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Wheat Crop Management: गेहूं की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट व रोगों की पहचान और फसल प्रबंधन

अगर आप गेहूं की खेती करने की सोच रहे हैं तो ऐसे में हम आपको गेहूं की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट व रोगों की पहचान और फसल प्रबंधन के बारे में जानकारी देंगे...

विवेक कुमार राय
Wheat
Wheat

गेहूं की फसल में कीट व रोगों की प्रकोप की वजह से बढ़वार कम होने के साथ ही कल्ले भी कम निकलते हैं. इसलिए सही वक्त पर इनकी पहचान कर समुचित फसल प्रबंधन करना बेहद जरूरी होता है. जिससे उपज पर कोई प्रभाव न पड़ें. ऐसे में आइये आज हम आपको गेहूं की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट व रोगों की पहचान और फसल प्रबंधन के बारे में विस्तृत रूप में जानकारी देते है-

दीमक (Termite)

दीमक सफेद मटमैले रंग का बहुभक्षी कीट है जो कालोनी बनाकर रहते हैं. बलुई दोमट मृदा, सूखे की स्थिति में दीमक के प्रकोप की सम्भावना ज्यादा रहती है. ये कीट जम रहे बीजों को व पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं. ये पौधों को रात में जमीन की सतह से भी काटकर हानि पहुंचाती है. प्रभावित पौधे अनियमित आकार में कुतरे हुए दिखाई देते हैं.

रोकथाम

  • खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए. फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए. नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है. भूमि शोधन हेतु विवेरिया बैसियाना 2.5 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से 50-60 किग्रा0 अध सडे गोबर में मिलाकर 8-10 दिन रखने के उपरान्त प्रभावित खेत में प्रयोग करना चाहिए.

  • खड़ी फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 2.5 ली0 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें.

माहॅू (Maahu)

यह पंखहीन अथवा पंखयुक्त हरे रंग के चुभाने एवं चूसने वाले मुखांग वाले छोटे कीट होते है. कीट के शिशु तथा प्रौढ़ पत्तियों तथा बालियों से रस चूसते हैं तथा मधुश्राव भी करते हैं जिससे काले कवक का प्रकोप हो जाता है तथा प्रकाश संश्लेषण क्रिया बाधित होती है.

रोकथाम

  • गर्मी में खेत में गहरी जुताई करनी चाहिए.

  • बीजों की समय से बुवाई करें.

  • खेत की निगरानी करते रहना चाहिए.

  • 5 गंधपाश (फेरोमैन ट्रैप) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.

गेहूं की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग (Major diseases in wheat crop)

1- पत्ती धब्बा रोग

इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पीले व भूरापन लिये हुए अण्डाकार धब्बे नीचे की पत्तियों पर दिखाई देते है बाद में धब्बो का किनारा कत्थई रंग का तथा बीच में हल्के भूरे रंग का हो जाता है.

रोकथाम

  • रोग के नियंत्रण हेतु थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू0पी0 700 ग्राम अथवा जीरम 80 प्रतिशत डब्लू0पी0 की 2.0 किग्रा0 अथवा मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू0पी0 की 2.0 किग्रा0 अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू0पी0 की 2.0 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर लगभग 750 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए.

2- करनाल बन्ट

इस रोग में दाने आंशिक रूप से काले चूर्ण में बदल जाते है यह रोग संक्रमित /दूषित बीज तथा भूमि द्वारा फैलता है.

रोकथाम

  • बायो पेस्टीसाइड, ट्राइकोडर्मा 2.5 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा0 सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर हल्के पानी का छिटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिलाकर भूमि शोधन करना चाहिए.

  • इस रोग के नियंत्रण हेतु थिरम 75 प्रतिशत डी0एस0/डब्लू0एस0 की 2.5 ग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू0पी0 की 2.5 ग्राम अथवा कार्बोक्सिन 75 प्रतिशत डब्लू0पी0 की 2.0 ग्राम अथवा टेबुकोनाजोल 2.0 प्रतिशत डी0एस0 की 1.0 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए.

  • खड़ी फसल में नियंत्रण हेतु प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ई0सी0 की 500 मिली0 प्रति हेक्टेयर लगभग 750 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए .

3- गेरूई या रतुआ रोग

गेरूई भूरे, पीले अथवा काले रंग की होती है. फफूंदी के फफोले पत्तियों पर पड़ जाते है जो बाद में बिखर कर अन्य पत्तियों को ग्रसित कर देते है.

रोकथाम

  • बुवाई समय से करें .

  •  क्षेत्र में अनुमोदित प्रजातियाँ ही उगायें .

  • खेतों का निरीक्षण करें तथा वृक्षों के आस-पास उगायी गयी फसल पर अधिक ध्यान दें .

  • फसल पर इस रोग के लक्षण दिखायी देने पर  करें यह स्थिति प्रायः जनवरी के अन्त या फरवरी मध्य में आती है.

4- अनावृत्त कंडुआ रोग

इस रोग में बालियों में दाने के स्थान पर काला चूर्ण बन जाता है बाद में रोग जनक के असंख्य बीजाणु हवा द्वारा फैलते है और स्वस्थ बालियों में फूल आते समय उनका संक्रमण करते है.

रोकथाम

  • बायो पेस्टीसाइड, ट्राइकोडर्मा 2.5 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा0 सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर हल्के पानी का छिटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिलाकर भूमिशोधन करना चाहिए.

  • इस रोग के नियंत्रण हेतु थिरम 75 प्रतिशत डी0एस0/डब्लू0एस0 की 2.5 ग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू0पी0 की 2.5 ग्राम अथवा कार्बोक्सिन 75 प्रतिशत डब्लू0पी0 की 2.0 ग्राम अथवा टेबुकोनाजोल 2.0 प्रतिशत डी0एस0 की 1.0 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए.

English Summary: wheat major pests and diseases: Identification of major pests and diseases in wheat crop and crop management Published on: 31 December 2019, 12:05 PM IST

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