बकरी को गरीबों की गाय कहा जाता है. इसके व्यवसाय से कई गरीब किसानों की जीविका चलती है. यह आय बढ़ाने का एक अच्छा जरिया है. सामन्यतः बकरी पालन में बहुत कम खर्च आता है, लेकिन अगर बकरियों को रोग लग जाए, तो उसका इलाज करा पाना काफी मुश्किल होता है. ऐसे में हम आपके लिए बकरियों में होने वाली एक महामारी की जानकारी लेकर आए हैं. , बता दें कि बकरियों में होने वाली पीपीआर (पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स) एक ऐसी महामारी है, जिससे बकरियों की मौत भी हो सकती है. इसे बकरी प्लेग भी कहा जाता है. एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस बीमारी की वजह से बकरियों की मौत की दर 50 से 80 प्रतिशत तक हो गई है. अगर यह बीमारी बढ़ने लगी, तो आंकड़ा पूरा 100 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा.
क्या होती है पीपीआर बीमारी
इस बीमारी के होने से बकरियों में बुखार, मुंह में घाव, दस्त, निमोनिया जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, जो कि 2 से 7 दिन में दिखाई देने लगते हैं. बता दें कि पीपीआर विषाणु 60 डिग्री सेल्सियस पर 1 घंटे रखने पर भी जीवित रहता है, लेकिन अल्कोहॉल, ईथर या साधारण डिटर्जेंट्स के प्रयोग से विषाणु को आसानी से नष्ट किया जा सकता है.
पीपीआर बीमारी का कारण
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बकरियों को एक जगह से दूसरे जगह ले जाने से फैल सकती है.
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बकरियों के बाड़े या चारे में अकस्मात बदलाव से बीमारी हो सकती है.
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समूह में नए खरीदे गए पशुओं को सम्मिलित करने से बीमारी हो सकती है.
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मौसम में बदलाव की वजह से भी पीपीआर का संक्रमण फैल सकता है.
पीपीआर बीमारी के लक्षण
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बकरियों को 40 से 42 डिग्री सेल्सियस तक बुखार आना.
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संक्रमण के 2 से 2 बाद मुंह और मुखीय श्लेष्मा झिल्ली में छाले और प्लाक उत्पन्न होना.
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आंख और नाक से पानी आना.
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दस्त, श्वेत कोशिकाओं की अल्पता, सांस लेने में दिक्कत होना.
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नाक व मुख से आने वाले लसलसे से पदार्थ में पस आना.
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बदबूदार दुर्गन्ध आना.
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मुंह में सूजन और अल्सर बनना.
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चारा खाने में मुश्किल होना.
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गर्भवती बकरियों का गर्भापात हो जाता है.
पीपीआर बीमारी फैलने के कारण
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पशुओं के अत्यधिक निकट संपर्क से ये रोग फैल सकता है.
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तनाव, ढुलाई, गर्भावस्था, परजीविता, चेचक आदि के कारण पीपीआर रोग हो सकता है.
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बीमार बकरी की आंख, नाक व मुंह के स्राव और मल में पीपीआर विषाणु पाया जाता है.
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बीमार बकरी के खांसने और छींकने से भी तेजी से रोग फैल सकता है.
पीपीआर बीमारी की रोकथाम
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सबसे पहले बीमारी के लक्षण दिखने पर लार व नाक से निकलने वाले स्त्रावों को प्रयोगशाला में जांच के लिए भेज दें.
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बीमार बकरियों को पोषक, स्वच्छ, मुलायम, नम और स्वादिष्ट चारा खिलाएं.
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मृत बकरियों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए, साथ ही बाड़े और बर्तनों का शुद्धीकरण भी करना चाहिए.
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पीपीआर टीके का उपयोग करना चाहिए, जो कि मुख्यतया उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु लगवाया जाता है.
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टीके को ठंडे तापमान पर रखना चाहिए.
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इस बीमारी का विषाणु ज्यादा धूप और तापमान में नष्ट हो जाता है.
ज़रूरी जानकारी
बताया जाता है कि अभी तक पीपीआर के विषाणु विरोधी दवा उपलब्ध नहीं है. एंटीसेप्टिक मलहम और एंटीबायोटिक दवा से पशुओं में अतिरिक्त बैक्टीरियल संक्रमण को रोकने का प्रयास किया जाता है.
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