मौजूदा वक़्त में बहुत सारी महिला किसान आधुनिक तरीके से खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रही हैं. और अन्य महिला किसानों के लिए नजीर पेश कर रही हैं. उन्हीं महिला किसानों में से एक कर्नाटक की रहने वाली महिला किसान कविता मिश्रा भी हैं, जोकि आधुनिक तरीके से मल्टीक्रोपिंग करके अच्छा मुनाफा कमा रहीं हैं. पेश है उनसे बातचीत के कुछ प्रमुख अंश-
आप अपने बारे में हमें बताइए?
मेरा नाम कविता उमाशंकर मिश्रा है. मैं कर्नाटक की रहने वाली हूं. मेरे गांव का नाम कविताल है. मैं खेती के अलावा नर्सरी चलाती हूं. इसके साथ ही बागवानी और पशुपालन भी करती हूं. फिलहाल मैं यहीं सब काम कर रही हूं.
आपने किन परिस्थितियों में खेती का कार्य शुरू किया?
मैंने बहुत दबाव वाली परिस्थिति में यह सब शुरू किया था. दरअसल, मैंने तीन साल का डिप्लोमा कंप्यूटर साइंस में पूरा किया था. इसके बाद मैंने कर्नाटक की धारवाड़ यूनिवर्सिटी से एम.ए. इन साइकोलॉजी किया. मुझें इंजीनियर बनना था, लेकिन जहां मेरी शादी हुई, वहां लड़कियों को बाहर जाकर काम करने की इजाजत नहीं थी.
मेरे पति ने मुझसे कहा कि आपको जो भी करना है, वो घर पर ही करना है, तो मैंने मेरे सास ससुर की जो जमीन थी, उस पर कुछ करने का सोचा, वहां पहले कुछ नहीं उगता था. मैंने सोचा कि मैं अपने करियर को चार दीवारी में बर्बाद करने की जगह क्यों न खेती करूं. मुझें एमएनसी में काम करने का मौका मिला, लेकिन मुझें कभी घऱ से बाहर निकलने की इजाजत नहीं मिली है. इसलिए, मैंने वही काम किया, जिस हिसाब से परिस्थितियां मेरे पक्ष में थीं. उसको मैंने अपना बनाकर, धऱती मां को अपनाने का फैसला लिया.
आप कितने एकड़ में बागवानी करती हैं?
मेरे पास अभी 8 एकड़ 10 कुंठा जमीन है, जिसमें मैंने 2100 चंदन का पेड़ लगाया है. 600 आम लगाया है, 100 आंवला, 600 अमरूद का पेड़, 100 सागवाना, 600 सीताफल, 100 सहजन, 100 मौसम्बी है, और 200 काला जामुन का पेड़ है.
जितने भी वृक्षों का जिक्र आपने किया है, यह सब कितने दिनों में तैयार हो जाते हैं?
अगर हम बात अमरूद की करें, तो यह एक साल में फल देना लगता है, और आम तीन साल में फल देने लगते हैं. सीताफल दो साल में फल देने लगते हैं. आंवला दो साल में फल देने लगते हैं. चीकू तीन साल में फल देने लगते हैं. नींबू तीन साल में फल देने लगते हैं. मौसम्बी दो साल में फल देने लगता है. सहजन 6 महीने तैयार होता है. वहीं, सागवानी और चंदन टिम्बर क्राप है, जो कि 12 से 15 साल में हार्वेस्ट होता है.
इसमें आपको सालाना कितनी लागत और कितना मुनाफा हो जाता है?
मैंने जिन फलों का नाम बताया है, उनकी कीमत एकसमान कभी भी नहीं रहता है. उनकी कीमत में उतराव-चढ़ाव आता रहता है. इसलिए मैं मल्टीक्रोपिंग करती हूँ, ताकि संतुलन बना रहे. वहीं अगर लागत की बात करें तो अलग-अलग क्रॉप पर अलग–अलग लागत आती है, लेकिन इन सब चीजों से हमें सालाना 25 से 30 लाख रुपए की आमदनी हो जाती है.
आप बतौर महिला किसान महिलाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?
मैं महिलाओं को यह कहना चाहूंगी कि आज नारी अबला नहीं रही, वह पुरुष से दुर्बल नहीं है बल्कि उससे कहीं ज्यादा सक्षम और सबल है. महिला आदि शक्ति का अवतार हैं. कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता है, जो भी इज्जत से हम कमाते हैं और खाते हैं, वो बड़ा होता है. इसलिए मैं महिला किसानों को कहना चाहती हूं कि आप जो भी करना चाहती हैं करिए, कोई आपका हाथ पकड़े या न पकड़े. धरती मां खुद एक महिला हैं, वो आपको आगे ले जाएंगी. बस आपके पास तीन चीजें होनी चाहिए- मेहनत, सच्चा हौसला, आगे बढने का दृढसंकल्प, यह तीन चीज हमें आगे लेकर जाएगी. मैं महिला दिवस की सभी महिलाओं को बधाई देती हूं. मैं आज जिस मुकाम पर पहुंची हूं, उसके लिए मैं धरती मां की बहुत आभारी हूं.
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