मधुमक्खी पालन (Apiculture) एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें कुछ खास लागत नहीं है लेकिन इसके बावजूद इसमें काफ़ी मुनाफ़ा पाया जा सकता है. इसमें न ही आपको महँगे उर्वरक, कीटनाशक या बीज का खर्चा है, और न ही सिंचाई की लागत. ऐसे में आसानी से इस व्यवसाय को अपनाया जा सकता है लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखते हुए. मधुमक्खीपालकों को इस बात का ख़ास ध्यान रखना चाहिए कि मक्खियों को किसी भी तरह का रोग न लगे.
इसका मतलब यह है कि अगर मधुमक्खियाँ स्वस्थ रहेंगी, तभी शहद का उत्पादन भी अच्छा होगा और पालकों को मुनाफ़ा भी बेहतर मिलेगा. आज हम मधुमक्खीपालकों को मधुमक्खियों में लगने वाले उन रोगों और उनके लक्षण के बारे में बताने जा रहे हैं जिनसे उनके उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है.
मकड़ी माइट (Spider mite)
ये वो रोग है जो मधुमक्खियों में माइट के आक्रमण से होता है. आपको बता दें कि माइट से प्रभावित मधुमक्खियों के बच्चों के पंख नहीं होते हैं जिसकी वजह से वे सही तरह से शहद बनाने कि प्रक्रिया में अपनी हिस्सेदारी नही दे पाते हैं.
यूरोपियन फॉलब्रूड (European Fallbrood)
यह बीमारी बंद लार्वा की बीमारी है. इस बीमारी से ग्रसित हने पर कोषों के बंद होने से पहले ही ज़्यादातर लार्वा मर जाते हैं. यह बीमारी मेलिसोकोकस प्लूटोनिस रोगाणु कि वजह से होती है, जो बीजाणुओं का निर्माण नहीं करते हैं. इससे संक्रमित कालोनियां भी प्रभावित होती हैं. इसके साथ ही कालोनी में मधुमक्खियों की संख्या बहुत ज़्यादा प्रभावित हो सकती है.
वरोआ (Varoa)
मधुमक्खी पालन में यह पालकों के लिए एक सामान्य समस्या है जो अक्सर होती है. वरोआ वह रोग है जो परजीवी दीमक वरोआ डिस्ट्रक्टर की वजह से होता है. ये दीमक मधुमक्खियों का खून पीते हैं. इससे मधुमक्खियां कमजोर होती हैं. मधुमक्खियों को संक्रमित करने वाले वायरस को भी ये रोगाणु फैलाने में सक्षम हैं. ये वयस्क मधुमक्खियों, लार्वा और प्यूपा को प्रभावित करते हैं. वयस्क मधुमक्खियों के पंख विकृत दिखीयी देते हैं.
नोज़ेमा (Nozema)
यह रोग वयस्क मधुमक्खियों की सबसे गंभीर बीमारी है. यह रोग नर मधुमक्खियों, रानी मधुमक्खी के साथ बाकी मधुमक्खियों को भी भी प्रभावित कर सकता है. यह नोज़ेमा एपिस और नोज़ेमा सेरेने प्रोटोज़ोआ की वजह से होता है. इन रोगाणु से बीजाणु बनते हैं, जिन्हें वयस्क मधुमक्खियां अपने भोजन के साथ ग्रहण करती हैं. इसके बाद संक्रमित मधुमक्खियां गंभीर पेचिश रोग से ग्रस्त हो जाती हैं. इसके बाद छत्ते के अंदर मल-मूत्र त्याग की वजह से रोग बाकी स्वस्थ मक्खियों में भी फैलता है. संक्रमित कर्मचारी मधुमक्खियां काफ़ी कमज़ोर हो जाती हैं. इतना ही नहीं, कई मक्खियां मर भी जाती हैं. जहां रोग ग्रसित कुछ मक्खियां छत्ते के अंदर ही मरती हैं तो कुछ सामने ज़मीन पर रेंगती और छत्ते से चिपकी हुई मिलती हैं.
मोम पतंगा (Wax Moth)
यह पतंगा मौका मिलते ही बक्से के अन्दर घुस जाता है. यह छत्ते में या मौन गृह के आस-पास अण्डे देता है. आपको बता दें कि पतंगे के शिशु शुरुआत में बक्से के अन्दर शहद, फूलों का रस और इकट्ठा किया हुआ पराग खाकर नुकसान पहुँचाते हैं. ये शिशु छत्तों में छेद कर देते हैं. इतना ही नहीं, माँ के साथ ही मधुमक्खियों के शिशुओं को भी खा लेते हैं
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