शहद मधुमक्खियों का मुख्य उत्पादन है जिसे मधुमक्खियां अपने वर्तमान व भविष्यकाल के मद्देनजर फूलों से इकठ्ठा करके छत्तों में भण्डारण करती है. इसको वो अपने भोजन के लिये संग्रह करती है परन्तु मधुमक्खी पालन को अधिक लाभकारी बनाने के लिये क्या गुर अपनाएं ताकि मधुमक्खियां कम समय में अधिक शहद पैदा कर सकें. इसमें मुख्य तौर पर प्रवासी मधुमक्खी पालन एवं गर्मियों में मधुमक्खी की कॉलोनी को शक्तिशाली बनाने के लिये कृत्रिम भोजन की आवश्यकता पर बल दिया जाता है.
1. प्रवासी मधुमक्खी पालन
विभिन्न क्षेत्रों के अलग-अलग समय पर मधु स्त्राव से लाभ उठाने के लिये मौनवंशो/मौनालय को उन क्षेत्रों में उचित समयों पर स्थानान्तरित करके मौनपालन करने को प्रवासी या सचल मौनपालन कहते हैं. प्रवासी मौनपालन से हम मौनवंशो को अधिक शक्तिशाली बना सकते है और अधिक क्षेत्रों में पर-परागण का लाभ भी ले सकते है.
2. स्थानान्तरण करने से पहले मौन वंशो की तैयारी
यात्रा की दूरी के अनुसार मौनवंशो में पर्याप्त भोजन की व्यवस्था कर देनी चाहिए. ऐसा करने के लिये या तो शक्तिशाली वंशो से शहद वाले छत्ते निकाल कर कमजोर वंशो को दे दें या फिर कुछ दिन पहले ही जरूरत अनुसार चीनी के घोल की कृत्रिम खुराक दे दें. चीनी का घोल ज्यादा न दें क्योंकि मौन इसे संभाल नहीं सकेंगी और फालतू चीनी का घोल छत्तों से मौनगृह में गिर सकता है जिससे दूसरे वंशो की मक्खिंया चोरी करना शुरू कर सकती है. यदि मौनवंशो में पका शहद ज्यादा हो तो मौनवंशो को स्थानान्तरित करने से एक सप्ताह पहले शहद निकाल लेना चाहिए. गर्मी के मौसम में मौन गृह के प्रवेश द्वार पर लोहे की जाली का टुकड़ा लगा दें और जालीदार अंतरपट भी उपयोग में लाएं ताकि यात्रा के दौरान हवा का संचार होता रहे. यदि मौनवंश काफी शक्तिशाली अथवा सुपरों पर हो तो पहले उनका विभाजन कर लें. विभाजन किए वंशो में खाली फ्रेम डालकर 10-10 फ्रेम पूरे कर लें अथवा अंत वाले फ्रेम के बाहर दोनों तरफ सटाकर, चैंबर में कील ठोक दें ताकि यात्रा के दौरान फ्रेम हिल-डुल न सकें.
मौनवंशो का प्रवास उस समय करें जब पुरानी जगह पर मधुस्त्राव काल समाप्त हाने वाला हो और मौनवंशों में शिशुओं की सख्या भी कम हो. यात्रा से पहली शाम जब सारी मौन काम करना बंद कर दें और गृह के अन्दर हों तो मौनगृह द्वार पर लोहे की जाली का टुकड़ा लगा दें ताकि नई जगह पर जाकर मौनें एकदम बाहर ना निकलें. गर्मी के मौसम में मौन गृहों के स्थानान्तरण के लिये देर शाम, रात्रि या सुबह का समय या जब गर्मी कम हो, ठीक रहता है.
अगर उचित स्थान बहुत दूर हो और वहां जाने के लिये कई दिन लगते हो तो रास्ते में एक-दो बार रूक जाना चाहिए. दो दिन बाद यात्रा शुरू करने से पहली शाम को फिर से मौनगृहों को स्थानान्तरण के लिये तैयार करें.
नई जगह पर मौनवंशो को उतार कर अपनी-अपनी जगह, एक-दूसरे से उचित दूरी पर रखें. सभी मौनवंश उतारने के बाद मौनगृह द्वार खोल दें. दूसरे दिन मौनवंशो का निरीक्षण करें.
परागण के लिये मौनवंश लेकर जाने हो तो फसल में कम से कम 10 प्रतिशत फूल आ गए हो नहीं तो मौनें उस फसल को छोड़कर साथ में ही फूलों वाली किसी और फसल पर जाने लग जाएंगी.
मौनगृह गाड़ी में रखते समय ध्यान रखें कि यदि ट्रेक्टर - ट्राली है तो मौनगृहों की लम्बाई वाली साईड ट्राली हो तो मौनगृह की लम्बाई साधन की चैड़ाई के समानान्तर रखें.
3. कृत्रिम भोजन
मधुमक्खियों को अन्य पालतू पशुओं की तरह प्रतिदिन भोजन देने की जरूरत नहीं होती. जहां तक संभव होता है मधुमक्खियां अपने परिवार की आपूर्ति के लिये फूलों से पराग और मकरंद इक्ट्ठा करती रहती है. परन्तु कुछ ऐसे अवसर और परिस्थितियां है जिनमें मधुमक्खियों को प्रकृति में पराग और मकरंद नहीं मिलता. ऐसे समय में उनको सुचारू रूप से पालने के लिए कृत्रिम भोजन की आवश्यकता पड़ती है. मकरंद से इन्हे ऊर्जा मिलती है और पराग से प्रोटीन जो शरीर के विकास में सहायक होते हैं.
उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में जून से सितम्बर तक मधुमक्खियों के लिए भोजन के अभाव का समय होता है जिसे ’’डर्थ पीरियड’’ कहते हैं. मधुमक्खियां फूलों से मकरंद और पराग इक्ट्ठा करके अपने गृह में संचय इसलिए करती है कि अभाव वाले समय में इसका उचित उपयोग करके अपने परिवार का निर्वाह कर सकें. क्योंकि, मधुमक्खी पालक समय-समय पर मधुमक्खी वंशो से शहद निकालते रहते हैं और मधुमक्खी वंशो के पालन-पोषण के लिए आवश्यक शहद नहीं छोड़ते. ऐसे हालात में रानी मधुमक्खी या तो अण्डे देना बन्द कर देती हैं या बहुत कम अण्डे देती हैं. इसके साथ ही प्रौढ़ कमेरी मधुमक्खियां अपना जीवन काल पूरा होने पर मरती जाती हैं. इससे मधुमक्खी वंश कमजोर होकर मर जाते हैं. कभी-कभी कीटनाशक पदार्था के विषैले प्रभाव से बचाने के लिए मधुमक्खी वंशो को बंद करके ऊपर बोरियां ढ़क दी जाती है ताकि जहरीली दवाओं का दुष्प्रभाव न पड़े. इन मौनवंशो को भी कृत्रिम भोजन देने की आवश्यकता पड़ती है. कृत्रिम भोजन में पराग एवं मकरंद के आवश्यक तत्व होने के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि उस भोजन के लिए मधुमक्खी उसकी तरफ आकर्षित हो.
चीनी की चाशनी का भोजन एक साधारण कॉलोनी को 400.500 उस चीनी की चाशनी हर सप्ताह देनी चाहिए. इसके लिए 1 किलो ग्राम चीनी को 1 लीटर पानी में उबालकर व ठंडा करके मोमजामें के सफेद लिफाफे में भरकर ऊपर से गांठ या रबर लगाकर बंद कर देते है. प्रति डिब्बा एक लिफाफा मधुमक्खी वंशो को दिया जाता हैं. लिफाफा रखने के बाद उसमें पिन से 3-4 सुराख कर दिए जाते हैं. मधुमक्खियां इससे रस लेकर अपने छत्ते में इक्ट्ठा कर लेती हैं. जब भी कृत्रिम भोजन दें तो मौनालय में जितनी भी कॉलोनियां हो सबको एक साथ सांयकाल में दें. चाशनी बनाने में गुड़ शक्कर या शीरा का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
मधुमक्खी पालक सामान्यता केवल भोजन के अभाव के समय कृत्रिम भोजन देते है जबकि मौनालय प्रबन्धन की रणनीति के हिसाब से विभिन्न परिस्थतियों में निम्नलिखित उद्देश्यों से भी चीनी की चाशनी का भोजन देते हैं.
(i) जीवन रक्षा खिला - जब मधुमक्खियों को कहीं कोई प्राकृतिक भोजन उपलब्ध नहीं होता तब उनको जिन्दा रखने के लिए उन्हे खुराक दी जाती है. इसे मधुमक्खी की ैनतअपअंस थ्ममकपदह कहते हैं. ऐसा समय गर्मी और बरसात के मौसम में होता है.
(ii) उत्तेजक भोजन - मधुस्त्राव शुरू होने के 3-4 सप्ताह पूर्व मधुमक्खियों को शिशु पालन के प्रोत्साहन के लिए फीडिंग दी जाती है. इस खुराक के कारण रानी मधुमक्खी अधिक अण्डे देना शुरू कर देती है. इस खुराक के कारण पराग व मकरंद इक्ट्ठा करने वाली कमेरी मधुमक्खियों की सख्या भी बढ़ जाती है. इस खुराक में चीनी की चाशनी की 40 प्रतिशत मात्रा प्रयोग में लाई जाती हैं.
(iii) व्यवाहरिक खिला
1. यह खुराक मुख्य रूप से चार अवसरों पर दी जाती है-
2. जब मधुमक्खी कॉलोनियां नए स्थान पर स्थापित की गई हो.
3. जब दो मौनवंशो को आपस में मिलाया गया हो.
4. जब वकछूट को पकड़कर नए बक्से में बसाया गया हो.
5. जब बड़े पैमाने पर रानी मधुमक्खी का उत्पादन किया जाए.
इसमें चीनी की चाशनी की 50 प्रतिशत मात्रा प्रयोग में लाई जाती है.
(iv) औषधीय आहार - जब मधुमक्खी वंशो में कोई रोग लग जाता है तब चीनी की चाशनी में Antibiotic/B-Complex/Fumidil आदि खुराक मिलाकर दी जाती है.
Dearth Period (प्रिय काल) और पराग पूरक भोजन - क्मंतजी च्मतपवक में मधुमक्खी पालन हेतु पराग की आवश्यकता पड़ती है उस समय पराग का वैकल्पिक आहार दिया जाता है. यधपि यह पराग के समान स्वादिष्ट तो नहीं होता लेकिन इससे काफी हद तक हम मधुमक्खी की जैविक आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं. पराग पूरक भोजन बनाने के लिए 25 भाग Soybean का आटा, 10 भाग पाउडर दूध, 15 भाग Medicinal या Bakery yeast 40 भाग पीसी चीनी को 10 भाग शहद में आटे की तरह गूंथ लें. इस भोजन की 75-100 ह की पेड़िया बनाकर कागज पर रखकर थ्तंउम की ज्वचचंत पर उल्टा करके रख दें. यह खुराक एक कॉलोनी के लिए एक सप्ताह तक काफी होती है. पराग और शहद का मिश्रण (1:1) भी मधुमक्खियों के वंशो को मजबूत करने में सहायक होता है. इसके लिए जब पराग स्त्रोत अधिक मात्रा में उपलब्ध हो उस समय कॉलोनियों के प्रवेश द्वार पर पराग पोश या च्वससमद जतंच लगाकर पराग इक्ट्ठा किया जा सकता है.
लेखक : डा0 मीनू1, डा0 अमित2, डा0 योगिता बाली,
कृषि विज्ञान केन्द्र, भिवानी
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