चिकन खाने के कई फायदे और नुकसान होते हैं लेकिन एक ऐसी प्रजाति भी है, जिसको खाने से अनगिनत फ़ायदे होते हैं. हम कड़कनाथ मुर्गी की बात कर रहें हैं, जो चिकन की एक ऐसी प्रजाति है, जिसमें कई औषधीय गुण, कम फैट और बेहतरीन स्वाद होता है. इस मुर्गी को मध्यप्रदेश में बहुत लोकप्रिय माना जाता है. इसी कड़ी में मध्यप्रदेश का धार जिले का कृषि विज्ञान केंद्र कड़कनाथ की विलुप्त होती प्रजाति को बढ़ावा दे रहा है. बता दें कि भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली को फैट और कोलेस्ट्रोल की शिकायत हुई थी, जिसके बाद उन्हें कड़कनाथ खाने की सलाह दी गई थी.
कड़कनाथ मुर्गी के चूजों की मांग बढ़ी
कृषि विज्ञान केंद्र में कड़कनाथ के चूजों की मांग बढ़ गई है, क्योंकि यहां पर लगभग 6 साल से कड़कनाथ की प्रजाति बढ़ाने पर काम किया जा रहा है, साथ ही इनकी बिक्री पर भी जोर दिया जा रहा है. बता दें कि देशभर में कृषि विज्ञान केंद्र से पिछले 6 साल में लगभग 60 हजार से ज्यादा कड़कनाथ सप्लाई की गई हैं.
कड़कनाथ मुर्गी को रखने कि लिए बनाए शेड
कृषि वैज्ञानिक के मुताबिक, धार के कृषि विज्ञान केंद्र में लगभग 100 कड़कनाथ मुर्गा-मुर्गी रखने की क्षमता वाले लगभग पांच शेड बनाए गए हैं. हर शेड पर सालभर में सालाना 29 हजार 200 रुपये खर्च किया जाता है. पहले 55 रुपये प्रति चूजा बेचा जाता था, लेकिन इसका खर्च बढ़ने पर प्रति चूजा की कीमत बढ़ा दी गई. अब प्रति चूजा 80 रुपये बेचा जा रहा है. बता दें कि साल 2013-14 में लगभग 10 हजार चूजों की मांग थी, लेकिन अब यह बढ़ती जा रही है. इसको यूपी, हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर में सप्लाई किया जाता है.
हेचड़ी मशीन में रखे जाते हैं अंडे
कृषि विज्ञान केंद्र में इन्हें संतुलित आहार दिया जाता है, क्योंकि कैल्शियम की कमी की वजह से मुर्गियां अपने अंडे भी खा जाती हैं. इतना ही नहीं, यहां 1 हजार अंडे रखने की क्षमता वाली हेचरी मशीन भी लगी है. जो मुर्गी अंडे देती है, उन्हें हेचरी मशीन में रखकर उससे चूजे निकाले जाते हैं.
6 सालों से चल रहा मिशन
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली द्वारा साल 2012 में राष्ट्रीय नमोन्वेषी प्रोजेक्ट के तहत विलुप्त होती प्रजातियों के शोध करने की योजना बनाई गई थी. साल 2000 से कड़कनाथ की प्रजाति विलुप्त हो रही थी, जिसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र ने कड़कनाथ की संख्या बढ़ाने पर काम शुरू किया गया.
रोज़गार का बेहतर विकल्प
यह प्रयोग सफल होने के बाद इन्हें बेचना शुरू किया गया. इसके अलावा सेमी इंटेनसिव डीप लीटर सिस्टम पद्धति के जरिए गांवों में प्रदर्शनी लगाई गई, जिसमें किसानों और बेरोजगार युवाओं कों इसके पालन की प्रक्रिया समझाई गई. अगर किसान और युवा इससे जुड़ता है, तो उसे बेहतर रोज़गार मिलेगा, साथ ही कड़कनाथ की संख्या भी बढ़ेगी.
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