बिहार सरकार अपने राज्य के किसानों के लिए एक खास योजना लेकर आने वाली है. अब किसानों के बगीचों में मसालों के साथ कुछ ऐसी फसलों की खेती होगी, जिन्हें धूप की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है. इसका मतलब है कि अब बगीचों में पेड़ लगाने के बाद खाली बची जमीन को उपयोग में लाया जाएगा. इस योजना पर कृषि विभाग ने काम करना भी शुरू कर दिया है. इस योजना को इंटीग्रटेड फार्मिंग योजना (Integrated Farming Scheme) के नाम से जाना जाएगा.
क्या है इंटीग्रटेड फार्मिंग योजना
इस योजना के तहत बगीचे में मसाला की खेती करने वाले किसानों को सराकार द्वारा तकनीकी दी जाएगी. इसके साथ ही बीज और खाद की कीमत का आधा पैसा सरकार द्वारा वहन किया जाएगा. इसका मतलब है कि किसानों को इंटीग्रटेड फार्मिंग योजना के तहत 50 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जाएगा. इस यजोना के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए कृषि विभाग लगातार काम कर रहा है. जल्द ही बागीचे में उपलब्ध खाली जमीन के वास्तविक रकबे के आधार पर जरूरत का आकलन होगा. बताया जा रहा है कि इन बगीचों में ओल, अदरख और हल्दी की खेती को प्राथमिकता दी जाएगी.
आपको बता दें कि सालभर में किसान औसतन 2 फसल की खेती ही करते हैं. उसे 3 फसल तक बढ़ाने की योजना पर राज्य सरकार ने काम शुरू कर दिया है. इसके अलावा सालाना फसलों की खेती में भी समेकित कृषि योजना पर जोर दिया जा रहा हैं. अगर केला जैसे फल के बगीचों को छोड दें, तो आम और लीची के बगीचों में 40 प्रतिशत भूमि का उपयोग ही पेड़ लगाने में होता है. बाकी 60 प्रतिशत जमीन पर ऐसी फसलों की खेती कर सकते हैं, जिन्हें धूप की कम आवश्यकता होती है. ऐसे में किसान ओल, अदरक और हल्दी का चयन कर सकते हैं. अगर खेत का यह प्रयोग सफल हुआ, तो वैज्ञानिकों की सलाह पर कुछ और फसलें जोड़ी जा सकती हैं.
जानकारी के लिए बता दें कि बिहार में खेती योग्य रकबा देश में औसत से काफी अधिक है. खेती के लिए कुल भू-भाग का 60 प्रतिशत रकबा उपयोग किया जाता है, जबकि देश में यह औसत 42 प्रतिशत है. राज्य सरकार फसल सघनता बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाना चाहती है, इसलिए किसानों के लिए इस योजना पर काम कर रही है.
राज्य में बगीचे का रकबा
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आम का बगीचा 57 लाख हेक्टेयर में है.
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लीची की खेती 33269 हेक्टेयर में की जाती है.
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अमरूद की खेती 27613 हेक्टेयर में होती है.
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इन बगीचों में मसाले की खेती 75 हजार हेक्टेयर में हो सकती है.
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