1. Interviews

किसान संगठित होकर खेती करें, निश्चित रूप से अच्छा लाभ होगा

जलवायु परिवर्तन की वजह से कृषि क्षेत्र में बहुत सारे बदलाव हुए हैं. इसके वजह से खेती करने का तरीका बदला है. इन सभी के मद्देनजर जो प्रगतिशील किसान है उन्होने पारंपरिक तरीके से सब्जियों की खेती करना छोड़ आधुनिक तरीके से खेती कर बेमौसमी सब्जियों की खेती करना शुरू कर दिया हैं. नतीजतन उन्हें भारी मुनाफा हो रहा है. किसान किस तरीके से खेती कर भारी मुनाफा कमा रहे है यह जानने के लिए कृषि जागरण की टीम ने चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर से वर्ष 2017 में मुख्य प्रसार  विशेषज्ञ ( सब्जी विज्ञान ) से सेवा निर्वित हुए डॉ0 संत प्रकाश जी से बात की. पेश है उनसे बातचीत के कुछ प्रमुख अंश -

1. डॉ0 संत प्रकाश जी अपने बारें में बताइए ?

जवाब :- मैंने अपना सेवाकाल कृषि विज्ञान केंद्र से शुरू किया. हालांकि कृषि विज्ञान केंद्र से पहले मैं कृषि विभाग में कृषि विकास अधिकारी के पद पर शिमला में कार्यरत था. उसके बाद मैंने विश्वविद्यालय में प्रवेश किया तो जैसा कि मेरा विषय सब्जी विज्ञान है तो मैंने कृषि विज्ञान केंद्र में सहायक प्रसार विशेषज्ञ के तौर पर जिला कुल्लू में लगभग 8 साल सेवाएं दी. उसके बाद मैं पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय के मुख्यालय में स्थानांतरित हुआ. वहां मैं ज़्यादातर टीचिंग और रिसर्च में रहा. मगर साथ ही एक परियोजना थी जोकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की बहुत महत्वकांक्षी परियोजना थी जिसे ‘पायलट प्रोजेक्ट’ के नाम से भी जाना जाता था. उसमें हमने 1200 परिवार अडॉप्ट ( अपनाना या गोद लिया ) की थी. जिला कांगड़ा में फिर हमें 5 सालों तक किसानों के साथ काम करने का मौका मिला. और हम 5 साल लगातार उनके साथ रहें और उसमें भी फसल विविधिकरण और खासतौर पर जो बेमौसमी सब्जियां थी उसमें हमलोगों ने कोशिश की हम उसको बढ़ावा दे सकें. उसके बाद वर्ष 2001 में मैं कृषि विज्ञान केंद्र कांगड़ा के प्रभारी के पद पर कार्यरत हुआ और वहां मुझें लगभग 9 साल सेवा करने का मौका मिला. उसके बाद सेवाकाल के जो मेरे आखरी 3 वर्ष थे उस अवधि में हमने जैविक सब्जी उत्पादन पर काम किया. और ये सुनिशिचित किया कि हम जितना रासयानिक तरीके से उत्पादन ले सकते है उतना ही जैविक तरीके से अच्छी गुणवत्ता वाली सब्जी का उत्पादन कर सकते है. 

2. कृषि क्षेत्र में अभी तक का आपका सफर कैसा रहा है ?


जवाब:-
मैंने कृषि विज्ञान केंद्र में सहायक प्रसार विशेषज्ञ के तौर पर जिला कुल्लू में लगभग 8 साल सेवाएं दी. उस 8 साल की अवधि में वहां मुझें बहुत सारे किसानों से मिलने के साथ ही उनको प्रशिक्षण देने का और सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने और फसल विविधिकरण का मौका मिला. क्योंकि, जो कुल्लू की घाटी है वह हमारी बेमौसमी सब्जियों का घर है. जो निचले क्षेत्र थे वहां के किसान ज़्यादातर सेब की खेती करते थे लेकिन जैसा कि आप देख रहे है ग्लोबल वार्मिंग की अवधारणा (Concept of Global Warming ) आ रहा है तो हमारी जो सेब की खेती थी वो धीरे - धीरे ऊंची पहाड़ियों की ओर चली गई और जो नीचे के क्षेत्र थे वहां पर सब्जियों का उत्पादन होने लगा. वहां के जो प्रमुख बेमौसमी सब्जियां है, वो है फूलगोभी, टमाटर, बंदगोभी, फ्रसाविन शिमला मिर्च और विभिन्न कद्दू वर्गीय सब्जियां जिनकी खेती वर्षभर होती है. जब वर्ष 2001 में मैं कृषि विज्ञान केंद्र कांगड़ा के प्रभारी के पद पर कार्यरत हुआ तो वहां मुझें लगभग 9 साल सेवा करने का मौका मिला. उस अवधि में कांगड़ा घाटी में विभिन्न सब्जियों के अंतर्गत क्षेत्र व उत्पादन में कई गुना वृद्धि हुई. सेवाकाल के जो मेरे आखरी 3 वर्ष थे उस अवधि में मुझें जैविक खेती को बढ़ावा देने का मौका मिला. उन दिनों जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा था. आजकल भी  सब्जियों की जैविक खेती का ज्यादा प्रचार प्रसार हो रहा है. क्योंकि जो रासायनिक खेती है उसके दुष्टपरिणाम आप देख ही रहे है. इसके वजह से बहुत सारी बीमारियां हो रही है. इससे बचने के लिए हमारा जो उपभोक्ता है वो जैविक सब्जियों की मांग कर रहा है. तो हमने जैविक सब्जी उत्पादन पर 3 वर्ष काम किया व किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया

vlcshap

3. वर्तमान में सब्जी उत्पादन करने वाले किसानों को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है ?

जवाब :- देखिए, हिमाचल प्रदेश सब्जियों का घर है और हम बहुत भाग्यशाली है कि जो हमारे पड़ोसी राज्य हरियाणा और  पंजाब या फिर हमारे देश की राजधानी दिल्ली है वहां भारी मात्रा में हमारी जो बेमौसमी सब्जियां है खासतौर पर मटर, टमाटर, शिमला मिर्च, गोभी, फूल गोभी और कई अन्य विदेशी सब्जियां जैसे ब्रोकली लेटयूस, सेलरी, पार्सले और लेट्यूस आदि इन सभी सब्जियों की मांग रहती है और किसान भी इनकी उत्पादन कर भेज रहे है और एक अच्छी आमदनी ले रहे है. जैसा कि आपने कहां कि कौन –  कौन सी कृषि समस्याएं है, तो इसमें मैं सबसे पहले कहूंगा कि हमारे हिमाचल प्रदेश में दो कृषि विश्वविद्यालय है एक सोलन जिला में है और एक जिला कांगड़ा (पालमपुर ) में है. दोनों ही कृषि विश्वविद्यालय में सब्ज़ी उत्पादन पर अनुसंधान चल रहा है. दोनों ही विश्वविद्यालयों में अलग- अलग सब्जी विज्ञान विभाग है और सब्ज़ी विज्ञान के जो वैज्ञानिक है वह अनवरत कार्यरत है और वहां पर शिक्षण अनुसंधान और प्रसार का कार्य चल रहा है. आज तक हमनें जितनी भी नई – नई किस्में ईजाद की है. वो बहुत अच्छी किस्में है. मगर उनका प्रचार प्रसार नहीं हो पाया. इसका प्रमुख कारण ये रहा कि हमारा जो बीज वर्धन कार्यक्रम है उसमें सुधार की आवश्यकता है. हम किसी अच्छे संकर किस्म का बीज निकालते है तो जितनी प्रदेश के किसानों की मांग है जैसे कि  टमाटर की बीज उतनी हम दे नहीं पाते है. तो ये एक प्रमुख समस्या है. उससे होता क्या है, हमारा जो सब्जी उत्पादक किसान है उसको प्राइवेट इंडस्ट्रीज पर आश्रित होना पड़ता है. और कई बार आपने देखा होगा, जो हमारा गरीब किसान है उसकी जो बीज खरीदने की क्षमता होती है वो इतनी ज्यादा नहीं है कि वो हाइब्रिड बीज को खरीद सकें. और जो हाइब्रिड बीज है वो बहुत महंगे है और हर वर्ष खरीदने पड़ते है. उदाहरणस्वरूप अगर आपको  शिमला मिर्च की बीज पाली हाउस की खेती के लिए 10 ग्राम लेनी हो, तो उसका बीज आज के तारीख में 2 से 3 हजार रुपये है. वही टमाटर के अच्छी किस्म के बीज का दाम 500 से 600 रुपये प्रति 10 ग्राम है. बीज के दामों की समस्या किसानों के लिए एक प्रमुख समस्या है. जो हमारा सरकारी संस्थान है वहां से किसानों को अच्छी किस्म के जो संकर बीज है, उसे हम नहीं दे पा रहे है. और दूसरी बात ये है कि हमारा किसान उतना जागृत नहीं है जितना कि उसे जागृत होना चाहिए. देखिए सब्जी उत्पादन एक ऐसा जटिल विषय है कि इसमें किसान को हर पहलू पर वैज्ञानिक जानकारी चाहिए कि किस क्षेत्र के लिए कौन सी किस्म या हाइब्रिड बीज है जिसका अनुमोदन किया गया है. उस क़िस्म की खेती कब होगी, उसकी मांग क्या है, उसमें कौन – कौन सी बीमारियां आएंगी, कौन – कौन से कीड़े आएंगे, कैसे उनकी समय पर रोकथाम करनी है आदि.

4. सब्जियों की मंडीकरण को लेकर किसानों को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?


जवाब :-
 सब्जियों की मंडीकरण में भी किसानों को बाधा आ रही है. क्योंकि हमारा जो किसान है वह अभीतक संगठित नहीं है. इसके मद्देनजर प्रदेश में आत्मा परियोजना चली और आत्मा परियोजना से मैं लगभग 5 वर्ष तक जुड़ा रहा, उस दौरान हमने वहां कमोडिटी ग्रुप बनाएं. हमने उनको इस चीज के लिए प्रशिक्षित किया कि आप संघ में रहों. क्योंकि मंडीकरण सही तरीके से न हो पाने की वजह से बिचौलिये फायदा लेकर जाते है. कई बार ऐसा होता है कि हमारा जो किसान है उसे उचित मूल्य नहीं मिलता है तो उस दिशा में हमलोगों ने उनको शिक्षित किया की आप डायरेक्ट मार्केटिंग भी कर सकते है. आज हिमाचल के अंदर और प्रदेश के जो अलग - अलग भाग है, वहां जो हमारा किसान है जो सब्जी उत्पादक है वह डायरेक्ट मार्केटिंग कर रहा है और अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहा है.   

5. आप कृषि जागरण के मंच से देश के जो सब्जी उत्पादक किसान है, उनको क्या संदेश देना चाहेंगे?

सबसे पहले मैं ये कहना चाहूंगा कि किसान की खेती फायदेमंद हो. जैसे हमारा जो केंद्रीय सरकार है उसका संकल्प है कि आने वाले समय में किसानों की आय दो गुना हो जाएं. इस दिशा में मैं यही कहना चाहूंगा कि हमारे किसान एक तो ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिक जानकारी अपनाएं. देशभर में कृषि विज्ञान केंद्र है और कृषि विज्ञान केन्द्रों पर हर विषय के विशेषज्ञ है. तो उनसे वो सलाह मशवरा जरूर लें. इसके अतिरिक्त मैं किसानों को यह भी बताना चाहूंगा कि देखो, सरकार एक बहुत महत्वकांक्षी योजना लाई है जिसको हम किसान कॉल सेंटर कहते है. अभी तक हमारे जो किसान उसका फायदा नहीं ले रहा है, तो उसे उसका भी फायदा लेना चाहिए. जितने भी देश के कृषि विभाग है उनसे जितनी भी अनुदान पर सब्जियों के बीज और कीटनाशक मिलते है उसका भी किसानों को फायदा लेना चाहिए और इसके अतिरिक्त संगठित होकर खेती करें. हम चाहते है कि संघ में रहकर हमारा किसान एकजुट होकर कार्य करें. अगर किसान संगठित होकर खेती करेगा तो ये बात शरतीय है कि उसे अच्छा लाभ होगा. 

नाम- विवेक कुमार राय
कृषि जागरण
मो० - 9891443388
  

English Summary: Farmers organized and do farming, there will definitely be good profit.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News