Goat Farming: किसानों के लिए बकरी पालन का व्यवसाय/ Goat Farming Business काफी मुनाफे का सौदा होता है. दरअसल, बाजार में बकरी की डिमांड सबसे अधिक इसके मांस व दूध की होती है. देखा जाए तो आज के ज्यादातर किसान व पशुपालक बकरी पालन परंपरागत तरीकों से कर रहे हैं, जिससे उन्हें बकरियों की उत्पादन क्षमता का लगभग 40-50 प्रतिशत होती है. लेकिन वहीं अगर किसान बकरी पालन को वैज्ञानिक विधि से करते हैं, तो वह इसे कई गुणा तक अपना लाभ बढ़ा सकते हैं. बता दें कि वैज्ञानिक विधि से व्यवसायिक बकरी पालन से उचित लाभ प्राप्त करने के लिए कम से कम 100 बकरियां पाली जाए. ICAR- केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान के द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, वैज्ञानिक विधि से व्यवसायिक बकरी पालन से किसान 5-6 गुना अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
ऐसे में आइए आज हम ICAR- केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई वैज्ञानिक विधि से व्यवसायिक बकरी पालन के बारे में विस्तार से जानते हैं, ताकि किसान व पशुपालन बकरी पालन के परंपरागत तरीके की जगह वैज्ञानिक विधि को अपना सकें.
व्यवसायिक बकरी पालन में ध्यान देने योग्य बातें-
बकरी पालन के लिए अच्छी नस्ल का चुनाव
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बकरी शुद्ध नस्ल की एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ होनी चाहिए.
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नस्ल के अनुरूप कद काठी व ऊंचाई-लम्बाई अच्छी होनी चाहिए.
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दूध की मात्रा एवं दुग्ध काल अच्छा होना चाहिए.
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बकरी की प्रजनन क्षमता (दो ब्यातों के बीच अंतराल एवं जुड़वा बच्चे पैदा करने की दर) अच्छी हो.
बकरी पालन के लिए पोषण प्रबंधन
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नवजात बच्चों को पैदा होने के आधे घंटे के अन्दर खीस पिलायें. इससे उन्हें जीवन भर रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त होती है.
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बच्चों को 15 दिन का होने पर हरा चारा एवं रातब मिश्रण खिलाना आरंभ करें तथा 3 माह का होने पर मां का दूध पिलाना बंद कर दें.
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मांस उत्पादन के लिये नर बच्चों को 3 से 9 माह की उम्र तक शरीर भार का 2-5 से 3% तक समुचित मात्रा में ऊर्जा (मक्का, जौ, गेहूँ) एवं प्रोटीन (मूंगफली, अलसी, तिल, बिनौला की खल) अवयव युक्त रातब मिश्रण देवें. इस रातब मिश्रण में ऊर्जा की मात्रा लगभग 60% एवं प्रोटीन युक्त अवयव लगभग 37%, खनिज मिश्रण 2% एवं नमक 1% होना चाहिए.
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वयस्क बकरियों (एक साल से अधिक) एवं प्रजनन के लिये पाले जाने वाले नरों में ऊर्जा युक्त अवयवों की मात्रा लगभग 70% होनी चाहिए. पोषण में खनिजों एवं लवणों को नियमित रूप से शामिल रखें.
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जिन बकरियों का दूध उत्पादन लगभग 500 मि.ली. /दिन हो उन्हें 250 ग्राम, एक लीटर दूध पर 500 ग्राम रातब मिश्रण दें. इसके उपरान्त प्रति एक लीटर अतिरिक्त दूध पर 500 ग्राम अतिरिक्त रातब मिश्रण देवें .
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दूध देने वाली, गर्भवती बकरियों (आखिरी के 2 से 3 माह) एवं बच्चों (3 से 9 माह) को 200 से 350 ग्राम प्रतिदिन रातब मिश्रण दें.
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हरे चारे के साथ सूखा चारा अवश्य दें. अचानक आहार व्यवस्था में बदलाव न करें एवं अधिक मात्रा में हरा एवं गीला चारा न दें.
बकरी पालन के लिए आवास प्रबंधन
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पशु गृह में पर्याप्त मात्रा में धूप, हवा एवं खुली जगह हो. 2. सर्दियों में ठंड से एवं बरसात में बौछार से बचाने की व्यवस्था करें. 3. पशु गृह को साफ एवं स्वच्छ रखें.
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अल्प आयु मेमनों को सीधे मिट्टी के सम्पर्क में आने से बचने के लिए फर्श पर सूखी घास या पुआल बिछा दें तथा उसे तीसरे दिन बदलते रहें.
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वर्षा ऋतु से पूर्व एवं बाद में फर्श के ऊपरी सतह की 6 इंच मिट्टी बदल दें.
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अल्प आयु मेमनों, गर्भित बकरियों एवं प्रजनक बकरे की अलग आवास व्यवस्था करें.
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एक वयस्क बकरी को 3-4 वर्ग मीटर खुला एवं 1-2 वर्ग मीटर के क्षेत्रफल की आवश्यकता होती है.
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ब्यांत के बाद बकरी तथा उसके मेमनों को एक सप्ताह तक साथ रखें.
बकरी पालन के लिए स्वास्थ्य प्रबंधन
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वर्षा ऋतु से पहले एवं बाद में (साल में दो बार) कृमि नाशक दवा पिलायें.
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रोग निरोधक टीके (मुख्यतः: पी.पी.आर., ई.टी., पॉक्स, एफ.एम. डी. इत्यादि) समय से अवश्य लगवायें.
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बीमार पशुओं को छटनी कर स्वस्थ पशुओं से अलग रखें एवं तुरंत उपचार कराएं.
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आवश्यकतानुसार बाह्य परजीवी के उपचार के लिए ब्यूटाक्स (1 प्रतिशत) के घोल से स्नान करायें.
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बकरियों कानियमित मल परीक्षण कराएं.
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बकरियों को बाजार में ऐसे बेचें
किसानों व पशुपालकों को बकरी को उनके शरीर के भार के अनुसार ही बेचें. वहीं, मांस उत्पादन के लिए पाले गये नरों को लगभग 1 वर्ष की उम्र पर बेच दें. इसके उपरान्त शारीरिक भार वृद्धि बहुत कम (10-15 ग्राम प्रतिदिन) एवं पोषण खर्च अधिक रहता है. बकरी पालक संगठित होकर उचित भाव पर बकरियों को बेचें. अगर आप बकरियों को किसी विशेष त्यौहार जैसे कि- ईद, दुर्गा पूजा आदि के समय बेचते हैं, तो इससे आपको अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं.
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