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दक्षिण भारत की दमदार देशी नस्ल की गाये

भारत में दुधारू पशुओं में सबसे अधिक पाली जाने वाला पशु है गाय. गाय अपने क्षेत्र के मौसम, जलवायु और विशेष परिस्थिति में आराम से रह पाती है. उसी स्थान की नस्ल की गाय यदि उसी क्षेत्र में पाली जाये और संतुलित आहार (balanced diet) दिया जाये तो पशुपालक को बहुत ही अधिक फायदा पहुंचाती है क्योंकि ये गायें उस स्थान के मौसम, जलवायु से पहले से ढली होती है और उस वातावरण के प्रति सहनशीलता और बीमारियों से लड़ने की अद्भुत क्षमता अन्य गायों के मुकाबले अधिक पाई जाती है. इसलिए क्षेत्र विशेष के अनुसार ही पशु के नस्ल का चयन किया जाना चाहिए. दक्षिण भारत में देसी गायों की कुछ प्रमुख प्रजाति पाई जाती हैं, जिनकी विशेषता भी अलग अलग होती है तो आइये जानते हैं दक्षिण भारत में पाई जाने वाली प्रमुख देशी गायों की प्रमुख प्रजातियों के बारे में-

हेमन्त वर्मा
हेमन्त वर्मा
Hallikar cow
Hallikar cow

भारत में दुधारू पशुओं में सबसे अधिक पाली जाने वाला पशु है गाय. गाय अपने क्षेत्र के मौसम, जलवायु और विशेष परिस्थिति में आराम से रह पाती है. उसी स्थान की नस्ल की गाय यदि उसी क्षेत्र में पाली जाये और संतुलित आहार (balanced diet) दिया जाये तो पशुपालक को बहुत ही अधिक फायदा पहुंचाती है क्योंकि ये गायें उस स्थान के मौसम, जलवायु से पहले से ढली होती है और उस वातावरण के प्रति सहनशीलता और बीमारियों से लड़ने की अद्भुत क्षमता अन्य गायों के मुकाबले अधिक पाई जाती है. इसलिए क्षेत्र विशेष के अनुसार ही पशु के नस्ल का चयन किया जाना चाहिए. दक्षिण भारत में देसी गायों की कुछ प्रमुख प्रजाति पाई जाती हैं, जिनकी विशेषता भी अलग अलग होती है तो आइये जानते हैं दक्षिण भारत में पाई जाने वाली प्रमुख देशी गायों की प्रमुख प्रजातियों के बारे में-

खिल्लारी प्रजाति (Khilari Breed)

इस नस्ल का मूल स्थान महाराष्ट्र और कर्नाटक के जिले हैं और यह पश्चिमी महाराष्ट्र में भी पायी जाती है. खिल्लारी प्रजाति के बैल काफी शकितशाली होते हैं किन्तु गायों में दूध देने की क्षमता कम होती है. यह नस्ल एक ब्यांत में औसतन 240-515 किलो दूध देती है. इस प्रजाति के पशु का रंग खाकी, सिर बड़ा, सींग लम्बी और पूँछ छोटी होती है. इनका गलंकबल काफी बड़ा होता है. इस नस्ल के नर का औसतन भार 450 किलो और गाय का औसतन भार 360 किलो होता है.  

अमृतमहल प्रजाति (Amritmahal Breed)

इस प्रजाति के गोवंश कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले में पाये जाते हैं. यह नस्ल मुख्य रूप से सलेटी और सफेद से काले रंग में पाई जाती है. इस नस्ल का गला काले रंग का, मुँह व नथुने कम चौड़े होते हैं. इसके नर का औसतन भार 500 किलो और मादा का औसतन भार 318 किलो होता है. इस नस्ल के बैल मध्यम कद के और फुर्तीले होते हैं. इस नस्ल की गायें अच्छी दूध नहीं देती हैं. ब्याने के बाद यह 210-310 दिनों तक दूध देती है. इस नसल की गायें एक ब्यांत में 572 किलो दूध पैदा करती है. यह नस्ल मुख्य तौर पर कर्नाटक के डेयरी फार्मों में पाली जाती है.

नेल्लोर नस्ल (Nellore breed)

इस नस्ल की गायें आंध्र प्रदेश में पैदा हुई है. इसे उंगोल के नाम से भी जाना जाता है. यह नस्ल बड़े आकार की होती है, जो सुडौल, गर्दन छोटी, शरीर लंबा, माथा चौड़ा, आंखे अंडाकार कान लंबे और लटके हुए और सींग छोटे तथा मोटे होते हैं. इसके नर का भार लगभग 500 किलो और मादा का भार लगभग 432-455 किलो होता है.

वेचुर नस्ल (Vechur breed)

इस नस्ल का मूल स्थान केरल राज्य है. यह नस्ल नमी और गर्म जलवायु के प्रति एकदम सही होती है. इसके सींग छोटे और शरीर का पिछला हिस्सा गहरे सलेटी रंग का होता है. एक ब्यांत में औसतन 561 किलो दूध देती है.

पुंगानूर प्रजाति (Punganur breed)

यह नस्ल भी आंध्र प्रदेश के चितूर जिले में पाई जाती है. इस नस्ल के पशु छोटे आकार के होते हैं, जिनकी खाल हल्के भूरे और सफेद रंग की होती है. कई बार लाल या हल्के से गहरे भूरे रंग में इनके पशु पाये जाते है. इसका माथा चौड़ा और सींग छोटे और मुड़े हुए होते हैं. यह एक ब्यांत में औसतन 194-1100 किलो दूध ही पैदा करती है.

पोंवार नस्ल (Ponwar breed)

इस नस्ल का मूल स्थान आंध्र प्रदेश है. इसे ‘पुरनिया’ के नाम से भी जाना जाता है. इसके सींग मध्यम आकार के, कान बड़े और पतले, गर्दन छोटी और ताकतवर, शरीर छोटा और तंग, कूबड़ अच्छी तरह से विकसित, पूंछ लंबी और किनारे से पतली और लटकी हुई चमड़ी हल्की और पतली होती है. इनकी खाल सफेद और काले रंग की होती है. इसके नर पशु भार ढोने और खेतीबाड़ी के कामों के लिए प्रयोग कीये जाते है. यह एक ब्यांत में औसतन 460 किलो दूध पैदा करती है.

कृष्णा घाटी प्रजाति (Krishna Valley breed)

यह नस्ल उत्तरी कर्नाटक की देसी नसल है. यह खेतीबाड़ी के लिए प्रयोग की जाती है और इसका मुख्य तौर पर सलेटी - सफेद रंग में पायी जाती है. इस नस्ल के सींग छोटे, चमड़ी लटकी हुई, कान छोटे और तीखे, शरीर छोटा और टांगे छोटी और मोटी होती है. एक ब्यांत में यह नस्ल औसतन 900 किलो दूध देती है.

अंबलाचेरी प्रजाति (Umbalacheri breed)

इस नस्ल को ‘मोतईमधु’ या ‘जाथीमांडू’ या ‘थेरकुथीमांडु’ या ‘तंजोर’ के नाम से भी जाना जाता है. यह नस्ल तामिलनाडू के थिरूवारूर और नागापटीनम जिले में पायी जाती है. इस नस्ल की मादा की त्वचा का रंग मुख्य तौर पर सलेटी होता है और चेहरे पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं और नर का रंग गहरा भूरा और टांगे काले रंग की होती हैं. इनका माथा चौड़ा और अलग होता है. गाय एक ब्यांत में औसतन 495 किलो दूध देती है, जिसका वसा 4.9 प्रतिशत तक होता है.

बरगुर प्रजाति (Bargur breed)

यह नस्ल भारत के पश्चिमी तामिलनाडू में मौजूद कृष्णागिरि जिले में पाई जाती है. इसके पूरे शरीर पर सफेद या भूरे रंग के धब्बे होते हैं. सींग सिरे से तीखे होते हैं और हल्के भूरे रंग के होते हैं. इस नस्ल के दूध के कई औषधीय गुण होते हैं.

हल्लीकर प्रजाति (Hallikar breed)

यह मुख्यत: मंड्या, बैंगलोर, टुमकुर, कोलार और दक्षिण कर्नाटक के चित्रदुर्गा जिले में पायी जाती है. ये पशु छोटे आकार के होते है. इसका शरीर सफेद से सलेटी रंग का होता है. लंबे सींग होते हैं, जो कि सीधे और पीछे की तरफ झुके हुए होते हैं. कंधे और पुट्ठे गहरे रंग के होते हैं. यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 500-550 लीटर दूध देती है. दूध में 5.7 प्रतिशत वसा की मात्रा पाई जाती .

दिओनी नस्ल (Deoni Breed)

इसे डोंगरी, डोंगरपति, सुरती, वनेरा आदि नामों से भी जाना जाता है. यह कर्नाटक के बिदार जिला और महाराष्ट्र राज्य के लातुर जिले में पाई जाती है. इसके पशु दोहरे काम के लिए जाने जाते है. यह मध्यम आकार का पशु है जिसके शरीर पर अनियमित काले रंग के धब्बे होते हैं. इसकी त्वचा पतली और ढीली होती है. सिर चौड़ा, मोटा होता है और मध्यम आकार के सींग होते हैं. लंबे कान होते हैं जो कि झुके हुए होते हैं. यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 1135 लीटर दूध देती है. दूध में 4.3 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है.

English Summary: Good breeds of cow found in South India and milk capacity Published on: 31 December 2020, 05:37 IST

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