बकरियों में होने वाले प्रमुख रोग और उपचार
ग्रामीण इलाकों में आज भी बकरी पालन एक प्रमुख आय का श्रोत माना जाता है. छोटे व सीमांत किसान अक्सर इन तरीकों को अपना कर अपने आय में वृद्धि करते हैं, ताकि भरण-पोषण सही से हो सके.
गाँव के साथ-साथ शहर में लोग बकरी पालन को एक सफल बिजनेस के रूप में मानने लगे हैं. इस बिजनेस को करने में लागत बहुत कम लगती है और मुनाफा कई ज्यादा मिलता है. आज के समय में बकरी दूध का दूध अन्य चीजों के इस्तेमाल में भी आने लगा है, इसलिए लोग इसे बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
यदि आप भी बकरी पालन करते हैं और इससे अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको कुछ चीजों का ख़ास ध्यान रखना होगा. खासतौर पर बकरी पालकों के पास बकरियों की स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधी जानकारी होना जरूरी है. इसके लिए हम बकरियों में होने वाले रोग और उनके बचाव के उपाय की जानकारी लेकर आए हैं.
बकरियों को बीमारी से बचाने के लिए करें यह उपाय
बकरियों में आय दिन कोई ना कोई रोग की समस्या होती है. जिस वजह से बकरी पालकों को नुकसान के साथ-साथ परेशानियां भी बहुत उठानी पड़ती है. वहीँ कई रोग इतने घातक होते हैं कि अगर समय पर इलाज ना किया जाए, तो बकरी की मौत भी हो जाती है. इसके बचाव के लिए बकरियों की उचित देखभाल के साथ ही समय पर टीके लगवाने चाहिए, ताकि बकरियों को संभावित रोग होने से बचाया जा सके. तो आइये जानते हैं बकरियों में होने वाले रोग:-
बकरियों में होने वाले पी.पी.आर. रोग
बकरियों में पाया जाने वाला यह एक विषाणु जनित रोग है. यह रोग किसी भी आयु की बकरियों में हो सकता है. बकरियों में इस रोग का संक्रमण दूषित हवा, पानी और भोजन के वजह से होता है.
इस रोग से पीड़ित बकरियों में बुखार, नाक व आंख से पानी का बहना, पतले दस्त, मुंह में छाले का पडऩा प्रमुख लक्षण है. यह रोग तेज़ी से एक बकरी से दूसरी बकरी में फैलता है. ऐसे में अगर किसी बकरी में यह रोग पाया जाता है, तो दूसरी बकरियों को दूर रखें.
बकरियों को पी.पी.आर. रोग से बचाने के उपाय
इस रोग का अभी तक कोई प्रभावी इलाज नहीं है, जिससे इस रोग को तुरंत ठीक किया जा सके या फिर बढ़ते संक्रमण को फैलने से रोका जा सके. ऐसे में इस रोग को बढ़ने से रोकने के लिए लोग औषधीय तरीकों को अपनाते आ रहे हैं. इस रोग से बचाव के लिए बकरियों को समय पर टीका लगवाना चाहिए.
बकरियों में चेचक रोग (माता रोग)
यह एक विषाणु जनित रोग है, जो रोगी बकरी के सम्पर्क में आने से फैलता है. इस रोग में बकरी के शरीर पर दाने निकल आते हैं. वहीं, बीमार बकरियों को बुखार आ जाता है और कान, नाक, थनों व शरीर के अन्य भागों पर गोल-गोल लाल रंग के चकते हो जाते हैं, जो फफोले का रूप लेकर अन्त में फूट कर घाव बन जाते हैं. बकरी चारा खाना कम कर देती हैं तथा दूध उत्पादन कम हो जाता है.
रोग के प्रकोप से बचने के लिए प्रतिवर्ष वर्षा से पहले रोग-प्रतिरोधक टीके लगवाने चाहिए. रोग होने पर प्रतिजैविक दवाईयों का प्रयोग करना चाहिए. जिससें दूसरे प्रकार के कीटाणुओं के प्रकोप को रोका जा सके. बीमार पशुओं को अलग रखना चाहिए.
बकरियों को चेचक से बचाने के उपाय
अब तक बकरियों में चेचक रोग का कोई प्रभावी उपचार नहीं पाया गया है. ऐसे में बकरी पालक संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए जीवाणु नाशक औषधियों व मलहमों का फफोलों पर प्रयोग करते हैं. इसके लिए टिंचर आयोडीन का प्रयोग पशुपालक कर संक्रमण को बढ़ने से रोका जा सकता है. संक्रमित बकरियों को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए एवं तुरंत पशु चिकित्सा की सलाह लेनी चाहिए.
बकरियों में खुरपका-मुंहपका रोग:
यह बकरियों का एक संक्रामक रोग है. यह रोग वर्षा ऋतु के आने के बाद आरंभ होता है. इस रोग में बकरियों के मुंह व खुर में छाले पड़ जाते हैं तथा मुंह से लार टपकती रहती है. इससे बकरी चारा नहीं खा पाती है. वहीं, पैरों में जख्म हो जाने से बकरियां लंगड़ा कर चलने लगती हैं. चारा ना खा पाने से बकरियां कमजोर हो जाती हैं, जिससे इनमें मृत्युदर बढ़ जाती है तथा इनका शारीरिक भार व उत्पादन भी कम हो जाता है.
इस रोग के विषाणु रोगी पशुओं के संपर्क से संक्रमित आहार व जल के ग्रहण करने से स्वस्थ बकरियों में प्रवेश करते हैं. इस रोग से प्रभावित बकरियों के अंगों को लाल दवा के घोल से धोना चाहिए. छालों पर मुख्य रूप से ग्लिसरीन लगाने से लाभ रहता है. वर्षा ऋतु से पहले बकरियों को पोलीवेलेन्ट टीका लगा देना चाहिए. अतः रोगी पशुओं को अलग कर देना चाहिए तथा स्वस्थ होने के बाद ही समूह में वापस रखना चाहिए.
बकरियों में खुरपका व मुंहपका रोग से बचाव
खुरपका व मुहंपका रोग ग्रसित पशुओं के उपचार से पहले स्वस्थ और पीड़ित पशुओं को अलग-अलग रख देना चाहिए, ताकि संक्रमण को बढ़ने से रोका जा सके. रोगी पशु के खुरों व मुंह के छालों को एंटीसेप्टिक लोशन जैसे पोटाश, फिटकरी, बोरिक एसिड और नमक का घोल बनाकर अच्छे से धोना चाहिए. रोग के बचाव के लिए पशु को टीका लगवाना चाहिए.
बकरियों में आफरा रोग
यह बकरियों में मुख्य रूप से पाया जाने वाला रोग है. इसमें गैस के बनने व एकत्रित होने से पेट फूल जाता है. यह रोग अधिकतर वर्षा व उसके बाद में जरूरत से अधिक हरा चारा, सड़ा हुआ चारा खा लेने से होता है. इससे अधिक गैस बनती है. कई बार बहुत सी बीमारियों की वजह से पशु बहुत समय तक एक ही करवट लेटा रहता है तब उसकी पाचन क्रिया सही ढंग से नहीं हो पाती है, जिससे पेट में गैस एकत्रित होकर इस रोग का कारण बनती है.
पेट में बनी गैस शरीर से बाहर न निकलने पर अंदर के अन्य भागों में दबाव डालती है, जिससे मुख्य रूप से फेफड़े प्रभावित होते हैं तथा पशु को सांस लेने में परेशानी होती है. पशु काफी बेचैन हो जाता है व बांयी ओर का भाग फूल जाता है.
यदि पेट पर हल्के हाथ से मारे तो ढप-ढप की आवाज आती है. पशु के मुंह से झाग आने लगते हैं तथा दर्द के कारण पेट पर लात मारने लगता है. समय पर उपचार न होने पर बकरी की मृत्यु भी हो जाती है.
आफरा की पहचान होने पर पशु चिकित्सक को बुलाकर ट्रोकार कैन्युला की सहायता से पेट की गैस निकाल दें. बकरी की आगे की टांगे ऊंचाई पर रखकर धीरे-धीरे पेट की मालिश करें जिससे गैस पेट से बाहर निकल जाती है तथा फेफड़ों पर दबाव कम पड़ता है. पशु को तारपीन का तेल 10-15 ग्राम, हींग 2 ग्राम व अलसी का तेल 70 ग्राम मिलाकर पिलाने से लाभ मिलता है. पिलाते वक्त ध्यान रखें कि तेल फेफड़ों में न जाएं. बकरियों को हरा व भीगा चारा अकेले नहीं खिलाना चाहिए. आफरा से बचने के लिए पशुओं को सड़ा-गला चारा व अधिक मात्रा में दाना नहीं खिलाना चाहिए.
बकरियों को अफारा रोग से बचाव के उपाय
संक्रमण को रोकने के लिए सबसे पहले आधा लीटर खाद्य तेल पशु को पिलाना चाहिए. पशु के बाएं तरफ के पेट को ट्रोकार एवं केनुला से पंच करना चाहिए ताकि पेट के अन्दर का बना हुआ गैस बाहर निकल सके. झागिये अफरा के उपचार के लिए एंटीफोमिंग एजेंट का उपयोग किया जा सकता है.
अब सवाल यह उठता है कि कैसे बकरियों में होने वाले संक्रमण को रोका जा सके. ऐसे में पशुपालक समय-समय पर बकरियों का टीकाकरण करवा सकते हैं. तो आइये जानते हैं बकरियों में लगने वाले टीके का नाम:-
बकरियों में लगने वाले प्रमुख टीकों के नाम
बकरियों को रोग सुरक्षा के लिए जो टीके लगाए जाते हैं उनके नाम इस प्रकार से हैं-
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एफएमडी
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टिटनेस
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ब्लैक क्वार्टर
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एंटेरोटोक्सिमिया
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पी. पी. आर
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चेचक
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