1. Home
  2. पशुपालन

स्थानीय मुर्गों को चुनौती देगा साउथ का लड़ाकू 'असील'

छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में स्थानीय मुर्गों को चुनौती देने के लिए वहां के कृषि विज्ञान केंद्र ने दक्षिण भारत के लड़ाकू नस्ल 'असील' को मगांया है. 9 से 10 नग चूजों को लेकर सुरगी में इनकी फार्मिग को भी शुरू कर दिया गया है. इसके साथ ही किसानों के बीच जल्द ही इस नस्ल के मुर्गे के बारे में प्रचार-प्रसार किया जाएगा। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने इस नस्ल को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने का फैसला लिया है।

किशन
किशन
CHICKEN
Chicken

छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में स्थानीय मुर्गों को चुनौती देने के लिए वहां के कृषि विज्ञान केंद्र ने दक्षिण भारत के लड़ाकू नस्ल 'असील' को मगांया है. 9 से 10 नग चूजों को लेकर सुरगी में इनकी फार्मिग को भी शुरू कर दिया गया है. इसके साथ ही किसानों के बीच जल्द ही इस नस्ल के मुर्गे के बारे में प्रचार-प्रसार किया जाएगा. कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने इस नस्ल को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने का फैसला लिया है.

बता दें कि मुर्गे की यह असील प्रजाति लजीज मांस के कारण काफी प्रसिद्ध मानी जाती है. वैज्ञानिकों के मुताबिक बड़े पैमाने पर होने पर बाजार में एक मुर्गे की कीमत करीब 5 हजार रूपये तक रहती है. इसके लिए बाजार को तैयार करने पर भी विचार किया जा रहा है. वैज्ञानिक ये भी परख रहे है कि राजनांदगांव के वातावरण में प्रजाति मुर्गों के लिए अनुकूल है या नहीं. जानकारों के अनुसार असील भारत की विशुद्ध नस्ल है जो कि सहनशाक्ति और लड़ाकू गुणों के लिए काफी मशहूर मानी जाती है. अलसी का अर्थ शुद्ध और असल होता है. मूल असील मुर्गियां आकार में छोटी होती है. इनकी चोंच छोटी, मोटी, कलंगी मोटी और मटराकार, माथा छोटा और आंखों के बीच चौड़ा, चेहरा लंबा और पताल शरीर गोलाकार और सीना चौड़ा और पंख गंठे हुए होते है. इनकी पूंछ छोटी और लटकती हुई होती है.

असील मुर्गे की प्रजाति के बारें में (About Asil Chicken Species)

असील मुर्गे की आंखे तेज, सुगंध और दाढ़ी काफी कम होती है. इसकी टांगे मजबूत, सीधी परन्तु पतली और एक-दूसरे से माकूल दूरी पर होती है. इस प्रजाति की मुर्गियों की चाल काफी मुस्तैद होती है जिससे इसकी स्फूर्ति और शाक्ति का आभास होता है. यह रंग में काला, नीला, श्वेत, काला लाल मिश्रित और चित्तीदार होता है. मुर्गों की लड़ाई से इन मुर्गियों का प्रचलन भी बढ़ा है.

नांदगांव से विलुप्त हुआ था असील (Asil was extinct from Nandgaon)

जानकारी के मुताबिक नांदगांव में वर्षों पहले असील का पालन होता था. तब उस समय कुछ चुनिंदा लोग इसके मांस के लिए नहीं इसको लड़ाई के उद्देश्य से पालते थे. त्यौहार व अन्य खास मौकों पर स्कूली मौदानों में इन मुर्गों की लड़ाई करवाई जाती थी. काफी संख्या में मौजूद लोग इनकी लड़ाई को देखने आते थे. लेकिन बाद में पक्षियों की लड़ाई बंद हो जाने से असील मुर्गियों का पालन बंद हो गया और उसके बाद यह प्रजाति विलुप्त हो गई.

यह खबर भी पढ़ें : बतख पालन कर किसान कमाएं भारी मुनाफा !

ईरान नस्ल सबसे ज्यादा प्रसिद्ध (Iran breed most famous)

जानकारों और वैज्ञानिकों की मानें तो इस असील प्रजाति की और भी काफी ज्यादा नस्लें है. इनमें ईरानी नस्ल सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है. भारत में यह नस्ल ईरानी कबीलों के जरिए लाई गई थी. बता दें कि असील नस्ल के मुर्गे का वजन 4.4 से 5 किलोग्राम तक और मुर्गी का वजन 3 से 6 किलोग्राम तक होता है. इसकी 3 प्रमुख प्रजातियां है- मद्रास असील, रजा असील और कुलंग असील.

English Summary: South fighters will challenge 'local cats' Published on: 16 November 2018, 06:00 IST

Like this article?

Hey! I am किशन. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News