मध्यप्रदेश के सतना जिले में एक गांव है पिथौराबाद. वैसे तो ये गाँव भी भारत के अन्य गांवों की तरह ही है. लेकिन यहां के एक किसान देश-विदेश में अपनी किसानी के लिए प्रसिद्ध हो चुके हैं. इनकी किसानी का लोहा इसी बात से माना जा सकता है कि इन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया है. वैसे खेती बाड़ी के अलावा बाबूलाल दहिया को कविता और लेखन का भी शौक है. चलिए आज हम आपको इनके विचारों से रूबरू करवाते है-
1. जैविक खेती से आप कैसे जुड़े?
उत्तरः खेती हमारे परिवार का पैतृक काम था जो कई पीढ़ियो से जुड़ा था और किसान बालक होने के नाते बहुत सारे खेती के काम जैसे जुताई-कटाई, गहाई-मड़ाई का ज्ञान उन दिनों किसान बालको को पढ़ाई के समय भी करने पड़ते थे. इसलिए सारी जानकारी स्वाभाविक तौर पर मिल ही जाती थी. वैसे हमारे समय में मतलब पचास साठ के दशक में दशहरे से दीपावली तक उन दिनों बकायदा फसली छुट्टी होती थी तब हम धान की गहाई, ज्वार की तकाई आदि कार्यो में परिवार की मदद करते थे. रही बात जैविक की तो जो खेती हमे विरासत में मिली वह पूर्णतः जैविक ही थी. किन्तु जैविक-अजैविक खेती जैसे शब्द 1965-66 के आस पास हरित क्रांति के समय अधिक प्रचलन में आने लगे. ये वो समय था जब किसान जैविक और अजैविक खेती के तात्पर्य को समझने लगा था. हरित क्रांति से निसंदेह हमारे देश को फायदें हुए हैं, लेकिन इससे नुकसान भी हुए. ये हरित क्रांति उन्नत बीज, रसायनिक खाद और सिंचाई पर ही टिकी थी. बहुराष्ट्रीय कृषि कंपनियों ने दोनों हाथों से मुनाफा कमाना शुरू करते हुए किसानों की सब्जियों और अनाजों को जहर युक्त बनाना प्रारंभ कर दिया. समय के साथ मुझे ये भी आभास हुआ कि किसान पहले की अपेक्षा खेती में अधिक लागत लगाने लगा था लेकिन जहरीली खेती में उसे लाभ कुछ नहीं हो रहा था. अंततः मैंने फैसला किया कि अलाभकारी जहरीली खेती की जगह मैं परम्परागत खेती ही करूँगा.
2. क्या जैविक खेती वास्तव में लाभकारी है?
उत्तरः हर शब्द के कई अर्थ होते हैं. हमे पहले समझना होगा कि लाभ का तात्पर्य वास्तव में क्या है. वैसे जैविक खेती कई कारणों से लाभकारी है. जैसे कृषकों की दृष्टि से देखें तो इससे भूमि की उपजाऊ क्षमता और सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है. वहीं रासायनिक खादों पर निर्भरता भी कम होती है. फिर इन दिनों बाज़ार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने लगी है जिस कारण किसानों को फायदा हो रहा है. इसी तरह मिट्टी की दृष्टि से देखें तो जैविक खादों के उपयोग से भूमि की गुणवत्ता में सुधार होता है. पर्यावरण के साथ-साथ जैविक फसलें हमारे स्वास्थ के लिए भी लाभकारी है
3. क्या जैविक खेती में बंपर कमाई है?
उत्तरः मेरा अपना विचार है कि जैविक खेती में बंपर कमाई के अवसर नही है. लेकिन वो आजीविका का अच्छा और सदाबहार साधन है. क्योंकि उसका मूल्य जहर युक्त अनाज से मात्र दूना तिगुना हो सकता है. किंतु अनाज का मूल्य पहले से ही अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के मुकाबले 10 गुना घटा हुआ है. आइये हम 70 के दशक से आज की तुलना करते है जब हरित क्रांति शुरू हुई थी. अन्तर राष्ट्रीय मूल्य का मापदण्ड सोना है जो सत्तर के दशक में 200 रुपये का 10 ग्राम था. उन दिनों गाँव के एक तृतीय श्रेणी कर्मचारी को वेतन भी 200 रुपये ही मिलता था. यानी कि उसे 10 ग्राम सोना प्रतिमाह पहले भी मिलता था और आज यदि 40 हजार रुपये उसका वेतन है तो आज भी 10 ग्राम सोना उसे मिल रहा है. लेकिन यही बात किसानों के संदर्भ में अलग जान पड़ती है. उदाहरण के लिए मेरे बड़े भाई ने 70 के दशक में अपना 5 मन यानी 2 क्विंटल चावल बेचा और एक तोला यानी की लगभग दश ग्राम सोना खरीद लिया. किन्तु यदि आज मैं 10 ग्राम सोना खरीदना चाहूं तो मुझे अपना 20 क्विंटल चावल और 25 क्विंटल गेंहू बेचना पड़ेगा. यानी कि अनाज का रेट 10 गुना घट गया. जिसका आशय यह हुआ कि 70 के दशक के 1 रुपए की क्रय शक्ति घट कर 10 पैसे रह गई. हरित क्रांति आने पर उत्पादन तिगुना बढ़ गया यानी 10 पैसा 30 पैसा हो गया. लेकिन किसान 70 के दशक के मुकाबले फिर भी 70 पैसे प्रति रुपया घाटे में ही है. हां अगर उसे जैविक खेती में दोगुना मूल्य मिला तो उसका 10 पैसा 20 पैसे के बराबर होगा और तिगुना हो गया तो 30 पैसे के बराबर ही. इससे अधिक लाभ आम किसान नही पाएगा.
4. अगर जैविक खेती में बंपर मुनाफा नहीं है तो किसानों के लिए ये उपयोगी कैसे है?
उत्तरः पास के मुनाफे से अधिक दूर के नुकसान के बारे में सोचना चाहिए. रासायनिक खेती सबसे पहले तो बहुत महंगी और खतरनाक है. ये किसानों को कर्ज के बोझ तले मारने के साथ खेतों को विषाक्त बनाने का काम करती है. इसमे लाभ सिर्फ बड़ी कंपनियों का ही होता है. आगे चलकर ये खतरनाक केमिकल्स खेतों को बांझ भी बना देती है. इसलिए सदाबहार आय के रूप में जैविक खेती अधिक लाभकारी है.
5.किसानों को क्या संदेश देना चाहेंगें?
उत्तरः मेरा मानना है कि किसानों को आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले तो जागरूक होने की जरूरत है. आज के समय में एक जागरूक किसान ही आगे बढ़ सकता है. इसके अलावा उन्नत खेती के लिए देशी बीजों का उपयोग करना चाहिए. इन बीजों पर कम लागत आता है. वहीं ये हर प्रकार के मौसम को सहन करने की क्षमता भी रखते हैं. इसके अलावा ये खेतों की सेहत के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है.
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