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भैंसपालन के इस तौर-तरीके को अपनाकर कमा सकते है लाखों का मुनाफा

भैंस एक प्रकार का दुधारू पशु है. कुछ लोगों के द्वारा भैंस को काफी ज्यादा पसंद किया जाता है. यह ग्रामीण भारत में काफी ज्यादा उपयोगी होती है. ज्यादातर डेयरी उद्योग के लिए देश में गाय और भैंस को ज्यादा महत्व दिया जाता है. भारत में अगर भैंसों की बात की जाए तो यहां तीन तरह की भैंस हमको दिखाई ज्यादा देती है जिसमें मुर्हा, मेहसना और सुरति प्रमुख है. मुर्रा भैंसों की प्रमुख बीड मानी जाती है. भैंस एक प्रकार का दुधारू पशु है. कुछ लोगों के द्वारा भैंस को काफी ज्यादा पसंद किया जाता है. यह ग्रामीण भारत में काफी ज्यादा उपयोगी होती है. ज्यादातर डेयरी उद्योग के लिए देश में गाय और भैंस को ज्यादा महत्व दिया जाता है. भारत में अगर भैंसों की बात की जाए तो यहां तीन तरह की भैंस हमको दिखाई ज्यादा देती है जिसमें मुर्हा, मेहसना और सुरति प्रमुख है. मुर्रा भैंसों की प्रमुख बीड मानी जाती है. भारत में भैंसों का प्रमुख उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता है और दुग्ध व मांस में उपयोग होती है.इसीलिए आमतौर पर भैसों की खिलाई- पिलाई में चारों के साथ हरे चारे, कृषि उत्पाद, भूसा और खली आदि का प्रयोग होता है. इसके अलावा भैसें गायों की अपेक्षा ज्यादा वसा, कैल्शियम, फास्फोरस, प्रोटीन, अप्रोटीन नाइट्रोजन का उपयोग करने में ज्यादा सक्षम होती है.

किशन
किशन
Buffalo
Buffalo

भैंस एक प्रकार का दुधारू पशु है. कुछ लोगों के द्वारा भैंस को काफी ज्यादा पसंद किया जाता है. यह ग्रामीण भारत में काफी ज्यादा उपयोगी होती है. ज्यादातर डेयरी उद्योग के लिए देश में गाय और भैंस को ज्यादा महत्व दिया जाता है. भारत में अगर भैंसों की बात की जाए तो यहां तीन तरह की भैंस हमको दिखाई ज्यादा देती है जिसमें मुर्हा, मेहसना और सुरति प्रमुख है.

मुर्रा भैंसों की प्रमुख बीड मानी जाती है. भारत में भैंसों का प्रमुख उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता है और दुग्ध व मांस में उपयोग होती है.इसीलिए आमतौर पर भैसों की खिलाई- पिलाई में चारों के साथ हरे चारे, कृषि उत्पाद, भूसा और खली आदि का प्रयोग होता है. इसके अलावा भैसें गायों की अपेक्षा ज्यादा वसा, कैल्शियम, फास्फोरस, प्रोटीन, अप्रोटीन नाइट्रोजन का उपयोग करने में ज्यादा सक्षम होती है.

भैंस पालन कैसे करें (How to breed buffalo)

अगर आप किसी भी रूप से भैंस पालन को शुरू करने जा रहे है तो आपको नीचे दी गई बातों को ध्यान में रखना होगा ताकि बेहतर दूध का उत्पादन करके आप अच्छा मुनाफा भी कमा सकते है. तो आइए जानते है कि कैसे आप एक सफल भैंस पालन कर सकते है.

अच्छी नस्ल और खान-पान का चुनाव (Choosing a good breed and food)

सबसे पहले भैंस पालन के लिए अच्छी नस्ल का भैंस होना बेहद जरूरी है. पशुपालकों को भैंस पालन हेतु पूरी जानकारी और उसकी अलग-अलग प्रजातियों की जानकारी होना चाहिए. इसके लिए आप मुर्रा भैंस को चुन सकते है. इसके अलावा आपको उनके पालन हेतु अच्छी तरह से संतुलित आहार होना भी बेहद जरूरी है इसकी पूरी और सटीक जानकारी होना चाहिए.  पशुपालकों को चाहिए कि वह पशुओं के लिए एक बेहतर चारा तैयार करें. इसमें दाना की लगभग 35 प्रतिशत मात्रा होना चाहिए. इसके अलावा खली (सरसों की खल, मूंगफली की खल, अलसी की खल, बिनौला की खल) की मात्रा लगभग 30 किलो होनी चाहिए. इनमें से कोई भी खल आप एक किलो मिला सकते है.

भैंस हर साल बच्चा दें (Buffalo give baby every year)  

अगर भैंस ने हर साल बच्चा नहीं दिया तो भैंस पर आने वाला रोजाना सवा सौ खर्चा आप नहीं निकाल सकते है. इसीलिए भैंस पालक इस बात को ध्यान रखें और भैंस का इलाज भी नियमित रूप से डॉक्टर से करवाएं.

भैंसों के लिए आरामदायक बाड़ा (Comfortable enclosure for buffaloes)

भैंस पालन के लिए सबसे जरूरी बात है कि उनके लिए रख रखाव साफ सुथरा हो. उनके लिए आरामदायक बाड़ा बनाया जाना चाहिए. बाड़ा ऐसा हो. जो भैंस को सर्दी, गर्मी, बरसात से बचा सकें. बाड़ें में कच्चा फर्श हो लेकिन वह फिसलन भरा नहीं होना चाहिए. बाड़ें में सीलन न हो और वह हवादार हो. पशुओं के लिए साफ पानी पीने के लिए रखना चाहिए. अगर पशुओं को आराम मिलेगा तो उनका दूध उत्पादन उतना ही बेहतर होगा. 

भैंस की नस्लें (Buffalo breeds)

भैंस प्रमुख दुधारू पशु है इसकी अपनी भी कई तरह की प्रजाति है तो आइए जानते है कि यह नस्लें कौन-कौन सी हैं-

1. मुर्रा - यह दूध देने वाली सबसे उत्तम भैंस होती है. भारत और अन्य देशों में भी इसके बीज का कृत्रिम गर्भाधान में उपयोग किया जाता है. मुंबई के आसपास 1 लाख मुर्रा भैंसे है. यह भैंस प्रतिदिन 10-20 लीटर दूध दे देती है. इसके दूध में चिकनाई की मात्रा गाय के दूध से दुगनी होती है. इसके दूध का इस्तेमाल दही, दूध, मठा, लस्सी आदि में होता है.

2. भदावरी भैंस

इसे हम भदावरी भैस कहते है. यह ज्यादातर उत्तर भारत के कई इलाकों में देखी जा सकती है. इसके अलावा यह मथुरा, आगरा, इटावा आदि जगह पर आपको देखने को मिल सकती है. इसके दूध में 14 से 18 प्रतिशत तक फैट शामिल होता है.

3. महसाना भैंस

यह एक व्यांत भैंस है जो कि 1200 से 1500 ली दूध देती है. यह गुजरात के महसाणा जिले में पाई जाती है. इसके लिए भैंसे काफी बेहतर होते है. इसमें प्रजनन की कोई भी समस्या नहीं होती है. इसको मुर्रा भैंस से क्रांस करवा करवा कर दूध उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है.

4. जाफरावादी भैंस

इस भैंस का प्रयोग मीट के लिए होता है. बता दें कि यह भैंस मुख्य रूप से गुजरात जिले में मिलती है. इस भैंस का सिर काफी भारी होता है. इसके सींग नीचे की ओर झुके हुए होते है. यह शरीर में भी काफी भारी होती है . इस भैंस के दूध में काफी मात्रा में वसा पाई जाती है.

भैंस पालन हेतु आहार की विशेषताएं (Features of Diet for Buffalo Farming)

1. भैंस के लिए आहार बेहद ही संतुलित होना चाहिए और इसके लिए दाना मिश्रण में प्रोटीन और ऊर्जा के स्त्रोतों एवं खनिज लवणों का पूरी तरह से समावेश होना चाहिए.

2. आहार पूरी तरह से पौष्टिक और स्वादिष्ट होना चाहिए और इसमें कोई दुर्गंध नहीं आनी चाहिए.

3. दाना मिश्रण में अधिक से अधिक प्रकार के दाने और खलों को मिलाना चाहिए.

4. आहार पूरी तरह से सुपाच्य होना चाहिए. किसी भी रूप में कब्ज करने वाले या दस्त करने वाले चारे को पशु को नहीं खिलाना चाहिए.

5. भैंस को पूरा भरपेट खाना खिलाना चाहिए. उसका पेट काफी बड़ा होता है, उसको पूरा पेट भरने पर ही संतुष्टि मिलती है. यदि भैंस का पेट खाली रह जाता है तो वह मिट्टी, चिथड़े और गंदी चीजें खाना शुरू कर देती है.

6. भैंस के चारे में हरा चारा अधिक मात्रा में होना चाहिए ताकि वह पौष्टिक रहें.

7. भैंस पालन के चारे में अचानक बदलाव न करें, यदि कोई भी बदलाव करना है तो पहले वाले आहार के साथ मिलाकर उसमें धीरे-धीरे बदलाव करें.

8. भैंस को ऐसे समय पर खाना खिलाएं कि वह लंबे समय तक भूखी न रहें यानि कि उसके खाने का एक नियत समय तय रखें और आहार में बार-बार बदलाव न करें.

भैंस के लिए उपयुक्त चारा (Suitable fodder for buffalo)

भैंस के लिए हम दो तरह से आहार को बांट सकते है जो कि काफी फायदेमंद होता है. सबसे पहले चारा और दाना.

चारे में रेशेयुक्त तत्वों की मात्रा शुष्क भार के आधार पर 18 प्रतिशत से अधिक होती है. पचनीय तत्वों की मात्रा 60 प्रतिशत से कम होती है.

सूखा चारा- चारे में नमी की मात्रा यदि 10-12 प्रतिशत से कम है तो यह सूखे चारे की श्रेणी में आता है. इसमें गेहूं का भूसा, धान का पुआल, ज्वार, बाजरा और मक्का कड़वी आदि है. इनकी गणना घटिया चारा के रूप में होती है.

हरा चारा :  80 प्रतिशत हो तो इसे हरा/रसीला चारा कहते हैं. पशुओं के लियेहरा चारा दो प्रकार का होता है दलहनी तथा बिना दाल वाला. दलहनी चारे में बरसीम, रिजका, ग्वार, लोबियाआदि आते हैं. दलहनी चारे में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है. अत: ये अत्याधिक पौष्टिक तथा उत्तम गुणवत्तावाले होते हैं. बिना दाल वाले चारे में ज्वार, बाजरा, मक्का, जर्इ, अगोला तथा हरी घास आदि आते हैं.  दलहनीचारे की अपेक्षा इनमें प्रोटीन की मात्रा कम होती है.

सरकारी सहायता (Government aid)

कई जगह पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें पशुपालन करने के लिए दुग्ध उत्पादन को तेजी से बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बोर्ड के माध्यम से सब्सिडी प्रदान की जाती है. आप डेयरी उद्योग की शुरूआत भी कर सकते है. साथ ही कई बार पशुपालकों को गाय या भैंस खरीदने के लिए कृषि विभग की तरफ से या बैंक की तरफ से ऋण प्रदान किया जाता है. इससे भैंस को खरीदने में आसानी हो जाती है और पैसे का अतिरिक्त प्रभार भी नहीं पड़ता है.

English Summary: Lack of profits can be achieved by adopting this method of buffalo Published on: 14 June 2019, 05:22 IST

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