दुधारु पशु प्रबंधन में प्रजनन मुख्य भूमिका निभाता है l यदि पशु का प्रजनन ठीक होगा तो पशुपालक की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ रहेगी, अन्यथा इसके अभाव में विषम परिस्थितियां उत्पन हो जाएंगी l पशु प्रजनन में बाँझपन एक प्रमुख समस्या है जो विभिन्न कारणों जैसे- शारीरिक सरंचना, संक्रमण, हार्मोन के असंतुलन एवं प्रबंधन की कमी से होता है l दुधारू पशुओं में संक्रमण बच्चादानी के विभिन्न अंगों में होता है जिनमें गर्भाशय का संक्रमण प्रमुख है l ये कई तरह के कीटाणुओं, विषाणुओं, फफूंद एवं अन्य सूक्ष्मजीवों के अनियंत्रित विकास से पनपता है l
संक्रमित डोरी के विभिन्न वर्ग
लक्षण
प्रत्येक वयस्क पशु प्राय: 18 से 22 दिन के अंतराल पर मद के लक्षण दर्शाता है. इन लक्षणों को देखकर पशुपालक उनके मद में होने का पता लगा सकते हैं l दुधारू पशुओं में मद के लक्षणों में मादा पशु का बार-बार रंभाना, उत्तेजित होना, मादा पशु का दूसरे पशु पर चढ़ाई करना, पशु के योनि द्वार से श्लेषयुक्त पदार्थ का निकलना जिसे डोरी या तार भी कहा जाता है , प्रमुख लक्षण हैं l इस डोरीनुमा स्त्राव को देखकर हम पशु के मद में आने का समय एवं उसकी बच्चेदानी के स्वास्थय की गुणवत्ता बता सकते हैं l स्वस्थ पशु में ये डोरी शीशे की तरह साफ़ एवं पारदर्शी होती है, परंतु संक्रमित अवस्था में ये मटमैले रंग की हो जाती है l डोरी का मटमैलापन खून के कतरों, मवाद, दूध या दही के छिछड़ों की वजह से होता है l जिस तरह के कण डोरी में उपस्थित होंगे, डोरी उसी रंग की हो जाएगी, जोकि गर्भाशय के संक्रमण की ओर इशारा करती है l
निदान
विभिन्न तकनीकों के माध्यम से गर्भाशय के संक्रमण का पता लगाया जा सकता है. कुछ तरीके इस प्रकार हैं-
- डोरी को खुली आँख से जाँच कर
- प्रयोगशाला में जाँच द्वारा
- सफ़ेद साइड टेस्ट
- एंडोमेट्रियल साइटोलॉजी
-गर्भाशय की बायोप्सी
-यूटेराइन / गर्भाशय लैवाज
उपरोक्त सभी विधियों के माध्यम से गर्भाशय के संक्रमण का पता लगाया जा सकता है l तदोपरांत डोरी का कल्चर सेंसिटिविटी टैस्ट द्वारा विभिन्न प्रकार की एंटीबायोटिक् दवाओं का चयन करने में उपयोग किया जाता है l
उपचार
गर्भाशय के संक्रमण का उपचार विभिन्न पद्धतियों द्वारा किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं-
- गर्भाशय में एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग
- सिस्टेमिक इंजेक्शन द्वारा
- उपरोक्त दोनों विधियों के समावेश द्वारा
- हॉर्मोन के इंजेक्शन द्वारा
- इम्मुनोमोडुलेटर दवाओं द्वारा
प्रत्येक पद्धति की अपनी सीमाएं एवं फायदे होते हैं, जिनको ध्यान में रखकर उपचार किया जाता है l आजकल सिस्टमिक इंजेक्शन विधि द्वारा गर्भाशय का इलाज प्रचलन में है l इस विधि में पशु का उपचार कभी भी शुरू किया जा सकता है, गर्भाशय को बार-बार जाँच की वजह से बाह्या संक्रमण का खतरा कम रहता है l इस तरह के टीकाकरण के लिए कम प्रशिक्षित व्यक्ति भी डॉक्टर की सलाह पर इलाज कर सकता है l
बचाव
गर्भाशय में संक्रमण से बचाव के लिए नियमित रूप से पशु के पृष्ठ भाग एवं गोशाला की सफाई के इलावा प्रसव के दौरान उचित रखरखाव एवं प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना चाहिए l ऐसा न करने की स्तिथि में पशु बार-बार कृत्रिम गर्भाधान के बावजूद गाभिन नहीं हो पाते हैं और बाँझपन का शिकार हो जाते हैं l
महत्वपूर्ण सलाह
यदि पशु पालक अपने पशु में मटमैले रंग की डोरी देखे तो तुरंत अपने पशु -चिकित्सक की सलाह से संक्रमण का उपयुक्त इलाज करवाएं, ऐसा न करने की स्तिथि में पशु बार-बार कृत्रिम गर्भाधान के बावजूद गाभिन नहीं होता है, जिससे पशुपालक का समय एवं धन दोनों ही चीजों का नुकसान होता है l
लेखक- अमित शर्मा, अक्षय शर्मा
(पशु मादा रोग एवं प्रसूति विभाग, पशु चिकित्सा महाविद्यालय पालमपुर, हिमाचल प्रदेश)
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