बर्गुर (तमिलनाडु)
इस नस्ल की गाय तमिलनाडु के बरगुर नामक पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है. इनका सिर लम्बा होता है, तो वहीं पूंछ छोटी होती है. इनका मस्तक थोड़ा उभरा हुआ रहता है. इस नस्ल के बैल भी काफी तेज स्वभाव के होते हैं. मगर बर्गुर नस्ल की गायकम मात्रा में दूध देती है.
हल्लीकर (कर्नाटक)
गाय की यह नस्ल सबसे ज्यादा कर्नाटक में पाई जाती है. यह गाय दूध देने की अच्छी क्षमता रखती हैं.
बचौर (बिहार)
गाय की यह नस्ल बिहार प्रांत के सीतामढ़ी जिले के बचौर और कोईलपुर परगनां में ज्यादा पाई जाती है. इस नस्ल के बैलों का उप्रयोग खेतीबाड़ी के कार्यों में अधिक होता है. इनका रंग खाकी होता है, तो वहीं ललाट चौड़ा, बड़ी आंखें और कान लटके होते हैं.
डांगी (मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र)
इस नस्ल की गाय महाराष्ट्र के अहमद नगर, नासिक और अंग्स क्षेत्र समेत मध्य प्रदेश में पाई जाती हैं. इन गायों का रंग लाल, काला और सफेद होता है, लेकिन यह गाय कम मात्रा में दूध देती हैं.
हरियाणा (हरियाणा , उत्तर प्रदेश और राजस्थान)
यह नस्ल सफेद रंग की पाई जाती है. इस गाय से अच्छा दूध उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. इस नस्ल के बैल खेतीबाड़ी के कार्यों में बहुत मदद करते हैं, इसलिए इन्हें सर्वांगी कहा जाता है.
गओलाओ (महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश)
यह नस्ल नागपुर, चिंदवाड़ा और वर्धा में पाई जाती है. इनका शरीर मध्यम आकार का होता है, तो वहीं रंग सफेद से सलेटी होता है. इस गाय का सिंर लंबा, काम मध्यम और सींग छोटे होते हैं. यह प्रति ब्यांत में औसतन 470 से 725 लीटर तक दूध दे सकती है. खास बात यह है कि इस नस्ल की गाय के दूध में करीब4.32 प्रतिशत वसा की मात्रा पाई जाती है.
कंगायम (तमिलनाडु)
इस नस्ल की गाय बहुत फुतीले होती है, जो कि कोयम्बटूर के दक्षिणी इलाकों में पाई जाती हैं. यग गाय गाय 10 से 12 साल तक दूध दे सकती है.
केनकथा (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश)
इस गाय का मूल निवास उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश है. गाय की इस नस्ल को केनवारियाभी कहा जाता है. इसके शरीर का आकार छोटा होता है, तो वहीं सिर छोटा और चौड़ा होता है. इसकी कमर सीधी और और कान लटके होते हैं. इस गाय की पूंछ की लंबाई मध्यम होती है और औसतन लंबाई करीब 103 से.मी. होती है. इस नस्ल के नर का औसतन भार350 किलो होता है, तो वहीं मादा का भार औसतन 300 किलो होता है.
कांकरेज (गुजरात और राजस्थान)
इस नस्ल की राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी के बाड़मेर, सिरोही और जालौर के इलाकों में पाई जाती है. यह गाय रोजाना करीब 5 से 10 लीटर तक दूध दे सकती है. इस नस्ल के गोवंश का मुंह छोटा और चौड़ा होता है, तो वहीं बैल भी अच्छे भार के होते हैं.
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