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Winter Crisis: उत्तर भारत में फलों और सब्जियों पर बढ़ रहा प्रदूषण का दबाव, ऐसे करें प्रबंधित

जाड़े में प्रदूषण का प्रभाव फसलों की उपज, गुणवत्ता और आर्थिक लाभ पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. किसानों और वैज्ञानिकों को मिलकर प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. उन्नत कृषि प्रथाओं, जागरूकता अभियान और प्रदूषण नियंत्रण नीतियों का सही क्रियान्वयन ही फसलों को सुरक्षित और उत्पादक बनाए रख सकता है.

डॉ एस के सिंह
प्रदूषण का फल एवं सब्जी वाली फसलों पर प्रभाव, सांकेतिक तस्वीर
प्रदूषण का फल एवं सब्जी वाली फसलों पर प्रभाव, सांकेतिक तस्वीर

उत्तर भारत में शीत ऋतु (जाड़ा) का मौसम कृषि के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. इस दौरान तापमान में गिरावट के साथ वायुमंडलीय प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है, जिसका फल एवं सब्जी वाली फसलों पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रभाव पड़ता है. औद्योगिक विकास, वाहनों से निकलने वाला धुआं, पराली जलाने और ठंडी हवा के साथ प्रदूषक तत्वों की सतह पर रुकावट जैसे कारण प्रदूषण को बढ़ाते हैं. इन कारकों से फसलों की गुणवत्ता, उत्पादकता और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है.

प्रदूषण का फल एवं सब्जी वाली फसलों पर प्रभाव

  1. प्रकाश संश्लेषण पर प्रभाव

जाड़े में धुंध और स्मॉग के कारण सूर्य का प्रकाश जमीन तक कम पहुंचता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होती है. फलस्वरूप, पौधों की वृद्धि और विकास में कमी आती है क्योंकि पौधे प्रकाश के अभाव मे अपना भोजन नहीं बना पाते है.

  1. पत्तियों को नुकसान

वायुमंडल में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) और ओज़ोन (O₃) जैसे गैसें पत्तियों की सतह को क्षति पहुंचाती है. यह फसलों में क्लोरोफिल की कमी, पत्तियों के मुरझाने और समय से पहले गिरने का कारण बनती है. पौधा अपना भोजन ठीक से नहीं बना पाता है.

  1. उत्पादन की गुणवत्ता में गिरावट

फल और सब्जियों पर प्रदूषण का सबसे बड़ा प्रभाव उनकी गुणवत्ता पर पड़ता है. प्रदूषण से पोषक तत्वों की कमी, स्वाद में बदलाव और बाजार में मांग में कमी हो जाती है. फल के आकार, प्रकार एवं रंग में भी अंतर आ जाता है.

  1. फसल रोगों में वृद्धि

प्रदूषण के कारण वातावरण में नमी और ठंडी हवाओं का प्रभाव बढ़ता है, जो फसलों पर फफूंद और बैक्टीरिया जनित रोगों की संभावना को बढ़ा देता है. उदाहरण के लिए, आलू , टमाटर में लेट ब्लाइट और गोभी में डाउनी मिल्ड्यू जैसे रोग अधिक तेजी से फैलते हैं.

  1. पौधों का तनाव

पौधे जब उच्च स्तर के प्रदूषक तत्वों जैसे भारी धातु (लेड, कैडमियम) के संपर्क में आते हैं, तो वे जैविक और भौतिक तनाव का सामना करते हैं. यह उनके विकास चक्र को प्रभावित करता है और फल एवं सब्जियों की उपज कम हो जाती है.

  1. मिट्टी की उर्वरता में कमी

प्रदूषण से केवल वायुमंडल ही नहीं, बल्कि मिट्टी भी प्रभावित होती है. वायुमंडलीय प्रदूषक तत्व जब मिट्टी में गिरते हैं, तो वे उसके pH को बदल देते हैं, जिससे पौधों की पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है.

  1. फल एवं सब्जियों में विषैले अवशेष

प्रदूषण के कारण वायुमंडल और मिट्टी में मौजूद हानिकारक रसायन फलों और सब्जियों में अवशोषित हो जाते हैं. इससे वे मानव उपभोग के लिए हानिकारक हो सकते हैं.

जाड़े में प्रदूषण का फल एवं सब्जी वाली फसलों पर पड़ने वाले प्रभाव को कैसे करें प्रबंधित?

फसल सुरक्षा तकनीक: फसलों को प्रदूषण के प्रभाव से बचाने के लिए मल्चिंग, जैविक खाद और नेट हाउस जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है.

पत्तियों की सफाई: पत्तियों की सतह पर जमा धूल और प्रदूषकों को पानी के छिड़काव से साफ किया जा सकता है.

रोग प्रतिरोधी किस्मों का विकास: रोग और प्रदूषण सहनशील किस्मों का उपयोग कर फसल की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है.

हरित पट्टी का निर्माण: खेतों के आसपास हरित पट्टी लगाकर प्रदूषण के प्रभाव को कम किया जा सकता है.

प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना: पराली जलाने से बचना, जैविक खाद का उपयोग, और वनीकरण को बढ़ावा देना प्रदूषण कम करने के प्रभावी उपाय हैं.

किसानों को जागरूक करें

विभिन्न संचार माध्यमों से यह बताने की आवश्यकता है की पराली जलाने से किसान बचे क्योंकि पराली जलाने से मिट्टी के अंदर मौजूद सूक्ष्मजीव मर जाते है जिससे मिट्टी भी मर जाती है और धीरे धीरे बंजर हो जाती है. सजीव मिट्टी का मतलब जिसमे जितना ज्यादा सूक्ष्मजीव हो. मृत मिट्टी मे बाहर से कितना भी खाद उर्वरक डाले उसका लाभ सही से नहीं मिलता है.

English Summary: Winter Crisis Pollution pressure is increasing on fruits and vegetables in North India farming Published on: 28 November 2024, 11:14 AM IST

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