देश की एक बड़ी आबादी पशुपालन के व्यापार से जुड़ी हुई है. खास करके दुधारु पशुओं के व्यापार में तो लोग सालों से लगे हुए हैं, लेकिन इनमें से कई ऐसे पशुपालक हैं, जो जानकारी के अभाव में पशुओं में होने वाले दाद, खुजली और जू जैसी समस्याओं को नजर अंदाज कर देते हैं, जिससे पशुओं में ये एक गंभीर बीमारी के रूप में सामने आती है. कई बार ये बिमारी इतनी गंभीर हो जाती है कि ये पशुओं के मौत का कारण बन जाती है.
पशुओं में चीचड़ की बीमारी सबसे ज्यादा (Most of the scabies disease in animals)
आजकल पशुओं में चीचड़ की बीमारी(Slime disease) ज्यादा देखने को मिलती है. चीचड़ को किलनी के नाम से भी जानते है. वहीं उत्तर प्रदेश में इसे चिमोकन, बिहार में आठेल या आठगोरवा,कुटकी और पश्चिम बंगाल में आटोली पोका के नाम से जानते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, एक चीचड़ 24 घटे में 1.25 ग्राम पशु का खून चूस लेता है. इससे पशु या मवेशी कमजोर हो जाते हैं, जिसका सीधा असर उसके दूध उत्पादन पर पड़ता है. ऐसे में पशुपालकों को अपने पशुओं को उन बीमारियों से बचाने के लिए घरेलू उपचार करना चाहिए. ऐसे में हम आपको इस लेख में बताने जा रहे है कि इन बीमारियों के लक्षण क्या है और इनसे आप अपन पशुओं का बचाव कैसे कर सकते हैं...
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चिचड़ी के लक्षण क्या हैं? (What are the symptoms of scabies?)
- सबसे मुख्य लक्षणों में से एक पशुओं के चमड़ी का खराब होना है
- पशुओं में खुजली और जलन का होना
- इसका असर दुग्ध उत्पादन पर पड़ता है और इसमें कमी आ जाती है
- पशुओं के बाल झड़ने लगते है
- पशुओं को भूख कम लगने लगती है
- इसका सबसे ज्यादा प्रभाव कम उम्र के पशुओं पर होता है.
इस बीमारी से पशुओं को कैसे बचाएं?( How to save animals from this disease?)
ये बीमारी होने का सबसे बड़ा कारण पशुओं के आस-पास गंदगी होना है. ऐसे में पशुओँ के आसपास पूरी तरह से सफाई पर ध्यान दें, इससे ये समस्या कम हो सकती है.पशुशाला से गोबर व मूत्र की गंदगी को भी साफ करें. सफाई के दौरान पानी में 5 ग्राम लाल दवाई या 50 मिली लीटर फिनाईल डाल कर साफ करें. इससे पशुओं की बीमारियां नहीं फैलती.
पशुओं के शरीर पर खाद्य तेल (जैसे अलसी का तेल) और लहसुन के पाउडर को लगायें.
साबुन के गाढ़े-घोल और आयोडीन का इस्तेमाल एक हफ्ते के अंतराल पर दो बार करें .
पशुओं के शरीर पर एक हिस्सा एसेन्सियल आयल और दो-तीन हिस्सा खाद्य तेल को मिलाकर रगड़ दें
किलनी के लिए होम्योपैथिक इलाज सबसे कारगर होता है.
चिचड़ी होने पर पशुओं के लिए पाइरिथ्रम नामक वानस्पतिक कीटनाशक भी काफी उपयोगी होता है.
पशुओं की रीढ़ पर आप थोड़ी मात्रा में सल्फर का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.
चूना-सल्फर के घोल का उपयोग 7-10 दिन के अंतराल पर लगभग 6 बार करें.
किलनी नियंत्रण में प्रयोग होने वाले आइवरमेक्टिन इंजेक्शन के उपयोग के बाद दूध को कम से कम दो से तीन सप्ताह तक उपयोग में नहीं लाएं.
साल में 2 बार भीतरी परजीवीयों के लिए कृमिनाशक दवा का उपयोग करना चाहिए.
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